पूर्व भारतीय कप्तान और जर्सी नंबर 7 के पर्याय एमएस धोनी के चेन्नई सुपर किंग्स और भारतीय टीम के साथी लक्ष्मीपति बालाजी 2005 का एक किस्सा सुनाते हैं. धोनी भारतीय टीम में नये-नये आये थे और भारत में पाकिस्तान के साथ टेस्ट और वन-डे सीरीज़ होने को थी. लेकिन उससे ठीक पहले एनकेपी साल्वे चैलेंजर ट्रॉफ़ी खेली जानी थी. यहां इंडिया-सीनियर टीम में सौरव गांगुली की कप्तानी में धोनी और लक्ष्मीपति बालाजी खेल रहे थे. बालाजी बताते हैं कि ये पहली बार था जब उन्होंने धोनी को इतने क़रीब से देखा था.
एम एस धोनी पर आ रही नयी किताब डू डिफ़रेंट में बालाजी उस चैलेंजर ट्रॉफ़ी का ज़िक्र करते हुए बताते हैं कि कीपिंग करने के अलावा धोनी ने शिखर धवन के साथ ओपनिंग भी की थी. दूसरे मैच में लोगों को मालूम चला कि वो किस हद तक विस्फ़ोटक बल्लेबाज़ी कर सकते थे. उन्होंने आशीष नेहरा और रमेश पवार जैसे ख्यातिप्राप्त गेंदबाज़ों को पूरे मैदान में मारा और यहां तक कि श्रीराम श्रीधरन की पहली ही गेंद पर इतना करारा शॉट मारा कि वापस आ रही गेंद को रोकने के चक्कर में श्रीराम ने जब हाथ लगाया तो उनकी उंगलियों के बीच का हिस्सा फट गया और उन्हें मैदान से बाहर जाना पड़ा. धवन और धोनी ने शतक मारे. मैच अपने अंत की ओर जा रहा था और सामने वाली टीम ने जब हार तय देखी तो वीवीएस लक्ष्मण गेंदबाज़ी के लिये आ गए. उनकी गेंद पर धोनी ने फिर से वापस एक शॉट खेला और लक्ष्मण ने जैसे-तैसे ख़ुद को बचाया. धोनी ने कुल 102 रन बनाये.
फ़ाइनल मैच में इंडिया-सीनियर को हार का सामना करना पड़ा. सामने थी इंडिया-ए जिसकी कप्तानी राहुल द्रविड़ कर रहे थे. बालाजी बताते हैं कि इस मैच में उनकी गेंदबाज़ी पर धोनी ने विकेट्स के पीछे 2 कैच पकड़े थे जो शानदार थे. बालाजी कहते हैं कि पहले तो उन्होंने सत्यजीत परब को आउट किया लेकिन फिर दिनेश कार्तिक को आउट करने वाला कैच वो कभी नहीं भूल सकते हैं और शायद वैसा कैच धोनी ने फिर कभी नहीं पकड़ा. धोनी ने हवा में उछलकर पहली स्लिप के सामने वो कैच पकड़ा था. ये और भी स्पेशल इसलिये था क्यूंकि उसी ओवर में उससे पहले स्लिप में कार्तिक का कैच छूटा था.
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बालाजी उस कैच को याद करते हुए कहते हैं कि अब समझ में आता है कि धोनी को जैसे ही मौका दिखा, उन्होंने बल्लेबाज़ (कार्तिक) को आउट करने की ज़िम्मेदारी उठायी और कैच को स्लिप के लिये नहीं छोड़ा और ख़ुद ही पकड़ा. वो ये दिखाना चाहते थे कि उन्हें मौका मिलेगा तो वो उसे जाने नहीं देंगे. याद रहे कि ये वही समय था जब भारतीय टीम के लिए एक परमानेंट विकेट-कीपर ढूंढे जाने की कवायद चल रही थी और इत्तेफ़ाकन इस लिस्ट में दिनेश कार्तिक, जो उस वक़्त बल्लेबाज़ी कर रहे थे, का नाम सबसे ऊपर चल रहा था. धोनी टीम में अपने पैर जमाने में लगे हुए थे. बालाजी के मुताबिक़, चूंकि दादा (सौरव गांगुली) टीम के कप्तान थे और मुंबई में मैच होने के कारण वहां कई मज़बूत लोग भी मौजूद थे, उन सभी के सामने धोनी ने अपनी परफ़ॉरमेंस से ये पक्का किया कि कोई भी उनसे अपनी आंखें नहीं हटा सकता था.
बालाजी कहते हैं कि उस दिन के बाद से वो हर किसी की नज़र में आ गए और हर कोई कहता था कि ये खिलाड़ी कुछ अलग है. यहां तक कि बालाजी धोनी की तुलना रजनीकांत से करते हैं. वो कहते हैं कि फ़िल्मों में रजनीकांत ही वो ऐक्टर हैं जिन्हें वो करते हुए देखा जा सकता है जो आम इंसान नहीं कर सकता है. क्रिकेट के मैदान में धोनी ऐसे ही खिलाड़ी हैं. चैलेंजर ट्रॉफ़ी में उनकी परफ़ॉरमेंस के चलते पाकिस्तान के साथ होने वाली सीरीज़ में उन्हें जगह मिली. बावजूद इसके कि दिनेश कार्तिक ने इससे पहले इंग्लैण्ड में डेब्यू कर चुके थे और पाकिस्तान से हुए टेस्ट में 93 रन बनाये थे.
ये बातें पेंगुइन पब्लिकेशन से छपी किताब डू डिफ़रेंट- द अनटोल्ड धोनी में लक्ष्मीपति बालाजी ने धोनी के बारे में लिखी हैं. इस किताब के पीछे जॉय भट्टाचार्या और अमित सिन्हा की मेहनत है. इस लिंक पर जाकर किताब की प्री-बुकिंग की जा सकती है जो अंग्रेज़ी भाषा में उपलब्ध है.