विश्व की सबसे ऊंची पहाड़ी एवरेस्ट फतह करने वाली मध्य प्रदेश की बेटी मेघा परमार ने इंडिया टुडे के 'माइंड रॉक्स' कार्यक्रम में अपने सफर से जुड़ी कई रोचक बातें बताईं. उन्होंने बताया कि कैसे ऑक्सिजन खत्म होने के बाद भी वो बचकर निकल आईं.
मेघा ने मध्य प्रदेश के इंदौर में इंडिया टुडे ग्रुप के 'माइंड रॉक्स' कार्यक्रम में शिरकत की. उन्होंने बताया कि उनके पिता खेती करते हैं. उन्होंने कहा, 'मैं जब छोटी थी तो मां को देखती थी जो दो ही बार घर से निकलती थीं और वो भी त्योहार में. मुझे अखबार के माध्यम से पता चला कि एवरेस्ट भी चढ़ा जा सकता है.'
परिवार को कैसे समझाया, इस सवाल पर मेघा ने कहा, 'मेरी मां मेरे साथ थीं. पापा भी साथ थे. वो दोनों किसी से इस बारे में नहीं बताते थे कि मेरी बेटी पहाड़ चढ़ने गई है. वो मुझसे बस यही कहते थे कि जो भी करना यह सोचकर करना कि उसका असर हम दोनों (मां-पिता) पर पड़ेगा. इसके बाद मैंने सोच लिया कि कुछ ऐसा करूं जिससे मेरे मां-पापा का नाम रौशन हो.'
मेघा ने बताया, 'जिस दिन मेरा सब्मिट (खत्म) हुआ उस दिन सबसे ज्यादा 22 लोगों की मौत हो गई थी. आते वक्त डेथ प्वाइंट पर उनके ऑक्सिजन सिलेंडर का ऑक्सिजन खत्म हो गया. तभी एक शख्स ने मेरी सहातया की और मुझे एक सिलेंडर दिया, जिससे मैं बच पाई.'
बता दें कि मध्य प्रदेश की बेटी मेघा परमार ने विश्व की सबसे ऊंची पहाड़ी एवरेस्ट फतह कर चुकी हैं. वो भोपाल से 50 किलो मीटर दूर सीहोर जिले के उलझावन गांव के नजदीक स्थित भोज नगर की रहने वाली हैं.
माइंड रॉक्स कार्यक्रम में भावना डेहरिया (तस्वीर- राजवंत रावत)
भावना डेहरिया ने बताया- कहां से जुटाए 25-27 लाख रुपए
माउंट एवरेस्ट फतह करने वाली भावना डेहरिया भी 'माइंड रॉक्स' कार्यक्रम में शामिल हुईं. उन्होंने बताया कि उन्हें बचपन में पहाड़ चढ़ना अच्छा लगता था. उन्होंने कहा, 'मैं खेल-खेल में पचमढ़ी में पहाड़ चढ़ा करती थी. एक बार मैं अकेले में पहाड़ चढ़ने के चक्कर में घर आने में लेट हो गई जिसके बाद घर वालों को इसके बारे में जानकारी मिली कि मुझे पहाड़ चढ़ना पसंद है.'
हालांकि, धीरे-धीरे उन्हें यह पता चला कि पहाड़ों पर चढ़ना भी एक एक्टिविटी है. इसके बाद उन्होंने एक कैंप किया और उसमें उन्हें इस बात की जानकारी हुई कि माउंटेनियर बनने के लिए भी कोर्स करना होता है. 12वीं की पढ़ाई के बाद उन्होंने नेहरू इंस्टीट्यूट में अप्लाई किया. यहां 2 साल बाद उनका नंबर आया.
माइंड रॉक्स कार्यक्रम में भावना डेहरिया, भावना डेहरिया और वर्षा बर्मन (तस्वीर- राजवंत रावत)
इसके बाद उन्होंने यहीं से कोर्स किया और वो भी एक नहीं चार कोर्स किए. इसके बाद वो पहाड़ चढ़ने के लायक बनीं. कोर्स खत्म होने के बाद उन्होंने गढ़वाल के पहाड़ों पर चढ़ाई की. धीरे-धीरे उन्होंने ऊंचे पहाड़ों की चढ़ाई शुरू की.
जब उन्होंने माउंट-एवरेस्ट चढ़ने की तैयारी शुरू कि तो उन्हें पता चला कि उसमें 25-27 लाख रुपये लगते हैं. वो हैरान थीं कि इतना पैसा कहां से आएगा. क्योंकि उनके पिता एक शिक्षक थे.
वो कहती हैं, 'मैं 4 बार एवरेस्ट चढ़ चुकी हूं. मुझे बताया गया था कि आराम से स्पॉन्सरशिप मिल जाएगी. लेकिन ऐसा नहीं था. मैं जहां भी जाती थी वहां रेफ्रेंस के लिए पूछा जाता था. इसके बाद मना कर दिया जाता था. ऐसा करने वाले लगभग सभी सरकारी व्यक्ति होते थे. कुछ बड़ी कंपनी के मालिक भी थे. हालांकि, मुख्यमंत्री कमलनाथ ने मेरा साथ दिया.'
उन्होंने बताया कि ऊपर से जो दृश्य दिखता है वो कहीं और से नहीं दिख सकता. वहां सब कुछ शांत होता है. मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले की भावना डेहरिया भी माउंट एवरेस्ट की चोटी पर चढ़ने में कामयाबी हासिल कर चुकी हैं.
माइंड रॉक्स कार्यक्रम में वर्षा बर्मन (तस्वीर- राजवंत रावत)
इंचियोन एशियाड में पदक विजेता वर्षा अपने राज्य की टॉपर भी रहीं
आईएफएस माता-पिता की बेटी वर्षा बर्मन ने इंचियोन एशियाड में शूटिंग के डबल ट्रेप इवेंट में टीम कांस्य पदक हासिल कर चुकी हैं. वो 12वीं में मध्य प्रदेश की टॉपर भी रही हैं.
वर्षा बर्मन ने 'माइंड रॉक्स' कार्यक्रम में बताया, 'पापा कहते थे शूटिंग करो और मां कहती थीं कि पढ़ाई करो. इसलिए मैंने दोनों किया और यहां तक पहुंची. हार्वड से अंडर ग्रेजुएट करने वाली वर्षा ने बताया कि मैं भाग्यशाली थी कि मेरा स्पोर्ट्स और स्टडी एक साथ चलता था. मैं जिस चीज को कर रही थी उसके अलावा कोई दूसरी चीज मुझे उससे अलग नहीं कर सकती थी.'