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Paralympics: 8 की उम्र में लकवा, मां ने फिजियोथेरेपी सीख पैरों पर खड़ा किया, ऐसा है योगेश कथुनिया का सफर

टोक्यो पैरालंपिक्स में भारत के योगेश कथुनिया ने डिस्कस थ्रो में सिल्वर मेडल जीत लिया है. सोमवार को उन्होंने अपने छठे और आखिरी प्रयास में (44.38 मीटर, सीजन बेस्ट) अपना सर्वश्रेष्ठ थ्रो किया और मेडल पर कब्जा कर लिया. 

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योगेश कथूनिया (फोटो- SAI Media)
योगेश कथूनिया (फोटो- SAI Media)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • डिस्कस थ्रो में योगेश ने जीता सिल्वर
  • आखिरी प्रयास में 44.38 मीटर थ्रो किया

टोक्यो पैरालंपिक्स (Tokyo Paralympics 2020) में भारत के योगेश कथुनिया (Yogesh Kathuniya) ने सिल्वर मेडल जीत लिया है. उन्होंने अपने छठे और आखिरी प्रयास में 44.38 मीटर थ्रो कर मेडल पर कब्जा किया. दिल्ली के 24 साल के योगेश का पहला, तीसरा और चौथा प्रयास विफल रहा था. योगेश की जीत पर प्रधानमंत्री मोदी (PM Modi) ने उन्हें फोन लगाकर बात की और ट्विटर पर उनकी परफॉर्मेंस को 'आउटस्टैंडिंग' बताया.

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लेकिन, योगेश के लिए यहां तक पहुंचने में उनकी परिवार और उनके एक दोस्त की भूमिका है. 3 मार्च 1997 को जन्मे योगेश जब 8 साल के थे, तभी उन्हें लकवा मार दिया. उनके हाथ और पैर ने काम करना बंद कर दिया था. काफी इलाज के बाद उनके हाथों ने तो काम करना शुरू कर दिया, लेकिन पैर वैसे ही रहे. हालांकि, वो व्हीलचेयर से अपने पैरों पर आ गए थे. 

इंडियन एक्सप्रेस ने योगेश के हवाले से लिखा है कि उनकी मां मीना देवी ने फिजियोथैरेपी सीखी, ताकि वो अपने बेटे को दोबारा पैरों पर खड़ा कर सकें. ये उनकी मां की मेहनत का ही नतीजा था कि योगेश तीन साल में व्हीलचेयर से उतरकर अपने पैरों पर खड़े होने लगे.

हर खेल में हाथ आजमाना चाहते थे योगेश

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योगेश की रुचि बचपन से ही खेलों में थे. उनकी स्कूली पढ़ाई चंडीगढ़ के एक आर्मी स्कूल से हुई. उन्होंने वहां डिस्कस थ्रो और जैवलिन थ्रो दोनों में हाथ आजमाया. हालांकि, बाद में उन्होंने डिस्कस थ्रो पर फोकस किया. लेकिन वहां उन्हें खेल की ज्यादा सुविधा नहीं मिली. उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी के किरोड़ीमल कॉलेज से पढ़ाई की. कॉलेज के दिनों में उनके कोच ने उनकी प्रतिभा को देखा और बाद में उन्होंने दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम में कोच सत्यपाल सिंह से कोचिंग ली.

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टिकट के लिए दोस्त ने की थी मदद...

दिल्ली यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के दौरान योगेश के एक दोस्त हुआ करते थे सचिन यादव, जिन्होंने पेरिस जाने के लिए टिकट के पैसे दिए थे. सचिन ने योगेश को खेल के लिए प्रोत्साहित किया. उन्हें पैरा एथलीटों के वीडियो दिखाए. 

एक इंटरव्यू में योगेश ने बताया था कि उन्हें एक बार पेरिस में होने वाली ओपन ग्रैंडप्रिक्स चैंपियनशिप में जाना था. इसके लिए टिकट और बाकी दूसरे खर्चों के लिए उन्हें 86 हजार रुपये की जरूरत थी. लेकिन घर में आर्थिक तंगी पहले से ही थी. इसके बाद सचिन ने ही उनकी मदद की और वहां जाकर उन्होंने गोल्ड मेडल जीता था.

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20 साल की उम्र से खेलना शुरू किया

योगेश जब 20 साल के थे, तब उन्होंने खेलना शुरू कर दिया. 2018 में पंचकूला में हुई नेशनल चैंपियनशिप में उन्होंने डिस्कस थ्रो में गोल्ड जीता. उसके बाद इसी साल बर्लिन में हुई ओपन ग्रैंडप्रिक्स में भी गोल्ड जीता. 2019 में पेरिस में हुई ओपन ग्रैंडप्रिक्स में भी गोल्ड मेडल जीता. उसी साल दुबई में हुई वर्ल्ड चैंपियनशिप में ब्रॉन्ज मेडल जीता. टोक्यो पैरालंपिक के ट्रायल के दौरान योगेश ने 45.58 मीटर का थ्रो किया था.

 

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