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‘एक राज्य, एक मत’ नीति पर पुनर्विचार कर सकता है सुप्रीम कोर्ट

न्यायालय ने बीसीसीआई के संविधान के मसौदे पर राज्य क्रिकेट संघों और बीसीसीआई के पदाधिकारियों से सुझाव देने को कहा.

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सुप्रीम कोर्ट
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सुप्रीम कोर्ट ‘एक राज्य, एक-मत’ नीति के संबंध में न्यायमूर्ति आरएम लोढ़ा समिति की सिफारिश पर पुनर्विचार कर सकता है. न्यायालय ने कहा कि वह कुछ क्रिकेट निकायों की पूर्णकालिक सदस्यता समाप्त होने से संबंधित एकमात्र पहलू पर गौर कर सकता है.

न्यायमूर्ति लोढ़ा समिति की सिफारिशों में एक यह भी है कि एक राज्य में सिर्फ एक क्रिकेट संघ होगा, जिसके पास पूर्ण सदस्यता और बीसीसीआई में मतदान का अधिकार होगा. उच्चतम न्यायालय ने अपने 2016 के फैसले में इसे मंजूरी प्रदान कर दी थी.

इस वजह से मुंबई क्रिकेट संघ (एमसीए), क्रिकेट क्लब ऑफ इंडिया (सीसीआई), विदर्भ क्रिकेट संघ, बड़ौदा क्रिकेट संघ और सौराष्ट्र क्रिकेट संघ जैसे प्रतिष्ठित निकायों ने स्थायी सदस्यता और मतदान के अधिकार गंवा दिए. ये निकाय महाराष्ट्र और गुजरात से हैं. भारतीय क्रिकेट बोर्ड (बीसीसीआई) में इन राज्यों से अलग स्थायी सदस्य हैं.

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प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि जहां तक पूर्वोत्तर राज्यों के लिए ‘एक राज्य, एक मत’ नीति का सवाल है तो उस पर पुनर्विचार नहीं किया जाएगा. पीठ में न्यायमूर्ति एएम खानविल्कर और न्यायमूर्ति धनंजय वाई चंद्रचूड़ भी शामिल हैं.

पीठ ने हालांकि संकेत दिया कि वह महाराष्ट्र और गुजरात के क्रिकेट निकायों के पहलुओं पर गौर कर सकती है, क्योंकि खेल में उनकी ऐतिहासिक भूमिका रही है तथा उनकी अनदेखी नहीं की जा सकती. पीठ ने कहा, ‘जहां तक पूर्वी राज्यों का सवाल है, आप उन्हें (उनके अधिकार से) वंचित नहीं कर सकते... हम समावेश के सिद्धांत के पक्ष में हैं.’

इस बीच न्यायालय ने बीसीसीआई के संविधान के मसौदे पर राज्य क्रिकेट संघों और बीसीसीआई के पदाधिकारियों से सुझाव देने को कहा. न्यायालय ने राज्य क्रिकेट संघों और बीसीसीआई के पदाधिकारियों से कहा कि वे संविधान के मसौदे पर अपने सुझाव न्याय मित्र गोपाल सुब्रमणियम को 11 मई के पहले सौंप दें. इस मामले में अब 11 मई को आगे सुनवाई होगी.

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