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वर्ल्ड कप के साथ दिल भी जीत ले गए माइकल क्लार्क

आमतौर पर ऑस्ट्रेलियन क्रिकेटरों के बारे में कहा जाता है कि वो मैदान और मैदान के बाहर भी 'भद्रजन' जैसा व्यवहार नहीं करते हैं. लेकिन जब बात क्लार्क की होगी तो वो क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया के इतिहास में इकलौते क्रिकेटर होंगे जो अपने साथी खिलाड़ी की मौत पर सबके सामने रो पड़े.

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Micahel Clarke
Micahel Clarke

आमतौर पर ऑस्ट्रेलियन क्रिकेटरों के बारे में कहा जाता है कि वो मैदान और मैदान के बाहर भी 'भद्रजन' जैसा व्यवहार नहीं करते हैं. लेकिन जब बात क्लार्क की होगी तो वो क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया के इतिहास में इकलौते क्रिकेटर होंगे जो अपने साथी खिलाड़ी की मौत पर सबके सामने रो पड़े.

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फिल ह्यूज की मौत का कितना बड़ा सदमा क्लार्क को लगा, इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि वो हर जीत पर ह्यूज को याद करते रहे. यही नहीं वर्ल्ड कप की जीत भी ह्यूज को समर्पित कर क्लार्क ने अपने आप को क्रिकेट के बड़े खिलाड़ियों में शामिल कर गए.

माइकल क्लार्क के संन्यास के साथ ही क्रिकेट का एक और सुनहरा दौर समाप्त हो गया. क्योंकि क्लार्क ने ऐसे वक्त पर कंगारू टीम की कमान संभाली थी जब बड़े-बड़े दिग्गज इस खेल को अलविदा कह चुके थे. मैथ्यू हेडेन, रिकी पॉटिंग, एडम गिलक्रिस्ट जैसे धुरंधरों के रिटायरमेंट के बाद तमाम क्रिकेट पंडित भी इस बात को मानने लगे थे कि अब शायद विश्व क्रिकेट में ऑस्ट्रेलिया का दबदबा खत्म हो जाएगा. लेकिन तभी ऑस्ट्रेलिया को एक ऐसा लीडर मिला जिसने न सिर्फ टीम को दोबारा खड़ा किया बल्कि आज एक बार फिर वर्ल्ड चैंपियन बना दिया.

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इतिहास गवाह है कि ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेटर अपने व्यवहार के लिए खासे चर्चा में रहते हैं. चाहे वो रिकी पॉटिंग हों या स्टीव वॉ, सभी कप्तान अपने मुखर स्वभाव के लिए चर्चा में रहे. लेकिन पॉटिंग से कप्तानी के गुर सीखने के बावजूद भी क्लार्क ने कभी सीमा नहीं लांघी. हालांकि बतौर क्लार्क वह काफी आक्रामक माने गए. मुश्किल परिस्थितियों से कैसे टीम को निकाला जाए, इस बात में क्लार्क का कोई सानी नहीं.

तकनीकी रूप से बेहद सक्षम बल्लेबाज क्लार्क को ज्यादातर लोग टेस्ट बल्लेबाज मानते हैं. लेकिन वह वनडे में भी उतने ही कामयाब रहे. क्लार्क ने 19 जनवरी 2003 को इंग्लैंड के खिलाफ वनडे में अपना डेब्यू किया. क्लार्क ने कुल 245 वनडे मैचों में 44.58 की शानदार एवरेज से 7981 रन बनाए. जिसमें 8 शतक और 58 अर्धशतक शामिल रहे. हालांकि चोट ने अगर उन्हें इतना परेशान किया होता तो उनके आंकड़े इससे भी बेहतर हो सकते थे.

क्लार्क न सिर्फ बतौर बल्लेबाज सफल रहे बल्कि बतौर कप्तान भी उनके रिकॉर्ड्स बेहद शानदार नजर आते हैं. जीत की औसत के आधार पर क्लार्क सबसे सफलतम कप्तानों की लिस्ट में चौथे नंबर पर हैं. उन्होंने 74 मैचों में ऑस्ट्रेलिया की कप्तानी की जिसमें उन्हें 50 में जीत और 21 में हार मिली, जबकि 3 मैच बिना किसी नतीजे के समाप्त हुए. क्लार्क का कप्तान के तौर पर जीत का औसत 70.42 का है, और वह सिर्फ क्लाइव लॉयड, रिकी पॉटिंग और हैंसी क्रोन्ये से ही पीछे हैं.

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क्रिकेट के मैदान पर तो क्लार्क शानादर खिलाड़ी और रणनीतिकार माने ही गए, लेकिन मैदान के बाहर भी अपने व्यवहार से उन्होंने करोड़ों लोगों का दिल जीता. ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेटर फिल ह्यूज के निधन के बाद क्लार्क ने जिस इंसानियत का परिचय देते हुए ह्यूज के परिवार को संभाला वह वाकई दिल को छूने वाला था. क्रिकेट का यह महान खेल यूं ही चलता रहेगा, लेकिन माइकल क्लार्क जैसे इंसान, क्रिकेटर और लीडर को हमेशा-हमेशा याद रखा जाएगा.

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