भारत में क्रिकेट को एक धर्म और क्रिकेटरों की भगवान के रूप में पूजा की जाती है लेकिन इसके नॉर्थईस्ट में (असम को छोड़कर) इस खेल को कोई पूछता तक नहीं. वहां बाईचुंग भूटिया और मैरी कॉम के बाद अब दीपा कर्माकर जैसे खिलाड़ियों और उनसे जुड़े खेलों का बोलबाला रहा है. गुजरात और महाराष्ट्र जैसे राज्यों ने जहां अब तक भारत में क्रिकेट के खेल की तरक्की में अहम भूमिका निभाई है वहीं नॉर्थ ईस्ट एसोसिएशन के पास वोटिंग राइट्स तक नहीं थे. लेकिन लोढ़ा समिति की सिफारिशों के बाद अब दृश्य बदलने वाला है.
नॉर्थईस्ट बनेगा गेमचेंजर
अब तक नॉर्थईस्ट का भारतीय क्रिकेट में बहुत ही हल्का रोल रहा है लेकिन अब उसके पास पांच नए सदस्य हो जाएंगे- नागालैंड, मिजोरम, मणिपुर, मेघालय और अरुणाचल प्रदेश. बीसीसीआई के पावर शेयरिंग में इन राज्यों का अहम रोल होगा लेकिन इन क्षेत्रों में बहुत ही कम क्रिकेट खेली जाती है. यानी अब प्रशासनिक गतिविधियों के लिए अलग अलग धड़े इन्हें अपने पक्ष में करने के लिए लुभाने की कोशिशें करेंगे. साथ ही इन राज्यों की सरकारों का भी इसमें अहम रोल हो सकता है.
70 से अधिक उम्र वालों पर रोक
लोढ़ा समिति के सिफारिशों के तहत उम्र की सीमा और पद पर बने रहने की समयावधि के लागू होने के साथ ही देश के 30 क्रिकेट एसोसिएशनों में बड़े पदों पर आसीन लोगों को हटना पड़ा. सुप्रीम कोर्ट के लोढ़ा समिति की सिफारिशों को लागू करने के फैसले के बाद से ही बोर्ड की कार्यपद्धति में बड़े स्तर पर ढांचागत परिवर्तन होना शुरू हो चुका है. पहले किसी भी अधिकारी की उम्र और शासन की अवधि निर्धारित नहीं होती थी लेकिन अब यह तय कर दी गई है. बीसीसीआई में 70 साल से अधिक की उम्र पर रोक लगा दिया गया है. इसी कारण शरद पवार, निरंजन शाह, एन श्रीनिवासन, आईएस बिंद्रा, एमपी पंडोव, कर्नाटक क्रिकेट प्रमुख अशोक आनंद और असम क्रिकेट के सचिव आर्शीवाद बेहारा के लिए आगे का रास्ता बंद हो गया. इनमें सबसे बड़ा नाम शरद पवार का है जो केंद्रीय कृषि मंत्री के पद पर आसीन रहते हुए बीसीसीआई के अध्यक्ष रहे और लंबे समय तक इनकी राजनीति का क्रिकेट पर असर बना रहा. अनुराग ठाकुर का कार्यकाल 22 मई 2016 से 2 जनवरी 2017 तक महज 225 दिनों का रहा.
तीन साल को होगा कार्यकाल
राजनीति में शामिल लोगों पर प्रतिबंध नहीं लगाया गया लेकिन मंत्रियों और सरकारी अधिकारियों के लिए अब कोई जगह नहीं है. अब केवल तीन साल का कार्यकाल होगा जबकि अगले तीन साल निष्क्रिय अवधि के रूप में बिताने पड़ेंगे. कोई भी अधिकारी 9 साल से अधिक की अवधि तक बीसीसीआई की सत्ता से नहीं जुड़ा रहेगा. तीन साल के कार्यकाल के बाद जो अगली तीन साल की अवधि होगी उसे नए अधिकारियों को तैयार करने में बड़ा रोल अदा करेगी.
चयन समिति कैसी होगी?
टीम के चयन पर भी इसका असर पड़ेगा. अब तक प्रत्येक जोन से एक और कुल पांच सेलेक्टर्स होते रहे हैं. लेकिन ये पांच लोगों के लिए पूरे देश की क्रिकेट पर नजर रखना संभव नहीं है. अगर चयन समिति में पांच से अधिक लोग होंगे तो घरेलू क्रिकेट की गतिविधियों पर इनकी पैनी नजर बनी रहेगी. इसके फलस्वरूप हमारे पास अधिक से अधिक टैलेंट को सामने आने का मौका मिलेगा. जोन का प्रतिनिधित्व कर रहे सेलेक्टर्स अपने क्षेत्र की क्रिकेट को अच्छी तरह समझते और चयन के दौरान स्वयं नहीं तो वहां की सत्ता में बैठे लोगों द्वारा कुछ पूर्वाग्रहों से ग्रसित जरूर होंगे. जिसका चयन के दौरान प्रभाव भी यदा कदा दिखता रहा है.
कर्नाटक, मुंबई का होगा एकाधिकार?
अब केवल पूर्व टेस्ट क्रिकेटर ही इसके लिए योग्य होंगे और वो भी रिटायरमेंट के पांच वर्ष बाद. जो सबसे वरिष्ठ क्रिकेटर होगा वो ही सेलेक्टर्स के पैनल का अध्यक्ष बनेगा. टेस्ट मैचों का अनुभव भी अपनी रोल अदा करेगा. योग्य उम्मीदवार जिन्होंने वनडे और टी20 में देश का प्रतिनिधित्व किया है, उनकी चयन समिति में चुने जाने की संभावना कम ही होगी. इस देश ने 1932 के बाद से अब तक कुल 286 टेस्ट क्रिकेटर दिए हैं. इनमें से निधन हो चुके, उम्रदराज और अस्वस्थों के साथ पिछले पांच वर्षों में रिटायर हुए क्रिकेटरों को भी हटाने के बाद बहुत विकल्प नहीं रह जाते. इससे भी महत्वपूर्ण सवाल यह है कि क्या टेस्ट क्रिकेट में मजबूत रहे मुंबई और कर्नाटक का अब चयन समिति पर एकाधिकार तो नहीं हो जाएगा. कुल मिलाकर सवाल यह उठता है कि अब इस परिवर्तन के बाद दुनिया की सबसे धनी संस्था बीसीसीआई का स्वरूप कैसा होगा.
प्लेयर्स एसोसिएशन का होगा गठन
अब कैग से नामांकित व्यक्ति इसकी सर्वोच्च निकाय में शामिल होगा जो बोर्ड के अकाउंट की मॉनिटरिंग भी करेगा. इसे सरकार के हस्तक्षेप के रूप में देखा जा रहा है लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने आश्वस्त किया है कि कैग द्वारा मनोनीत व्यक्ति केवल पैसे के फ्लो पर नजर रखेगा. इससे स्टेट बोर्ड को मिल रहे मनमाने फंड पर भी नियंत्रण बना रहेगा. कुछ वर्षों पहले तक देश के क्रिकेट संचालन में क्रिकेटरों की नहीं सुनी जाती थी. यह बड़ा ही अजीब सुनने में लगता है कि क्रिकेट का सबसे धनी राष्ट्र भारत टेस्ट क्रिकेट खेलने वाले मुल्कों में ऐसा एकमात्र देश है जिसमें कोई प्लेयर्स यूनियन नहीं है. बिना किसी प्लेयर्स एसोसिएशन के क्रिकेट के संचालन में क्रिकेटर टेस्ट कैलेंडर और व्यस्त कार्यक्रम के साथ ही मिलने वाले पैसों को लेकर अब तक अपनी आवाज नहीं उठा पाते थे. हां, यहां यह बताना जरूरी है कि पिछले कुछ सालों में इसमें जरूर बदलाव आया है. लंबे समय तक भारतीय क्रिकेट में प्लेयर्स कॉन्ट्रैक्ट सिस्टम तक मौजूद नहीं था जिसे 2003 में लाया गया.
भ्रष्टाचार मुक्त होगी बीसीसीआई?
अब एक प्लेयर्स एसोसिएशन गठित होगा जिसमें दो क्रिकेटर, एक महिला और एक पुरुष, बोर्ड की इस सर्वोच्च परिषद के सदस्य होंगे. यानी आने वाले वक्त में बतौर खिलाड़ी एक क्रिकेटर की आवाज सुनी जाएगी. हालांकि फीफा जैसे बड़े फुटबॉल संगठन को देखते हुए यह कहना मुमकिन नहीं है कि प्लेयर्स के क्रिकेट संचालन से जुड़ने के बाद यह खेल भ्रष्टाचार से पूरी तरह मुक्त हो जाएगा. हां, यह सुधार की कोशिश की एक शुरुआत जरूर है.