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जब अंग्रेज़ कप्तान को पाकिस्तानी अम्पायर ने कहा- “Cheating b*****d” और न्यूट्रल अम्पायरों का नियम शुरू हो गया

एक वक्त ऐसा भी था जब मेजबान टीम की सहूलियतों को देखते हुए द्विपक्षीय सीरीज में घरेलू अंपायर दिए जाते थे. आज ही के दिन यानी 8 दिसंबर को एक ऐसा वाक्या हुआ था, जिसकी वजह से ये नियम बदला गया और फिर क्रिकेट में न्यूट्रल अंपायर्स की एंट्री हुई. 

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माइक गैटिंग और शकूर राणा की वो भिड़ंत (File Photo)
माइक गैटिंग और शकूर राणा की वो भिड़ंत (File Photo)

दौर-ए-कोरोना ने दुनिया की जो तस्वीर बदली, उसने क्रिकेट को भी नहीं बख्शा. ट्रैवेल में आयी बंदिशों के चलते, आईसीसी ने एक बार फिर मेजबान देश के अम्पायरों को काम पर लगाना शुरू किया. अम्पायरिंग क्रिकेट का वैसा ही हिस्सा है जैसा बल्ला और गेंद और इस पक्ष को लेकर कितनी ही कहानियां मिलती हैं. ऐसी ही एक कहानी इतिहास के पन्नों से, जिसने न्यूट्रल अम्पायरिंग की दिशा में बढ़ते आईसीसी के क़दमों को तेज़ी दी. ये घटना घटी आज ही के दिन, पाकिस्तान की ज़मीन पर. 8 दिसंबर को दुनिया ने एक अंग्रेज़ कप्तान और पाकिस्तानी अम्पायर के बीच तीखी बहस देखी जो होते करते वहां तक पहुंची जहां उस कप्तान को लिखित माफ़ीनामा सौंपना पड़ा.

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मेरीलेबोन क्रिकेट क्लब, जिसे हम MCC के नाम से जानते हैं, इसका एक सालाना लेक्चर होता है- MCC काउड्री लेक्चर. साल 2013 में इस लेक्चर के पैनल में 3 लोग बैठे थे. अम्पायर साइमन टॉफ़ल, इंग्लैंड के खिलाड़ी ऑइन मॉर्गन और इंग्लैंड के पूर्व खिलाड़ी और कप्तान माइक गैटिंग. बातचीत के दौरान खिलाड़ियों और अम्पायरों के बीच रिश्तों को लेकर एक सवाल पूछा गया. सवाल सीधा गैटिंग के पास पहुंचा और सामने बैठी ऑडियंस हंस पड़ी. गैटिंग ने अपने जवाब में कहा कि एक अम्पायर के लिए सिर्फ़ अच्छे फ़ैसले देना ही सब कुछ नहीं होता, वो मैदान पर खिलाड़ियों और पूरे खेल को कैसे हैंडल करता है, इसपर भी उस अम्पायर का अच्छा या ख़राब होना निर्भर करता है.


ऐसा नहीं है कि 80 के क़रीब टेस्ट मैच खेलने वाले और 23 मैचों में इंग्लैंड की कप्तानी करने वाले माइक गैटिंग ने इतने सालों से क्रिकेट के हालात देखने के बाद ये बात कही थी. उनकी इस बात में बेहद निजी अनुभव जुड़े हुए थे और उनका ये जवाब, उसी का नतीजा था. उस सवाल का सीधे तौर पर उन्हीं से पूछा जाना और उनके इस जवाब के पीछे एक बहुत बड़ी कहानी है. और उस कहानी तक पहुंचने के लिए क्रिकेट की किताबों के पन्नों को पलटना होगा. जाना होगा साल 1987 में. इंग्लैंड के लिए ये साल कड़ाके की ठंड लेकर आया था. जनवरी 1987 में बर्फ़बारी का आलम ये था कि स्कूल बंद करने पड़े थे और लोगों को अपनी गाड़ियां बीच रास्ते में छोड़नी पड़ी थीं क्यूंकि वो चलते-चलते ठंडी पड़ गयी थीं.

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अगर अभी भी आप उस ठण्ड की इंटेंसिटी नहीं समझे तो आपको ये भी बता दूं कि उस 10-12 दिन के पीरियड में लंदन की पहचान बिग बेन टॉवर में लगे घंटे की हैमर जाम हो गयी थी. लेकिन इस साल का अंत गर्मा-गर्मी से भरा था. पाकिस्तान की ज़मीन पर. जहां जनरल ज़िया उल हक़ का राज चल रहा था. इंग्लैंड की टीम टेस्ट सीरीज़ के लिए पाकिस्तान में थी. इसी भारतीय उपमहाद्वीप में, कुछ ही दिन पहले इंग्लैंड का विश्व विजेता बनने का सपना चूर हुआ था. ऑस्ट्रेलिया ने 8 नवम्बर को ईडेन गार्डेन्स में इंग्लैंड को 7 विकेट से हराकर वर्ल्ड कप अपने नाम किया था. और उसी ऑस्ट्रेलिया ने सेमी-फ़ाइनल में पाकिस्तान को बाहर किया था. ये दो ज़ख़्मी टीमें आमने-सामने थीं लेकिन इन टीमों के फ़ैन्स अभी भी शोक में थे. लिहाज़ा इस सीरीज़ के बारे में कभी भी, कैसा भी एक्साइटमेंट नहीं दिख रहा था. और इंग्लैंड तो अपने usual कप्तान के साथ भी नहीं था. इयान बॉथम की जगह माइक गैटिंग के हाथ में टीम की कमान थी.

अंपायर से बहस करते माइक गैटिंग

खैर, सेमी-फ़ाइनल हारने के 10 दिनों के अंदर इंग्लैंड ने फिर से वन-डे मैच खेलना शुरू किया और अगले 5 दिनों में 3 ODIs की सीरीज़  3-0 से अपने नाम कर ली. लाहौर में पहला टेस्ट मैच शुरू हुआ और इंग्लैंड के सामने दो बड़ी समस्याएं खड़ी हुईं - अब्दुल क़ादिर और अम्पायरिंग. अब्दुल क़ादिर ने पहली पारी में डेविड कैपेल को छोड़कर सभी 9 विकेट लिये. पहली पारी के बाद उनके फ़िगर्स थे - 37 ओवर, 13 मेडेन, 56 रन और 9 विकेट. अगली इनिंग्स में उन्होंने 4 विकेट और लिये. पाकिस्तान ये मैच एक इनिंग्स और 87 रनों से जीता. ज़ाहिर सी बात है कि अब्दुल क़ादिर ही प्लेयर ऑफ़ द मैच घोषित हुए. माइक गैटिंग ने मैच के बाद मैच में हुई अम्पायरिंग को लताड़ा. उनका कहना था कि उन्हें मालूम था कि पाकिस्तान में क्या होगा. लेकिन सब कुछ इतना खुले में होगा, ये मालूम नहीं था. पहली पारी में तो एक ऐसा मौका आया था जब लेफ़्ट हैन्डेड बल्लेबाज़ क्रिस ब्रॉड कॉट बिहाइंड आउट दिये जाने के बाद भी क्रीज़ पर खड़े रहे और उन्होंने अम्पायर से कहा कि चूंकि गेंद मेरे बल्ले से नहीं लगी है, मैं नहीं जाऊंगा. ये खिलाड़ियों के मन में अम्पायरिंग के प्रति काबिज़ फ्रस्ट्रेशन दिखा रहा था.

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लगभग एक मिनट तक चले इस नाटक का पटाक्षेप क्रिस ब्रॉड के साथी ग्राहम गूच ने किया जो दूसरे एंड पर खड़े थे. उन्होंने क्रिस ब्रॉड को समझाया और पवेलियन की ओर भेजा. कालांतर में यही क्रिस ब्रॉड आईसीसी के पैनल में शामिल हुए और लम्बे अरसे तक बतौर मैच रेफ़री काम किया. यहां कहानी को एक छोटा सा ब्रेक देते हैं और एक दूसरे पन्ने पर चलते हैं. क्रिस ब्रॉड और लाहौर के रिश्ते पर. 1987 का वो पहला मैच लाहौर में खेला गया था. और इसी लाहौर में 2009 की एक सुबह जब श्रीलंकाई खिलाड़ियों पर आतंकवादियों ने गोलियां बरसाई थीं, तो वहां उस मैच के रेफ़री क्रिस ब्रॉड भी साथ में मौजूद थे. ब्रॉड जिस मिनीवैन में थे, उसमें तमाम मैच ऑफ़िशियल्स के साथ-साथ रिज़र्व अम्पायर एहसान रज़ा भी थे. सभी लोग उस छोटी से मिनी वैन में दुबके हुए थे, तभी क्रिस ब्रॉड ने देखा कि एहसान को दो गोलियां लग चुकी थीं. उन्होंने खुद को अहसान रज़ा के ऊपर लाद दिया और उनकी छाती से निकलते खून को जितना हो सका, रोके रखा. 3 दिन कोमा में और 27 दिन ICU में बिताने वाले एहसान रज़ा ब्रॉड का शुक्रिया अदा करते नहीं थकते हैं.

वापस आयेंगे 1987 की उस सीरीज़ पर. ये आश्चर्यजनक बात थी कि क्रिस ब्रॉड को अम्पायर के फैसले पर इस तरह से रीऐक्ट करने के बावजूद सिर्फ़ एक वार्निंग देकर छोड़ दिया गया था. लेकिन जो कुछ भी हुआ था, सभी के ज़हन में था तो ज़रूर. अम्पायर शकील खान की जगह शकूर राणा को लाया गया. और यहां रुक कर हमें शकूर राणा के बारे में भी जान लेना चाहिये. शकूर के 3 भाई थे जिसमें शफ़कत और अज़मत ने पाकिस्तान के लिए टेस्ट क्रिकेट खेला था. उनके दो बेटों मंसूर और मक़सूद ने पाकिस्तान के लिए वन-डे क्रिकेट खेला. लेकिन शकूर क्लब और फ़र्स्ट क्लास क्रिकेट तक ही महदूद रहे. शकूर राणा ने रेलवेज़, लाहौर और पंजाब की ओर से खेलते हुए भले ही अपने 12 साल के फ़र्स्ट क्लास करियर में मात्र 226 रन बनाये थे, लेकिन उनके बारे में ये ज़रूर कहा जाता था कि वो किसी के भी सामने ढीले पड़ने वालों में कतई नहीं थे. अपनी किताब वुंडेड टाइगर में पीटर ओबोर्न ने लिखा है कि एक दफ़ा शकूर के भाई शफ़कत ने उनके बारे में एक कहानी सुनाई थी. हुआ ये था कि शकूर राणा एक मैच में अम्पायरिंग कर रहे थे और पाकिस्तान के काम चलाऊ ऑल राउंडर मोहसिन खान ने एलबीडब्ल्यू की अपील की. शकूर राणा ने अपील ठुकरा दी तो मोहसिन खान ने उसप फैसले पर ऐतराज़ जताया. मोहसिन की ये बात उन्हें इस कदर चुभी कि अगले दो मैचों में जब भी शकूर और मोहसिन का आमना सामना हुआ, शकूर राणा ने उनकी हर अपील ठुकराई. बाद में मोहसिन खान को शकूर राणा से माफ़ी मांगनी पड़ी और तब जाकर ये मामला सुलट पाया. 

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खिलाड़ियों को करना पड़ा था बीच बचाव


खैर, दूसरे टेस्ट मैच का दूसरा दिन अपने अंत के करीब था. एडी हेमिंग्स अपनी स्पिन गेंदबाज़ी के साथ तैयार खड़े थे. लेग स्लिप में खड़े कप्तान माइक गैटिंग ने अपने फ़ील्डर डेविड कैपेल को आगे, 30 गज के घेरे में बुला लिया. हेमिंग्स जैसे ही गेंद फेंकने के लिए आगे बढ़े, माइक गैटिंग ने डेविड कैपेल को देखा और उन्हें इशारा किया कि वो कुछ ज़्यादा ही आगे आ गये थे. हेमिंग्स के गेंद फेंक पाने से पहले ही, लेग अम्पायर शकूर राणा ने उस वक़्त मुख्य अम्पायर खाइज़र हयात को खेल रोकने का इशारा किया. बकौल शकूर राणा, वो सलीम मलिक को ये जानकारी देना चाहते थे कि गैटिंग ने एक खिलाड़ी को डीप से आगे बुला लिया था.

शकूर राणा के खेल रोकने के बाद तो गजब हो गया. अगले ही पल दुनिया भर में जो दृश्य देखे जा रहे थे, उसमें फ़ील्डिंग टीम का कप्तान और ऑन-फ़ील्ड अम्पायर एक दूसरे से ऐसे पेश आ रहे थे कि इस दुनिया की तमाम दुश्मनियां शर्म के चलते खुद को ख़तम कर देतीं. दोनों एक दूसरे पर चीख रहे थे. उंगलियां उठा रहे थे. जो कुछ भी हो रहा था, वो क्रिकेट के बारे में कहे जाने वाले अंग्रेज़ी के फ्रेज़ 'जेंटलमेन्स गेम' पर बहुत बड़े प्रश्नचिन्ह लगा रहा था. दोनों ने एक दूसरे से exactly क्या कहा, ये हमेशा ही चर्चा का विषय रहा. इसके अलग-अलग वर्ज़न मिलते हैं. अंग्रेज़ कहते हैं कि शकूर राणा ने माइक गैटिंग को f***ing cheating b*****d कहा था और शकूर राणा ने इस मसले के अगले ही रोज़ टीवी पर कहा था कि उन्हें जो बातें कही गयीं, वो कैमरे पर वो रिपीट नहीं करना चाहेंगे. 

और मामला यहीं नहीं रुका. अगले रोज़ खेल ही नहीं हुआ. लगभग 2 हज़ार दर्शकों और दंगा विरोधी पुलिस दस्ते के सामने इंग्लैंड की टीम मैदान पर उतरी. लेकिन अम्पायरों ने फ़ील्ड में उतरने से मना कर दिया. मालूम पड़ा कि शकूर राणा चाहते थे कि माइक गैटिंग उनसे माफ़ी मांगे. लिखित में. और माइक गैटिंग ने साफ़ कर दिया था कि माफ़ी मांगने का तो सवाल ही नहीं उठता. इस डेडलॉक की सिचुएशन में अगले 6 घंटे, दोनों टीमें और सभी मैच ऑफ़िशियल्स मैदान में ही मौजूद रहे. लेकिन तीसरे दिन एक भी गेंद नहीं फेंकी गयी. शकूर राणा ने बड़े ही आराम से टीवी इंटरव्यू में कहा कि मैंने माफ़ी की मांग रखी है, और माइक गैटिंग के माफ़ी मांगते ही हम खेल दोबारा शुरू कर देंगे. 

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दोनों क्रिकेट बोर्ड इस मामले को सुलटाने के लिए बातचीत कर रहे थे. इस बातचीत में भी तमाम अड़चनें आयीं. लेकिन चौथे दिन का खेल शुरू होने से पहले, सुबह 10 बजे के आस-पास गैटिंग ने शकूर राणा को माफ़ीनामा दिया. गैटिंग बेहद नाख़ुश थे और वो माफ़ी माँगना ही नहीं चाहते थे. लेकिन बोर्ड के दबाव में उन्हें ऐसा करना पड़ा. टीम के बाकी खिलाड़ियों ने भी अपने बोर्ड के इस फैसले के ख़िलाफ़ बयान दिये. बोर्ड के ख़िलाफ़ यूं बोलने के बुरे नतीजे हो सकते थे लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं. क्यूंकि पाकिस्तान में मौजूद ब्रिटिश राजदूत ने लंदन में बैठी ताकतों को ये संदेसा भेज दिया था कि इस घटना के चलते शायद सीरीज़ ही रद्द हो सकती है. लेकिन अगर ऐसा हुआ तो दोनों देशों के बीच सम्बन्ध ख़राब होंगे और इसके बुरे नतीजे हो सकते हैं. ऐसे में, भले ही कैसी भी अम्पायरिंग हुई हो, खिलाड़ियों को सब कुछ नज़रंदाज़ करते हुए किसी भी हाल में खेलना ही चाहिये. और इस तरह अपनी कप्तानी के ओहदे और अपने खिलाड़ी होने को शक की नज़र से देखते हुए गैटिंग ने शकूर राणा से माफ़ी मांगी. तो इस तरह, खेल दोबारा शुरू हुआ जो दो नीरस दिनों के बाद, ड्रॉ हो गया. 

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मज़ेदार बात मालूम है क्या है? पाकिस्तान की टीम में एक खिलाड़ी था. कमाल का खिलाड़ी लेकिन बड़ा शरारती. नाम था जावेद मिआंदाद. उस खिलाड़ी ने अपनी आत्मकथा में बताया कि गैटिंग से माफ़ीनामा लिखवाने का आइडिया, असल में उन्हीं का था. जी, जावेद मियांदाद ने ही शकूर से कहा था कि वो गैटिंग से माफ़ी मंगवाएं. जब दूसरे दिन का खेल ख़त्म हुआ, मियांदाद ने शकूर राणा से मुलाक़ात की थी जहां उन्होंने इस माफ़ीनामे का बीज बोया था. उन्होंने अपनी किताब में लिखा कि मैं बतौर विपक्षी कप्तान नहीं, बल्कि बतौर पाकिस्तानी, माइक गैटिंग से माफ़ी मंगवाना चाहता था. वो एक पाकिस्तानी अम्पायर से ऐसे कैसे बात कर सकता था? उसका शकूर राणा पर चिल्लाना, पूरे पाकिस्तान का अपमान करने के बराबर था. 

राणा को वो माफ़ीनामा मिला. उस चिट्ठी पर वो बहुत इतराये. कहा तो ये भी जाता है कि न जाने कितने समय तक शकूर राणा सोते वक़्त उस माफ़ीनामे को अपनी तकिया के नीचे रखकर सोते थे. 

उस मौके का वीडियो यूट्यूब पर ढूंढिएगा. साफ़ तौर पर पता चलता है कि जैसे ही हेमिंग्स गेंद फेंकने को तैयार हुए, गैटिंग ने, जो कि कप्तान  थे, उन्होंने एक आख़िरी बार फ़ील्ड पर नज़र घुमायी और उन्हें ये अहसास हुआ कि डेविड कैपल कुछ ज़्यादा ही आगे आ गए हैं. एक involuntary reflex action के साथ  उन्होंने कैपल को पीछे रहने का इशारा किया और तुरंत ही अपना सर बल्लेबाज़ की ओर घुमाकर गेंद पर ध्यान लगा दिया. लेकिन शकूर राणा को कुछ और ही तस्वीर दिखायी थी. 

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कई सालों बाद माइक गैटिंग ने नागराज गोल्लापुडी से बात करते हुए कहा कि उनपर आरोप लगा था कि वो बगैर बल्लेबाज़ की जानकारी के, फील्डरों की जगह बदल रहे थे. जबकि वही बल्लेबाज़ अगली सुबह आकर कह रहा था कि गैटिंग ने मुझे बताया था कि वो फ़ील्डर को आगे ला रहा है. माइक गैटिंग कहते हैं कि इंग्लैंड अच्छी स्थिति में था और वो मैच हारने का उन्हें अफ़सोस है लेकिन इस बात का संतोष भी है कि इस पूरे कार्यक्रम के बाद मैचों में न्यूट्रल अम्पायर्स रखने का चलन शुरू हो गया और ये क्रिकेट के स्वास्थ्य के लिए हितकारी साबित हुआ. 

खैर, इस मैच के ठीक बाद क्या हुआ? कराची में खेला गया तीसरा मैच भी ड्रॉ रहा और ये सीरीज़, बेहद रसहीन लेकिन काफ़ी गर्मा-गर्मी से भरी टेस्ट सीरीज़ बन गयी.

और इसके कई सालों बाद, 2001 में एक ब्रिटिश अखबार ने शकूर राणा को 7 हज़ार पाउंड दिये और कहा कि लॉर्ड्स आकर वो माइक गैटिंग को सरप्राइज़ दें. राणा ने पैसे लिए और लॉर्ड्स आ गये. वो माइक गैटिंग के सामने आकर जैसे ही हाथ मिलाने के लिए उनकी ओर बढ़े, गैटिंग ने कहा, 'अरे यार! तुम्हें फिर से नहीं झेल सकता.' और वो ये कहकर अपनी गाड़ी में बैठे और चले गये.

इसी साल, यानी 2001 में ही, एक हार्ट अटैक के चलते, 65 साल के शकूर राणा की मौत हो गई. उनके बेटे मंसूर राणा ने रॉयटर्स से बात करते हुए कहा था कि मेरे पिता बेहद खुशमिजाज़ इंसान थे जिन्हें माइक गैटिंग वाले मसले के बाद बहुत लाइम लाइट मिली. लेकिन मेरे पिता हमेशा यही चाहते रहे कि काश उन्हें किसी और बेहतर वजह से जाना जाता. 


 

 

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