इन 5 वजहों से हम होंगे कंगारुओं पर भारी
कंगारुओं की तेज गेंदबाजी का 'वुल्फ पैक'
ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों को भले ही कंगारुओं के नाम से संबोधित किया जाता हो, पर इस टीम के तेज गेंदबाज 'वुल्फ पैक' की तरह है. क्रिकेट की शब्दावली में ये गेंदबाज विरोधी बल्लेबाजों का शिकार किसी 'वुल्फ पैक' की तरह करते हैं. चौतरफा आक्रमण. मिशेल स्टार्क की इन स्विंगिंग गेंदबाजी से बच गए तो मिशेल जॉनसन की रफ्तार और बाउंसर के लिए तैयार रहिए. अगर इन दोनों से पार पा लिया तो जॉश हेजलवुल्ड की सटीक लाइन-लेंथ गेंदबाजी या पैट कमिंस की रफ्तार भरी गेंदबाजी. मान लिया कि आपने इन चारों गेंदबाज का काट निकाल लिया अब जेम्स फॉकनर की चतुराई भरी गेंदबाजी पर क्या करेंगे. सबसे अहम बात यह है कि ये सभी गेंदबाज करीब 150 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से बॉल फेंक सकते हैं. यानी किसी न किसी जाल में फंस ही जाएंगे.
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गेम रनों और विकेटों का है, स्लेजिंग का नहीं
ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेटर माइंड गेम में माहिर हैं. स्लेजिंग के मामले में उनसा कोई नहीं. मैच तो अभी शुरू भी नहीं हुआ पर ज्यादातर ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेटर स्लेजिंग पर बढ़-चढ़कर बयानबाजी कर रहे हैं. मौजूदा टीम इंडिया को देखते हुए यह भी तय है कि वे स्लेजिंग का जवाब स्लेजिंग से ही देंगे. यानी मैदान पर जबरदस्त तनातनी देखने को मिल सकता है. और कंगारू भी यही तो चाहते हैं. उन्हें लगता है कि यह रणनीति उनके अंदर का सर्वश्रेष्ठ निकालती है. इसलिए भारतीय क्रिकेटरों में इस जाल में फंसने से बचना होगा. क्योंकि यह मैच गेंद और बल्ले का है, स्लेजिंग का नहीं. किसने कब स्लेज किया? क्या उसे जवाब दिया गया? इस तरह की सोच खिलाड़ियों का ध्यान क्रिकेट से दूर कर सकती है जो सेमीफाइनल जैसे अहम मुकाबले में भारी नुकसानदेह है. भारत को अगर ऑस्ट्रेलिया के स्लेजिंग का जवाब देना है तो बल्ले और गेंद से दे, तभी नतीजा अपने पक्ष में जाएगा.
पिच की 'गुगली'
सिडनी की पिच को लेकर जबरदस्त हो हल्ला मचा है. कंगारू चाहते हैं कि पिच उनके तेज गेंदबाजों के लिए मददगार हो. पर क्यूरेटर के बयान से साफ है कि ऐसा होने की संभावना बेहद कम है. जानकार बताते हैं कि यह पिच धीमी होगी और इस पर स्पिन को फायदा मिल सकता है. पर यह भी एक छलावा साबित हो सकता है. क्योंकि इस मैदान पर खेले गए क्वार्टरफाइनल मुकाबले में भले ही साउथ अफ्रीका के स्पिन गेंदबाजों ने श्रीलंका के खिलाफ 7 विकेट झटके. पर यह भी सत्य ही है कि इस मैदान पर वेस्टइंडीज के खिलाफ दक्षिण अफ्रीका ने 400 से ज्यादा रन बनाए. और मेजबान टीम और श्रीलंका के बीच हुए मुकाबले में दोनों टीमों ने 300 से ज्यादा रन बनाए थे. अगर टीम इंडिया स्पिन को मदद देने वाली पिच उम्मीद लगाए बैठी है तो यह उसके लिए घातक साबित हो सकता है. इसके अलावा मंगलवार को पूरे दिन सिडनी में बारिश हुई जिस वजह से पिच पर कवर लगा रहा. यानी इस पिच पर उतनी धूप नहीं पड़ी है जिसकी उम्मीद टीम इंडिया को रही होगी.
'स्पिनर' मैक्सवेल पर सोच समझ कर खेलें
ज्यादातर क्रिकेट एक्सपर्ट का मानना है कि स्पिन डिपार्टमेंट में भारत का पलड़ा भारी है. चाहे बात स्पिन गेंदबाजों की हो या फिर स्पिन बॉलिंग खेलने की. क्रिकेट एक्सपर्ट मानकर चल रहे हैं कि दोनों ही परिस्थिति में भारत ऑस्ट्रेलिया पर हावी रहेगा. वैसे यह मानकर चला जा रहा है कि ऑस्ट्रेलिया अपने प्लेइंग इलेवन में बदलाव नहीं करेगा और ग्लेन मैक्सवेल पार्ट टाइम स्पिनर की भूमिका में नजर आएंगे. भारत के लिए मैक्सवेल को खेलना ज्यादा मुश्किल नहीं होगा. पर यह एक पेंचीदा मामला है. मैक्सवेल ऑफ स्पिनर हैं. ऑफ स्पिन गेंदबाजी के सामने टीम इंडिया के हालिया प्रदर्शन से हर कोई वाकिफ है. इंग्लैंड दौरे पर जिस तरह से पार्ट टाइमर मोइन अली ने हमारे बल्लेबाजों की पोल खोली. उसे यादकर मन में डर तो बना ही रहेगा. अजिंक्य रहाणे और शिखर धवन अक्सर मोइन अली का शिकार बने. क्रिकेट के जानकार मानते हैं कि भारत ने मोइन अली को हल्के में लिया. दूसरे छोर पर अच्छी गेंदबाजी के दबाव से उबरने के लिए भारत के मोइन पर ज्यादा आक्रमण किया नतीजतन वे अपना विकेट फेंकते गए. कुछ ऐसा ही सेमीफाइनल मैच मे भी हो सकता है. अगर टीम इंडिया एहतियात नहीं बरतती है तो सेमीफाइनल में भी मैक्सवेल की फिरकी भारत पर भारी साबित हो सकती है.
बाउंसर का लोभ
इस वर्ल्ड कप में भारतीय तेज गेंदबाजों की रणनीति ने सबको प्रभावित किया है. वे अपनी रफ्तार से विरोधी बल्लेबाज पर हावी होने में सफल रहे हैं, खासकर बाउंसर के इस्तेमाल से ज्यादातर एक्सपर्ट चकित हैं. रिकॉर्ड बताते हैं इस वर्ल्ड कप में भारत ने करीब 25 विकेट शॉर्ट गेंदों से ली है. इसमें मेलबर्न क्रिकेट ग्राउंड की लंबी बाउंड्री और पर्थ की बाउंसी पिच का भी अहम योगदान रहा. पर एससीजी में ना तो बाउंड्री इतनी लंबी है और ना ही यहां की पिच में पर्थ जैसी उछाल. इसके अलावा क्वार्टर फाइनल मुकाबले में पाकिस्तान ने जिस तरह से बाउंसर डालकर ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाजों को परेशान किया वो भारत को बाउंसर रणनीति अपनाने के लिए प्रलोभित कर सकता है. मगर टीम इंडिया को यह नहीं भूलना चाहिए कि कंगारू अपने घर में बाउंसी विकेट पर खेलने के आदी हैं. ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ टेस्ट सीरीज को भी याद किया जाए तो बिस्बेन टेस्ट तो हम अपनी बाउंसर रणनीति के कारण हारे. मिशेल जॉनसन के बाउंसर डालने की रणनीति अपनाई और बदले में जमकर रन लुटाए. बाउंसर मारकर बल्लेबाज को परखने में कुछ भी गलत नहीं है पर इस रणनीति पर बहुत ज्यादा निर्भर होना भारत के लिए मुश्किलें खड़ा कर सकता है.