पूर्व भारतीय कप्तान सुनील गावस्कर ने सबसे लंबे समय तक अपने सलामी जोड़ीदार रहे चेतन चौहान को श्रद्धांजलि दी, जिनका कोविड-19 से जुड़ी समस्याओं के कारण निधन हो गया. सुनील गावस्कर ने कहा, ‘आजा, आजा, गले मिल, आखिर हम अपने जीवन के अनिवार्य ओवर खेल रहे हैं.’ पिछले दो या तीन साल में हम जब भी मिलते थे तो मेरा सलामी जोड़ीदार चेतन चौहान इसी तरह अभिवादन करता था.'
अरे बाबा, तुम शतक बनाते थे, मैं नहीं...
गावस्कर कहते हैं, 'ये मुलाकातें उसके पसंदीदा फिरोजशाह कोटला मैदान पर होती थी, जहां वह पिच तैयार कराने का प्रभारी था. जब हम गले मिलते थे तो मैं उसे कहता था ‘नहीं, नहीं हमें एक और शतकीय साझेदारी करनी है.’ और वह हंसता था और फिर कहता था ‘अरे बाबा, तुम शतक बनाते थे, मैं नहीं.’
गावस्कर ने कहा, '...मैंने कभी अपने बुरे सपने में भी नहीं सोचा था कि जीवन में अनिवार्य ओवरों को लेकर उसके शब्द इतनी जल्दी सच हो जाएंगे. यह विश्वास ही नहीं हो रहा कि जब अगली बार मैं दिल्ली जाऊंगा तो उसकी हंसी और मजाकिया छींटाकशी नहीं होगी.'
'उसके शतक से चूकने का जिम्मेदार मैं भी रहा'
उन्होंने कहा, 'शतकों की बात करें तो मेरा मानना है कि दो मौकों पर उसके शतक से चूकने का जिम्मेदार मैं भी रहा. दोनों बार ऑस्ट्रेलिया में 1980-81 की सीरीज के दौरान. एडिलेड में दूसरे टेस्ट में जब वह 97 रन बनाकर खेल रहा था तो टीम के मेरे साथी मुझे टीवी के सामने की कुर्सी से उठाकर खिलाड़ियों की बालकोनी में ले गए और कहने लगे कि मुझे अपने जोड़ीदार की हौसला अफजाई के लिए मौजूद रहना चाहिए. मैं बालकोनी से खिलाड़ियों को खेलते हुए देखने को लेकर थोड़ा अंधविश्वासी था क्योंकि तब बल्लेबाज आउट हो जाता था और इसलिए मैं हमेशा मैच ड्रेसिंग रूम में टीवी पर देखता था.
नहीं रहे गावस्कर के ओपनिंग पार्टनर चेतन चौहान, शानदार थी सलामी बल्लेबाजी
उन्होंने आगे कहा, 'शतक पूरा होने के बाद मैं खिलाड़ियों की बालकोनी में जाता था और हौसला अफजाई करने वालों में शामिल हो जाता था. हालांकि जब डेनिस लिली गेंदबाजी करने आया तो मैं एडिलेड में बालकनी में था और आप विश्वास नहीं करोगे कि चेतन पहली ही गेंद पर विकेट के पीछे कैच दे बैठा.'
गावस्कर ने कहा, 'मैं निराश था और मुझे बालकनी में लाने के लिए खिलाड़ियों को जाने के लिए कहा, लेकिन इससे वह नहीं बदलने वाला था जो हुआ था. कुछ वर्षों बाद जब मोहम्मद अजहरुद्दीन कानपुर में अपने लगातार तीसरे शतक की ओर बढ़ रहे थे तो मैंने इस गलती को नहीं दोहराया और जैसे ही उन्होंने यह उपलब्धि हासिल की मैंने ड्रेसिंग रूम से निकलकर साइटस्क्रीन के पास जाकर उनकी हौसला अफजाई की.'
सनी ने कहा, 'हालांकि तब मीडिया के मेरे कुछ दोस्तों ने मेरे तथाकथित गैरमौजूद रहने पर बड़ी खबर बना दी. हैरानी की बात है कि उनके पास एक साल पहले कुछ लोगों की गैरमौजूदगी के बारे में कहने के लिए कुछ नहीं था, जब मैंने दिल्ली में शतक जड़कर डॉन ब्रैडमैन के 29 शतक की बराबरी की थी.'
सुनील गावस्कर और चेतन चौहान की जोड़ी
'जब एक बार फिर वह शतक से चूक गया'
गावस्कर ने कहा, 'दूसरी बार जब मुझे लगता है कि मैं चेतन के शतक से चूकने के लिए जिम्मेदार था, वह लम्हा तब आया जब खराब फैसले पर आउट दिए जाने के बाद मैदान से बाहर जाते हुए ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों के अभद्र व्यवहार के बीच मैंने धैर्य खो दिया. चेतन को बाहर ले जाने के प्रयास से निश्चित तौर पर उसकी एकाग्रता भंग हुई होगी और कुछ देर बाद वह एक बार फिर शतक से चूक गया.'
'कर छूट हासिल करने में उसका योगदान'
भारत के पूर्व कप्तान ने कहा, 'एक चीज मेरी पीढ़ी और तुरंद बाद के कुछ खिलाड़ियों को नहीं पता होगी और वह थी उनके लिए कर छूट हासिल करने में उसका योगदान. हम दोनों सबसे पहले आर वेंकरमण से मिले जो उस समय देश के वित्त मंत्री थे और उनसे आग्रह किया कि भारत के लिए खेलने पर मिलने वाली फीस में कर छूट पर विचार किया जाए.'
उन्होंने कहा, 'मैं बता दूं कि यह सिर्फ क्रिकेट के लिए नहीं था, बल्कि भारत के लिए खेलने वाले सभी खिलाड़ियों के लिए था. हमने बताया कि जब हम जूनियर क्रिकेटर थे तो हमें सामान, यात्रा, कोच आदि पर काफी पैसा खर्च करना पड़ता था जबकि हमारे पास आय का कोई साधन नहीं था.'
गावस्कर कहते हैं, 'वेंकटरमणजी ने इस पर विचार किया और अधिसूचना जारी की कि जिसमें हमें टेस्ट मैच फीस पर 75 प्रतिशत की मानक कटौती मिली थी और फिर दौरे पर रवाना होने से पहले मिलने वाली दौरा फीस पर 50 प्रतिशत की छूट. सोने पर सुहागा हालांकि उन दिनों एकदिवसीय मैच की 750 रुपये की फीस पर पूरी छूट मिलना था. याद दिला दूं कि तब हमने एक या दो एकदिवसीय अंतरराष्ट्रीय मैच ही खेले थे.'
उन्होंने कहा, 'यह अधिसूचना लगभग 1998 तक रही और तब तक एकदिवसीय अंतरराष्ट्रीय मैचों की संख्या में काफी इजाफा हो गया था और फीस में भी जो एक लाख रुपये के आसपास पहुंच गई थी. इसलिए 90 के दशक के मध्य में खिलाड़ियों को 25 लाख या इससे अधिक की राशि कर मुक्त मिलती थी. मेरे संन्यास लेने के बाद मैं भारतीय टीम में जगह बनाने वाले नए खिलाड़ियों को अधिसूचना की प्रति देता था जिससे कि वे उसे अपने अकाउंटेंट को दे सकें.
'अंत तक वह देता ही रहा, कभी लिया नहीं'
गावस्कर ने चौहान को याद कर कहा, 'चेतन हमेशा कहता था कि अगर हमसे पूछा जाएगा कि भारतीय क्रिकेट को हमारा सर्वश्रेष्ठ योगदान क्या है तो हमें कहना चाहिए कि यह क्रिकेट जगत को कर में छूट दिलाना है. दूसरे की मदद करने की उसकी ख्वाहिश ने उसे राजनीति से जोड़ा और अंत तक वह देता ही रहा, कभी लिया नहीं.'
गावस्कर ने कहा, 'वह कमाल का मजाकिया इंसान था. जब हम खेल के सबसे खतरनाक गेंदबाजों का सामना करने उतरते थे तो उसका पसंदीदा गाना होता था- मुस्कुरा लाडले मुस्कुरा.... यह चुनौतियों का सामना करते हुए तनाव को कम करने का उसका तरीका था. अब मेरा जोड़ीदार जीवित नहीं है तो मैं कैसे ‘मुस्कुरा’ सकता हूं? भगवान तुम्हारी आत्म को शांति दे, जोड़ीदार.'