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'जल्दबाजी में जीत' के चक्कर में हारी टीम इंडिया, क्या बल्लेबाज खेल रहे थे टी-20?

केपटाउन में टीम इंडिया की किस्मत में हारी लिखी थी. बारिश भी नहीं बचा पाई. तीसरे दिन का खेल पानी में धुल गया. लेकिन चौथे दिन जब केपटाउन में धूप खिली तो लगा कि मैदान में भी टीम इंडिया चमकेगी.

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विराट कोहली 28 रन बनाकर आउट हुए
विराट कोहली 28 रन बनाकर आउट हुए

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केपटाउन में टीम इंडिया की किस्मत में हारी लिखी थी. बारिश भी नहीं बचा पाई. तीसरे दिन का खेल पानी में धुल गया. लेकिन चौथे दिन जब केपटाउन में धूप खिली तो लगा कि मैदान में भी टीम इंडिया चमकेगी. जैसे-जैसे चौथे दिन दक्षिण अफ्रीकी बल्लेबाज आउट होते गए, टीम इंडिया के साथ-साथ भारतीय प्रशंसक भी जीत के सपने देखने लगे. लेकिन सपना तो तब सच होता जब भारतीय बल्लेबाज मैदान में जीत के इरादे से उतरते.

मजबूत बल्लेबाजी 'फेल'

दरअसल चौथे दिन नाउम्मीद को उम्मीद में बदलने के लिए गेंदबाजों ने अपना काम तो कर दिया था, अब नंबर भारतीयों बल्लेबाजों का था, जिसकी मजबूती की गाथा हमेशा सुनते आए हैं. टॉप से लेकर मिडिल ऑर्डर तक ऐसे-ऐसे बल्लेबाज जो अकेले 208 रन के लक्ष्य को भेद सकता है. लेकिन मजबूत टीम से नहीं, मजबूत इरादे से मैच जीते जाते हैं, और वो केपटाउन के ग्राउंड में आज नहीं दिखाई दिया. शायद सब यही सोचकर बल्लेबाजी करने मैदान पर आ रहे थे कि मैं नहीं तो मेरे बाद वाले बल्लेबाज ये रन आसानी से बना लेगा, आखिर स्कोरबोर्ड में रन जो केवल 208 थे.

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रन बनाने की हड़बड़ी में हार

केपटाउन में भारतीय टीम की हार को हम केवल शर्मनाक नहीं कह सकते. क्योंकि जीत के लिए चाहिए थे 208 रन और डेढ़ दिन से ज्यादा का वक्त बचा हुआ था. फिर भारतीय बल्लेबाजों में रन बनाने की जो हड़बड़ी थी. उसे देखकर तो यही लगा कि मैच जीतने के इरादे से कम, जल्द खत्म करने के लिए खेला जा रहा था. शायद 208 रन का लक्ष्य कम लग रहा था और इससे जल्द 'टी-20 स्टाइल' में निपट कर खिलाड़ी सैर-सपाटे के मू़ड में थे.

अश्विन-भुवी ने जगाई थी उम्मीद

हालांकि केपटाउन के इस पिच पर रन बनाना आसान नहीं था, लेकिन एक वक्त आर अश्विन और भुवनेश्वर कुमार ने 49 रन की पार्टनरशिप कर एक उम्मीद जरूर जगाई थी. भले ही अश्विन 37 रन बनाकर आउट हो गए. लेकिन इन दोनों की बल्लेबाजी ने टॉप ऑर्डर की कलई खोल दी. जब ये दोनों पिच पर टिक सकते हैं तो फिर वो क्यों नहीं टिके जिनका काम ही पिच पर टिकना था? यही नहीं, ये भी लगा कि कोई बल्लेबाज को बताने वाला नहीं था कि आपका काम इस वक्त ताबड़तोड़ रन बनाना नहीं है, केवल क्रीज पर खड़ा रहना है.

इस हार पर तो मंथन जरूरी?

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जिस तरह से पूरी टीम 135 रन पर सिमट गई उससे साफ हो गया केवल पिच को दोषी बताकर बल्लेबाज बच नहीं सकते. बल्लेबाज के सामने लंबा वक्त था, केवल क्रीज पर खड़े रहने की जरूरत थी. जब क्रीज पर खड़े रहते तो रन अपने आप जुड़ते जाते. एक तरह से ये हार को 'जल्दबाजी में जीत' में जीत का नतीजा है. टीम इंडिया को इस मंथन भी करना चाहिए.

ये आंकड़े गवाह

अगर आप भारतीय बल्लेबाजों के रन और गेंद की तुलना करें तो तस्वीर साफ हो जाएगी कि बल्लेबाज कितनी जल्दबाजी थे. मुरली विजय 32 गेंद में 13 रन, शिखर धवन 20 गेंद में 16 रन, चेतेश्वर पुजारा 13 गेंद में 4 रन, विराट कोहली 40 गेंद में 28 रन, रोहित शर्मा 30 गेंद में 10 रन, रिद्धिमान साहा 19 गेंद में 8 रन और हार्दिक पंड्या 5 गेंद में महज एक रन बनाकर आउट हुए. अगर किसी एक बल्लेबाज ने पिच पर टिकने की कोशिश की होती तो शायद परिणाम कुछ और होते.

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