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ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ तीसरे वनडे में टीम इंडिया को हर हाल में जीतना ही पड़ेगा

धोनी के तमाम दावों के बावजूद भी उन्हें इस बात से अवगत रहना होगा कि अगर उनके गेंदबाज किसी स्कोर को बचाने में कामयाब नहीं होते हैं. तो उस स्कोर का वास्तव में कोई महत्व नहीं है. सच तो ये है कि उनके गेंदबाज इस सीरीज में लगातार दो बार ऐसा करने में विफल रहे हैं. ऐसे में अगर कप्तान अपने बल्लेबाजों को 330-340 रन बनाने के लिए कहते हैं तो यह मजाक नहीं है.

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तीसरे वनडे में जीतना ही होगा
तीसरे वनडे में जीतना ही होगा

ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ तीसरे वनडे मैच में जब भारत खेलने उतरेगा तो सीरीज में बने रहने के लिए उसे हार हाल में यह मैच जीतना होगा. पहले दो मैचों में गेंदबाजों की नाकामी के बाद अब टीम की वापसी का पूरा दारोमदार बल्लेबाजों पर होगा. पहले दोनों मैचों में 300 से अधिक रन बनाने के बावजूद हार का सामना करने वाली भारतीय टीम के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी को यह स्वीकार करना पड़ा कि गेंदबाजों के नहीं चल पाने के कारण उनके बल्लेबाजों को अतिरिक्त जिम्मेदारी लेनी होगी.

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करो या मरो की नौबत
भारत के पास पांच मैचों की इस सीरीज में अपनी उम्मीद को कायम रखने का ये आखिरी मौका होगा. जिम्बाब्वे में जीत के बाद भारत को पिछली दो सीरीज में लगातार हार का सामना करना पड़ा है. पहले उसे बांग्लादेश ने अपनी धरती पर हराया वहीं साउथ अफ्रीका ने भारत को उसी के घर में मात दी. इसके बाद अब भारतीय टीम अगर रविवार का मैच हार जाती है तो यह उसकी लगातार तीसरी सीरीज में हार होगी. निश्चित तौर पर यह धोनी के लिए खतरे की घंटी है, क्योंकि पिछले साल उनकी हर हार के बाद लोगों ने उनके नेतृत्व पर सवाल खड़े किए. यहां तक कहा गया कि टीम को उनके दौर से निकलने की जरूरत है.

लगातार हार रहे हैं धोनी के वीर
हालांकि बीसीसीआई ने स्थिति की समीक्षा की और 2016 के टी20 वर्ल्डकप तक धोनी को सीमित ओवरों का कप्तान बनाये रखने की घोषणा की. धोनी जिम्बाब्वे दौरे में शामिल नहीं थे और वापसी के बाद लगातार पराजय का मुंह देख रहे हैं. ऐसे में उन पर यह साबित करने का दबाव होगा कि अब भी उनमें पुराने रिकॉर्ड को दोहराने का दमखम है. निश्चित तौर पर यह कहना जितना आसान है करना उतना ही मुश्किल. क्योंकि उनके गेंदबाजों ने अब तक अपने प्रदर्शन से निराश किया है. ब्रिस्बेन में मैच के बाद उन्होंने इस बात का जिक्र किया कि ऑस्ट्रेलिया में उनके बल्लेबाजों ने लगातार दो मैचों में 300 से अधिक रन बनाए. फिर भी उन्हें हार मिली.

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घटिया गेंदबाजी ने किया निराश
धोनी के तमाम दावों के बावजूद भी उन्हें इस बात से अवगत रहना होगा कि अगर उनके गेंदबाज किसी स्कोर को बचाने में कामयाब नहीं होते हैं. तो उस स्कोर का वास्तव में कोई महत्व नहीं है. सच तो ये है कि उनके गेंदबाज इस सीरीज में लगातार दो बार ऐसा करने में विफल रहे हैं. ऐसे में अगर कप्तान अपने बल्लेबाजों को 330-340 रन बनाने के लिए कहते हैं तो यह मजाक नहीं है. रोहित शर्मा और विराट कोहली शानदार फॉर्म में नजर आ रहे हैं लेकिन उनको और जिम्मेदारी उठाने की जरूरत है. अजिंक्य रहाणे ने खूबसूरत पारी खेली लेकिन यह भी अच्छे स्कोर तक ले जाने के लिए काफी नहीं था. धोनी ने नंबर चार के इस बल्लेबाज के प्रदर्शन की तारीफ की लेकिन बड़े शॉट लगाने में उनकी सीमित क्षमता की कमी का भी जिक्र किया. मनीष पांडेय को मिले बेहद सीमित मौकों के चलते यह तय नहीं किया जा सकता कि पांडेय ने अपनी भूमिका ठीक से निभायी है या नहीं.

धोनी, रिषि को नहीं देंगे मौका
ऐसे में सवाल ये है कि क्या गुरकीरत मान को मौका देने से इस समस्या का समाधान हो जायेगा? अनुभव की कमी को देखते हुए कहा जा सकता है कि जो काम पांडेय ने किया, ठीक वही काम गुरकीरत भी करेंगे लेकिन वह कुछ ओवरों की गेंदबाजी भी कर सकते हैं. ऐसे में पांचों नियमित गेंदबाजों का भार कुछ कम होगा. लेकिन बड़ा सवाल यही है कि क्या भारत के लिए सबसे उपयुक्त बल्लेबाजी क्रम यही है. धोनी ने रिषि धवन को अंतिम एकादश में शामिल करने के विचार को एक बार फिर नकार दिया.

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धवन का रनों का सूखा जारी
शिखर धवन का मौजूदा फॉर्म सबके लिए चिंता का विषय बना हुआ है. बाएं हाथ के इस सलामी बल्लेबाज के प्रदर्शन में निरंतरता की कमी से टीम प्रबंधन और कप्तान धोनी की चिंताएं बढ़ गयी हैं. उनके खराब फॉर्म को टीम प्रबंधन ने अब तक उनके बड़े शॉट खेलने की क्षमता के कारण नजरंदाज किया हुआ है लेकिन वह कभी-कभी ही अपने उस जौहर को दिखा पाते हैं. पिछले साल वर्ल्डकप के दौरान हैमिल्टन में आयरलैंड के खिलाफ शतक के बाद पिछले 13 मैचों में वह एक भी शतक नहीं बना पाए हैं. उप-महाद्वीप में पिछले आठ मैचों में उन्होंने 79.91 की स्ट्राइक रेट और महज 29.07 की औसत से रन बनाए हैं. इन आंकड़ों को किसी भी लिहाज से एक टॉप ऑर्डर बैट्समैन के प्रदर्शन के लिए ठीक नहीं कहा जा सकता.

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