
इस बात को कोई नकार नहीं सकता कि भारतीय क्रिकेट की क्वालिटी न केवल बहुत दूर निकल आयी है बल्कि जहां है, कई गुना बेहतर स्थिति में है. 10 ओवर में 45 रन बनाने के बाद अगली 60 गेंदों में 115 रन बनाने थे. टार्गेट पकड़ लिया जायेगा, 10-15 साल पहले ऐसा सोचा भी नहीं जा सकता था. लेकिन 23 अक्टूबर 2022 को भारतीय टीम ने ऐसा कर दिखाया. पहले 10 ओवरों में 45 रन बनाने वाली टीम अंतिम 45 रन 17 गेंदों में बनाती है. टी-20 का असली खेल उसकी परिस्थितियों में है, आंकड़े बैक-सीट लेते हैं. हम ऐसे मैचों के गवाह बन चुके हैं कि इस खेल में कुछ भी असंभव नहीं लगता है. भारत और पाकिस्तान के बीच ये मैच इस बात में हमारा विश्वास और भी पुख्ता करता है. साढ़े तीन घंटे के इस पूरे मैच में बहुत सी ऐसी बातें सामने आयीं जिन्हें सबक के तौर पर लिया जा सकता है. लिया जाना चाहिये भी.
शुरुआती विकेट्स
गेंदबाज़ी में ऐसा ज़रूरी है लेकिन बल्लेबाज़ी के दौरान ऐसा नहीं होने देना है. हमने देखा कि कैसे पॉवरप्ले के भीतर दोनों टीमों ने अपने-अपने ओपनर्स खोये और दोनों टीम रन बनाने के लिये जूझती दिखीं. अर्शदीप सिंह और भुवनेश्वर कुमार ने शानदार स्विंग गेंदबाज़ी का उदाहरण सामने रखा और अर्शदीप ने तो अपने पहले वर्ल्ड कप की पहली गेंद पर विकेट भी हासिल किया. वहीं इंडिया की तरफ़ से केएल राहुल प्लेड ऑन हुए और रोहित शर्मा गेंद की तेज़ रफ़्तार के शिकार बने और स्लिप में उनका अच्छा कैच पकड़ा गया.
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जान से भरे ट्रैक पर, तेज़ और स्विंग हो रही गेंदों को पढ़ने में बल्लेबाज़ बहुत सहज नहीं दिख रहे थे और इसी फेर में, 7वें ओवर में ही 4 विकेट खोने के बाद कोहली और हार्दिक को सावधानी से आगे बढ़ना पड़ा, जिसकी बदौलत आस्किंग रन रेट लगातार बढ़ता गया. विकेट्स बचाकर रखना क्यूं ज़रूरी है, ये वहां से समझ आता है कि जब आख़िरी ओवर की पांचवीं गेंद पर कार्तिक आउट हुए तो आख़िरी गेंद खेलने के लिये अश्विन आये जो टी-20 में ठीक-ठाक बल्लेबाज़ी कर लेते हैं.
"ज्यादा ब्याकुल नहीं होना है"
ख़राब शुरुआत हुई हो या फिर मैच फंस गया हो, सिचुएशन को हावी नहीं होने देना है. एक वक़्त पर, जब ऐसा लग रहा था कि पाकिस्तान बेहद मामूली स्कोर पर सिमट जायेगा, दो खिलाड़ियों ने अर्धशतक बनाये - शान मोहम्मद और इफ़्तिखार अहमद. दोनों के बीच 76 रनों की पार्टनरशिप भी हुई जो पाकिस्तान को ट्रैक पर वापस ले आयी. निचले क्रम में आये शाहीन शाह अफ़रीदी ने भी 8 गेंदों में 16 रन बनाकर पाकिस्तान के स्कोर को 159 तक पहुंचाया.
शाहीन की पारी भले ही छोटी हो लेकिन उनके बड़े शॉट्स ने बुरी स्थिति में दिख रही पाकिस्तान टीम के भीतर ये अहसास ज़रूर जगाया कि वो एक ऐसी सिचुएशन में पहुंच गए थे जहां वो इंडिया के सामने अच्छी परफॉरमेंस से उन्हें मुसीबत में डाल सकते थे. हुआ भी ऐसा ही. भारत के पहले 4 विकेट 37 गेंदों में ही गिर गए. अक्षर पटेल को ऊपर भेजने का फैसला भी काम आते नहीं दिख रहा था. लेकिन हार्दिक और कोहली के बीच 113 रनों की पार्टनरशिप हुई और भारत ऐसी जगह पहुंच सका जहां से मैच जीता जा सकता था. अंत में फैसला इसी पक्ष में आया.
स्थिति को पढ़ते हुए संयम बनाये रखा क्यूं ज़रूरी है, ये बात कोहली की पारी को देखते हुए भी समझ में आती है. एक समय था जब वो 21 गेंदों में 12 रन बनाकर खेल रहे थे. लेकिन फिर अगली 32 गेंदों में उन्होंने 70 रन बनाये. पारी के अंत की ओर उनके रन बनाने का आलम ये था कि उनकी खेली आख़िरी 10 गेंदों में 32 रन आये. इस वक़्त टीम को 16 रन प्रति ओवर की दर से रन बनाने थे और वो हर गेंद पर 3.2 रन बना रहे थे. टीम को जैसी ज़रूरत थी, कोहली उससे एक कदम आगे ही चल रहे थे.
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सबका नंबर आएगा, इसलिये बैक-अप ज़रूर रखें
भारत को जीत के लिये 12 गेंदों में 31 रन बनाने थे. हैरिस राउफ़ के ओवर में कोहली के मारे 2 छक्कों की बदौलत 15 रन आये और फिर आख़िरी ओवर में 16 रन चाहिये थे. पहली गेंद पर हार्दिक का विकेट खोने के बाद भी इंडिया ने जीत हासिल की. क्यूंकि पाकिस्तान के पास गेंदबाज़ी में मोहम्मद नवाज़ के अलावा और कोई विकल्प नहीं था. एक तरफ़ नसीम शाह और शादाब ख़ान ने अपने 4-4 ओवरों में 6 से कम की इकॉनमी से रन दिए, वहीं मोहम्मद नवाज़ ने अपने 4 ओवरों में 42 रन दे दिए. पाकिस्तान के पास कोई भी ऐसा खिलाड़ी नहीं था जो हाथ घुमा सके और आख़िरी ओवर की, या तीसरे ओवर में नवाज़ के 20 रन लुटा देने के बाद उनकी जगह आ सके. ले-देकर इफ्तिख़ार ही ऐसे खिलाड़ी दिख रहे थे जिन्होंने टी-20 अंतर्राष्ट्रीय मैचों में गेंदबाज़ी की थी.
2007 के विश्व कप में साउथ अफ़्रीका के ख़िलाफ़ दिनेश कार्तिक ने विकेट कीपिंग की थी क्यूंकि धोनी ख़ुद को पांचवें या छठे गेंदबाज़ी विकल्प के रूप में देख रहे थे. टीम के पास ये सहूलियत थी. उसी विश्व कप के फ़ाइनल में भी भज्जी और जोगिन्दर शर्मा के बीच चुनने का ऑप्शन मौजूद था. ऐसे ऑप्शन ही टीम को मुश्किल परिस्थितियों से निकालने का माद्दा भी रखते हैं. इस भारतीय टीम के पास भी 6 गेंदबाज़ों के ऑप्शन थे जिसके चलते अक्षर पटेल के महंगे पहले ओवर के बाद उन्हें हटा लिया गया और पंड्या ने 3 ओवर फेंके. हालांकि, पंड्या की इंजरी के पैटर्न को देखते हुए कहा जा सकता है कि उनपर ज़रूरत से ज़्यादा आश्रित रहना आत्मघाती साबित हो सकता है. ऐसे में कोहली एक ऑप्शन बन सकते हैं लेकिन इस बड़े टूर्नामेंट में ये अपने आप में बहुत बड़ा रिस्क हो जायेगा.