अफगानिस्तान में तालिबान ने पिछले ही साल तख्ता पलट करते हुए पूरे देश पर कब्जा कर लिया. इस दौरान उन्होंने महिलाओं के खेलने पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया. साथ ही प्रोफेशनल महिलाएं भी तालिबान के राज में घर से निकलने में डरने लगी और चहारदीवारी में कैद हो गईं.
आज हम ऐसी ही एक महिला नादिया नदीम की बात कर रहे हैं, जो साल 2000 में तालिबान के जुल्म सहकर अफगानिस्तान से भागकर डेनमार्क पहुंची थीं. तालिबान ने उनके पिता को मार दिया था. उनके पिता आर्मी में जनरल थे. डेनमार्क पहुंचकर यह महिला एक स्टार फुटबॉलर बनी.
फुटबॉल के साथ डॉक्टर बनने के लिए 5 साल पढ़ाई की
नादिया ने डेनमार्क के अलावा पेरिस सेंट-जर्मेन (PSG) और मैनचेस्टर सिटी क्लब के लिए फुटबॉल खेली. कुल 200 गोल किए. अब अपनी मेहनत से डॉक्टर भी बन गई हैं. नादिया आज 11 भाषाओं को जानती हैं. नादिया ने फुटबॉल खेलने के दौरान ही करीब 5 साल तक पढ़ाई की और सोमवार (17 जनवरी) को डॉक्टर भी बन गईं. उन्होंने अरहस यूनिवर्सिटी से मेडिकल ड्रिग्री हासिल की है. नादिया फुटबॉल से रिटायरमेंट के बाद बतौर डॉक्टर ही लोगों की सेवा करना चाहती हैं.
नादिया के परिवार के लिए अफगानिस्तान सुरक्षित नहीं था
इस स्टार फुटबॉलर का जन्म 2 जनवरी 1988 को अफगानिस्तान के हेरात में हुआ था. वहां वह अपने माता-पिता और 4 बहनों के साथ रहती थीं. एक दिन उनके पिता तालिबान के हमले में मारे गए. ऐसे में बिना किसी आदमी के परिवार में यह सिर्फ 6 महिलाएं ही बची थीं, जिनके लिए फिर वह देश सुरक्षित नहीं रहा था. उस मुश्किल हालात में नादिया के परिवार ने देश छोड़ने का फैसला किया और वे डेनमार्क में आकर बस गईं.
Thanks to everyone who has been supporting me from day 1, and all new friends I made along the road. I could not have done it without you, and I will forever be grateful for your support ❤️
— Nadia Nadim (@nadia_nadim) January 14, 2022
For the haters, I did it again. Kicked a** and there’s nothing you can do about it! pic.twitter.com/zqdy3kay0b
नादिया एक शानदार फुटबॉलर बनीं. उन्होंने 2009 में डेनमार्क के लिए डेब्यू किया. इसके बाद इस देश के लिए नादिया ने 99 मैच खेले. नादिया ने डेनमार्क को यूएफा यूरो कप में ब्रॉन्ज और 2017 में सिल्वर मेडल दिलाया.