भारत बनाम ऑस्ट्रेलिया. बीतते वक्त के साथ क्रिकेट के मैदान पर इन दोनों देशों ने इस खेल को नए आयाम दिए हैं. 1996 में बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी का आगाज हुआ, तभी तय हुआ था कि ये दोनों देश नियमित तौर पर एक दूसरे से भिड़ते रहेंगे. हर सीरीज के साथ एक नया हीरो सामने आया. चैंपियन बनने कहानी लिखी गई. हार और जीत के मायने बदलने लगे. धीरे-धीरे क्रिकेट सिर्फ खेल नहीं रह गया. इसी कड़ी में 2003 के एडिलेड टेस्ट में राहुल द्रविड़ (233 और नाबाद 72 रन) द्वारा खेली गई वो ऐतिहासिक पारी भी आती है जो आज भी हर क्रिकेट प्रशंसक के जेहन में है. एडिलेड से है विराट कोहली का खास रिश्ता!
राहुल द्रविड़ अपने करियर में भारत के लिए संकटमोचक रहे. इंग्लैंड की पिचों पर द्रविड़ का रिकॉर्ड शुरुआत से सबसे बेहतरीन रहा, पर साउथ अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया में उनका प्रदर्शन कुछ खास नहीं रहा था. जब वह पहली बार 1999-2000 में ऑस्ट्रेलिया गए तो एक-एक रन बनाने के लिए जूझे. टेस्ट की छह पारियों में सिर्फ 95 रन. लेकिन 2004 में सबकुछ बदल गया.
सौरव गांगुली की 144 रन के बूते भारत ब्रिसबेन टेस्ट ड्रॉ कराने में कामयाब रहा. अगला मैच एडिलेड खेला जाना था. वैसे कंगारू टीम भी ग्लेन मैकग्रा और शेन वार्न के बिना थोड़ी कमजोर थी. गेंदबाजी का जिम्मा ब्रैड विलियम्स, नैथन ब्रेकन और स्टुअर्ट मैकगिल के युवा कंधों पर था. भारत के लिए इतिहास रचने का यह सुनहरा मौका था, जिसे उसने भुनाया भी.
एडिलेड टेस्ट में भारत की शुरुआत अच्छी नहीं रही. पहला टेस्ट ड्रॉ होने से बौखलाए कंगारुओं ने जोरदार पलटवार किया. पहले बल्लेबाजी करते हुए 556 रन ठोंक डाले. स्टार रहे रिकी पोंटिंग, जिन्होंने 242 रन बनाए.
जवाब में भारत की शुरुआत अच्छी रही. 66/0 के स्कोर से 85/4, अचानक भारतीय पारी लड़खड़ा गई. द्रविड़ को छोड़कर सभी टॉप ऑर्डर बल्लेबाज पवेलियन लौट चुके थे. उनका साथ देने वीवीएस लक्ष्मण क्रीज पर आए.
इस वक्त ऑस्ट्रेलियाई टीम के जहन में 2001 के कोलकाता टेस्ट की यादें जरूर रही होंगी, पर उन्होंने यह कभी नहीं सोचा होगा कि वैसा दोबारा हो सकता है. पर ऐसा हुआ. फर्क सिर्फ इतना था कि इस लक्ष्मण की जगह द्रविड़ सीनियर पार्टनर की भूमिका निभाने वाले थे.
इस जोड़ी ने पहली पारी को संभाला. दूसरे दिन का खेल खत्म होने तक भारत का स्कोर 180 रन पर 4 विकेट था. तीसरे दिन का खेल पूरी तरह से भारत के पक्ष में रहा. जब भारत को लक्ष्मण (148) के रूप में पांचवां झटका लगा तब तक इस जोड़ी ने 303 रन की पार्टनरशिप कर डाली थी. भारत धीरे-धीरे मजबूती की ओर बढ़ने लगा था.
निचले क्रम के बल्लेबाजों ने भी निराश नहीं किया. वहीं दूसरी तरफ द्रविड़ आखिर तक क्रीज पर डटे रहे. 233 रनों की मैराथन पारी खेलने के बाद जब वह दसवें विकेट के तौर पर आउट हुए तब तक भारत ने 523 रन बना लिए थे, यानी मेजबान टीम के स्कोर से मात्र 33 कम.
राहुल द्रविड़ ने इस पारी में कुल 446 गेंदों का सामना किया. 23 चौके और एक छक्के की मदद से 233 रन बनाए. यह कारनामा करने के लिए उन्होंने लगभग 10 घंटे क्रीज पर बिताए. विदेशी जमीन पर ऐसी जुझारू पारी शायद ही किसी भारतीय बल्लेबाजी ने खेली हो.
राहुल द्रविड़ की पारी का वीडियो देखें...
जब भारतीय पारी खत्म हुई तो कइयों को ऐसा लगने लगा था कि शायद इस पिच पर मैच का फैसला हो पाना मुश्किल होगा. पर कंगारुओं की दूसरी पारी में अजीत अगरकर ने कमाल ही कर दिया. 41 रन देकर 6 विकेट, इस घातक गेंदबाजी के सामने मेजबान महज 196 रन पर ढेर हो गए. अब भारत को ऐतिहासिक जीत के लिए 230 रन चाहिए थे. गांगुली की टीम इस सुनहरे मौके को हाथ से जाने देने के मूड में नहीं थी. दूसरी पारी में द्रविड़ को छोड़कर भले ही किसी और बल्लेबाज ने अच्छी शुरुआत को बड़े स्कोर में तब्दील नहीं किया, पर वह धीरे-धीरे अपनी टीम को लक्ष्य के करीब ले गए.
द्रविड़ इस पारी में दूसरी भूमिका निभा रहे थे. वह एक छोर पर डटे रहे. वहीं आक्रमण की जिम्मेदारी दूसरे छोर पर डटे बल्लेबाज की होती. चाहे वह सहवाग की 47 रन की पारी हो या फिर सचिन के साथ 70 रन की साझेदारी. द्रविड़ अपने चिर परिचित अंदाज में रन बटोरते रहे. तेंदुलकर और गांगुली का विकेट जल्द खो देने के बाद एक बार फिर टीम इंडिया दबाव में थी. पर द्रविड़ लक्ष्य जानते थे, उन्होंने लक्ष्मण पर आक्रमण का दारोमदार छोड़ दिया. लक्ष्मण तो मानो पहले से ही तय करके आए थे कि ऑस्ट्रेलियाई गेंदबाजों का आज बख्शना नहीं है. पर जीत से महज 9 रन दूर वह भी आउट हो गए. लेकिन द्रविड़ अपना काम करते रहे. वह इतिहास रचकर ही लौटना चाहते थे. हुआ भी ऐसा ही. जैसे ही द्रविड़ ने स्टुअर्ट मैकगिल की गेंद पर एक्सट्रा कवर की ओर मैच जिताऊ चौका जड़ा, जीत के लिए 22 साल का इंतजार खत्म हो गया. एक हाथ में बल्ला और दूसरे में कैप लिए जश्न मनाते हुए राहुल द्रविड़. ये सीन आज भी हर भारतीय के जेहन में है.
1983 वर्ल्ड कप की जीत हमें क्रिकेट के करीब लेकर आई, ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 2001 की टेस्ट सीरीज में जीत ने हमें खुद पर भरोसा करना सिखाया तो एडिलेड की इस जीत हमारे अंदर विश्वास जगाया कि हम किसी भी मैदान या फिर परिस्थिति में अपने विरोधियों को धूल चटा सकते हैं. इसका पूरा श्रेय राहुल द्रविड़ को जाता है.