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आजादी के 75 सालः खेल का सुपरपावर है भारत, हॉकी-क्रिकेट में दिखा स्वर्णिम युग लेकिन...

देश अपनी आजादी की 75वीं वर्षगांठ मना रहा है. भारत दिन प्रतिदिन सफलता की नई ऊंचाइयों को छू रहा है. 75 साल के इस सफर में भारत ने हर क्षेत्र में खूब तरक्की की है. खेलों में भी भारतीयों ने अपना दमखम दिखाया है.

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India at 75.
India at 75.
स्टोरी हाइलाइट्स
  • आजादी का अमृत महोत्सव: खेलों में भारत ने हासिल कीं ऊंचाइयां
  • भारतीय खिलाड़ियों ने लगाई कीर्तिमानों की झड़ी

अपना देश भारत आजादी के 75 साल पूरे कर रहा है. आज भारत की गिनती ऐसे देशों में होती है, जो दिन प्रतिदिन सफलता की नई ऊंचाइयों को छू रहा है. 75 साल के इस सफर में भारत ने रक्षा, स्वास्थ्य, शिक्षा, विज्ञान और आर्थिक क्षेत्र में खूब तरक्की की है. साथ ही खेलों की दुनिया में भी भारतीय खिलाड़ियों ने अपना दमखम दिखाया है. क्रिकेट के साथ-साथ बॉक्सिंग, बैडमिंटन, निशानेबाजी और कुश्ती जैसे खेलों में आज भारत की तूती बोलती है. 

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आजादी के 75 साल: खेल जगत में भारत का प्रदर्शन 

क्रिकेट में भारत बन चुका है महाशक्ति: भारत जब आजाद हुआ था, तब क्रिकेट का इतना बोलबाला नहीं था. लेकिन धीरे-धीरे भारत इस खेल में अपनी पैठ बनाता चला गया. एक तरह से कह सकते हैं कि क्रिकेट में भारत के दबदबे की नींव 1983 विश्व कप ने रख दी थी, जहां कमजोर समझी जाने वाली भारतीय टीम ने कपिल देव की कप्तानी में वेस्टइंडीज को हराकर ट्रॉफी पर कब्जा किया था. इसके बाद भारत 28 साल तक वर्ल्ड कप नहीं जीत सका, लेकिन इस दौरान भारतीय क्रिकेट नई ऊंचाइयों को छू चुका था.

World Cup Final 1983 India v West Indies at Lord's Fans invade the pitch at the end of the match. (Getty)

इस दौर में भारतीय क्रिकेट नियंत्रण बोर्ड (BCCI) की आर्थिक स्थिति भी सुधर चुकी थी और उसका वर्ल्ड क्रिकेट पर दबदबा दिखना शुरू हो चुका था. सचिन तेंदुलकर, राहुल द्रविड़, अनिल कुंबले, वीरेंद्र सहवाग जैसे सितारे विश्व पटल पर छा चुके थे. साथ ही सौरव गांगुली की कप्तानी में भारतीय टीम विदेशी जमीन पर लड़ना सीख चुकी थी और वह बेखौफ होकर क्रिकेट खेलने लगी थी. 2003 में भारत ने विश्व कप के फाइनल में प्रवेश किया, लेकिन जीत हासिल नहीं कर सका.

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सौरव गांगुली के बाद राहुल द्रविड़ और अनिल कुंबले ने टीम की बागडोर संभाली, लेकिन दोनों को ज्यादा कामयाबियां हासिल नहीं हुईं. बाद में एमएस धोनी टीम के कप्तान बने और उन्होंने अपनी कप्तानी का जादू बिखेर दिया. 2007 में टी20 प्रारूप का पहला विश्व कप खेला गया, जिसमें एमएस की कप्तानी में भारत ने जीत हासिल की. धोनी की कप्तानी में ही 2011 में टीम इंडिया ने वनडे विश्व कप अपने नाम किया.

भारतीय टीम की बड़ी कामयाबियों की बात करें तो वह दो बार वनडे विश्व कप और एक बार टी20 वर्ल्ड कप पर कब्जा कर चुकी है. वहीं, दो मौकों पर ही भारत ने आईसीसी चैम्पियंस ट्रॉफी भी अपने नाम किया है. क्रिकेट भारत में अब एक रिलीजन के समान बन चुका है, जिसमें इंडियन प्रीमियर लीग (IPL) का काफी बड़ा हाथ रहा है. आईपीएल के जरिए देसी-विदेशी खिलाड़ियों पर शोहरत के साथ ही पैसों की भी बरसात होती है.

भारतीय हॉकी का स्वर्णिम युग : आजादी से पहले भारतीय हॉकी टीम ने ओलंपिक में तीन गोल्ड मेडल हासिल किए थे. आजादी के बाद भी भारत का हॉकी में दबदबा कायम रहा और उसने 1948, 1952, 1956, 1964 और 1980 के ओलंपिक में भी गोल्ड मेडल और जीते. 1964 के टोक्यो ओलंपिक के बाद भारतीय हॉकी का पतन शुरू हो गया और वह उसके बाद किसी तरह मॉस्को ओलंपिक (1980) में ही गोल्ड मेडल हासिल कर सकी. 

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अब हालिया कुछ सालों में भारतीय टीम ने एकबार फिर अपने प्रदर्शन में काफी सुधार किया है जिससे उम्मीद बंधी है कि भारत हॉकी में फिर से अपने पुराने गौरव को हासिल करेगा. पिछले साल टोक्यो ओलंपिक में भारतीय टीम ने 41 साल के सूखे को समाप्त करते हुए मेडल भी हासिल किया. पुरुष टीम तो अब शानदार खेल दिखा ही रही है, महिला टीम ने भी हालिया परफॉर्मेंस से नई उम्मीदें जगाई हैं.

When India won the bronze medal in men's hockey beating Germany 5-4 in the Tokyo Olympics.

... पर टेनिस में प्रदर्शन का गिरता ग्राफ

टेनिस में भारतीय खिलाड़ी के प्रदर्शन में काफी गिरावट आई है. 2017 के बाद किसी भी भारतीय खिलाड़ी ने ग्रैंड स्लैम नहीं जीता है. लिएंडर पेस और महेश भूपति जहां टेनिस करियर को बाय-बाय कह चुके हैं. वहीं, सानिया मिर्जा और रोहन बोपन्ना अपने करियर के आखिरी पड़ाव पर खड़े हैं.

भारतीय फैन्स को सुमित नागल, रामकुमार रामनाथन जैसे खिलाड़ियों से बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद रहती है जिस पर वह अब तक खरा नहीं उतर पाए हैं. सीनियर लेवल पर तो भारतीय टेनिस की हालत दयनीय हो ही चुकी है, जूनियर लेवल पर भी स्थिति कुछ खास नहीं है. ऐसे में टेनिस में भारत का भविष्य फिलहाल दयनीय दिखाई देता है.

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फुटबॉल की बात करें आजादी के बाद कुछ सालों तक भारत इस खेल में शानदार प्रदर्शन करता रहा. 1951 और 1962 के एशियाई खेलों में भारत फुटबॉल में गोल्ड मेडल जीतने में कामयाब रहा था, लेकिन उसके बाद से भारत इस खेल में पिछड़ता चला गया. फुटबॉल की दुर्दशा का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि भारत अब तक एक बार भी फीफा विश्व कप के लिए क्वालिफाई नहीं कर सका है.

यही नहीं, एएफसी एशियन कप में भी जगह बनाने के लिए भी भारतीय फुटबॉल टीम को काफी मशक्कत करनी पड़ती है. इस दौर में बाईचुंग भूटिया और सुनील छेत्री ने अपने प्रदर्शन से वर्ल्ड कप खेलने की उम्मीदें जगाईं, लेकिन इस अधूरे सपने को पूरा करने के लिए भारतीय टीम को इन जैसे कई टैलेंटेड खिलाड़ियों की दरकार है.

कुश्ती-बॉक्सिंग में बन रहे सुपर पावर

भारतीय खिलाड़ी कुश्ती और बॉक्सिंग में अब मेडल ला रहे हैं, जो प्लस प्वाइंट है. आजादी के बाद भारत को पहला व्यक्तिगत मेडल कुश्ती में ही हासिल हुआ था, जब साल 1952 के ओलंपिक में केडी जाधव ब्रॉन्ज जीतने में सफल हुए थे. हालांकि उसके बाद भारत कॉमनवेल्थ गेम्स और एशियन गेम्स में शानदार प्रदर्शन के बावजूद ओलंपिक में कई सालों तक मेडल नहीं जीत पाया. जब सुशील कुमार ने 2008 में बीजिंग ओलंपिक में कांस्य पदक जीता, उसके के बाद कुश्ती में एक नई क्रांति आ गई. उसके बाद ऐसा कोई ओलंपिक नहीं गया, जहां भारत को कुश्ती में पदक नहीं मिला हो. आने वाले पेरिस ओलंपिक में भारतीय खिलाड़ी अगर कुश्ती में 5-6 मेडल जीत लें तो कोई हैरानी नहीं होनी चाहिए.

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बॉक्सिंग में भी भारत अब काफी अच्छा प्रदर्शन कर रहा है. साल 2008 में विजेंदर सिंह और 2012 में एमसी मेरीकॉम ने ओलंपिक में मेडल जीतकर ये बताया था कि भारत बॉक्सिंग में आने वाले सालों में सुपर पावर बनने जा रहा है. पिछले साल टोक्यो ओलंपिक में लवलीना बोरगोहेन ने कांस्य जीतकर ये साबित किया था कि बॉक्सिंग में प्रतिभाशाली खिलाड़ियों की कमी नहीं है. निकहत जरीन, अमित पंघल जैसे खिलाड़ी जिस तरह का प्रदर्शन कर रहे हैं, उससे भारत का भविष्य बॉक्सिंग में काफी उज्ज्वल दिखता है.

बैडमिंटन, शूटिंग और वेटलिफ्टिंग में भी छा रहे भारतीय: एक समय बैडमिंटन में चीन का दबदबा होता था, लेकिन यह धीरे-धीरे समाप्त होता दिखाई दे रहा है. चीन के इस दबदबे को समाप्त करने में भारत का अहम रोल रहा है. प्रकाश पादुकोण और पुलेला गोपीचंद ने ऑल इंग्लैंड चैम्पियनशिप जीतकर जो शुरुआत की थी उसे पीवी सिंधु, किदांबी श्रीकांत, लक्ष्य सेन, सात्विक-चिराग और साइना नेहवाल जैसे प्लेयर्स ने इसे आगे बढ़ाया है. 

PV Sindhu wins bronze medal to create history for India at Tokyo Olympics. (Getty)

साइना नेहवाल ने जहा लंदन ओलंपिक में कांस्य जीता था, वहीं सिंधु रियो ओलंपिक (2016) में सिल्वर और टोक्यो ओलंपिक (2022) में कांस्य पदक जीतने में कामयाब रही थीं. यही नहीं पीवी सिंधु एक मौके पर वर्ल्ड चैम्पियनशिप जीतने में भी कामयाब रही है. थॉमस कप में भी भारत की पुरुष टीम ने पहली बार गोल्ड मेडल जीतकर इतिहास रचा है.

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वेटलिफ्टिंग में भी भारत अब कमाल का खेल दिखा रहा है. 2000 में कर्णम मल्लेश्वरी ने सिडनी ओलंपिक में ब्रॉन्ज मेडल हासिल किया था. फिर 21 साल बाद टोक्यो ओलंपिक में मीराबाई चनू ने सिल्वर मेडल जीत इस इवेंट में भारत को दूसरा मेडल दिलाया. कॉमनवेल्थ गेम्स 2022 में भी भारतीय वेटलिफ्टर्स ने 10 मेडल हासिल किए. इस दौरान जेरेमी लालरिनुंगा, अचिंता शेउली जैसे युवा खिलाड़ियों का प्रदर्शन काफी सराहनीय रहा था. आने वाले ओलंपिक एवं एशियन गेम्स में भारतीय वेटलिफ्टर्स से अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद की जा रही है.

शूटिंग की बात की जाए तो राज्यवर्धन सिंह राठौड़ ने 2004 के ओलंपिक में रजत पदक जीतकर शूटिंग में भारत को नई पहचान दिलाई. 2008 में अभिनव बिंद्रा ने इसी खेल के जरिए ओलंपिक में भारत को व्यक्तिगत स्पर्धा का पहला गोल्ड मेडल दिलाया था. इसके बाद लंदन ओलंपिक में विजय कुमार और गगन नारंग मेडल जीतने में सफल हो. हालांकि रियो और टोक्यो ओलंपिक में भारत निशानेबाजी में कोई मेडल नहीं जीत पाया था, जो उसके लिए चिंताजनक बात रही.  

एथलेटिक्स में नीरज चोपड़ा ने जगाई नई उम्मीद: टोक्यो ओलंपिक में जब नीरज चोपड़ा के गोल्ड मेडल जीतने के बाद भारत का राष्ट्रगान बज रहा था तो करोड़ों देशवासी भावुक हो गए. ऐसा होना स्वाभाविक था क्योंकि पहली बार किसी भारतीय एथलीट ने ओलंपिक में गोल्ड मेडल हासिल किया था.

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Tokyo 2020: Neeraj Chopra of India celebrates after winning the gold medal in the Javelin. (Getty)

जेवलिन थ्रो में मिले नीरज चोपड़ा के उस गोल्ड मेडल ने एथलेटिक्स को लेकर भारत के युवाओं में एक नई ऊर्जा का संचार किया है. ऐसे में पूरी उम्मीद है कि आने वाले सालों में भारत एथलेटिक्स में और भी अच्छा प्रदर्शन करने में कामयाब रहेगा. हालिया कॉमनवेल्थ गेम्स में भारतीय खिलाड़ियों ने त्रिपल जंप, हाई जंप और लॉन्ग जंप जैसे इवेंट्स में मेडल जीतकर सुनहरे भविष्य के साफ संकेत दे दिए हैं.

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