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India In Olympics, KD Jadhav: वो भारतीय पहलवान... जिसने घर गिरवी रखकर ओलंपिक में लिया भाग, फिर रचा इतिहास

पेरिस ओलंपिक 2024 26 जुलाई से लेकर 11 अगस्त तक खेला जाना है. देखा जाए तो ओलंपिक में अब तक भारत ने 10 गोल्ड, 9 सिल्वर और 16 ब्रॉन्ज मेडल जीते हैं. इन 10 में से आठ गोल्ड तो भारत ने फील्ड हॉकी में जीते.

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KD Jadhav (File Photo)
KD Jadhav (File Photo)

पेरिस ओलंपिक 2024 की शुरुआत में अब ज्यादा समय नहीं बचा है. पेरिस ओलंपिक 26 जुलाई से 11 अगस्त तक खेला जाना है. इस ओलंपिक के लिए भारतीय खिलाड़ी भी अपनी तैयारियों को अंतिम रूप देने में जुटे हुए हैं. भारत ने टोक्यो ओलंपिक 2020 में एक स्वर्ण सहित 7 पदक जीतकर इन खेलों में अब तक का अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया था. अब इस बार वो अपने रिकॉर्ड में सुधार करना चाहेगा.

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इस भारतीय रेसलर ने रचा था इतिहास

देखा जाए ओलंपिक में अब तक भारत ने 10 गोल्ड, 9 सिल्वर और 16 ब्रॉन्ज मेडल जीते हैं. इन 10 में से आठ गोल्ड तो फील्ड हॉकी में आए, लेकिन फिर भी चर्चा उस पदक की होती है जिसे केडी जाधव ने हासिल किया. केडी जाधव ओलंपिक की व्यक्तिगत स्पर्धा में पदक जीतने वाले पहले भारतीय खिलाड़ी थे. जाधव ने 1952 के हेलसिंकी ओलंपिक में कुश्ती में कांस्य पदक जीतकर इतिहास रचा था. जाधव से पहले 1900 के ग्रीस ओलंपिक में नॉर्मन प्रिचर्ड ने दो सिल्वर मेडल जीते थे, लेकिन वे भारतीय मूल के नहीं थे. भारत तब अंग्रेजों के गुलाम था और प्रिचर्ड ने ब्रिटिश झंडे के तहत ओलंपिक में भाग लिया था.

खाशाबा दादासाहेब जाधव का जन्म साल 1926 में महाराष्ट्र के सतारा जिले में एक मराठी परिवार में हुआ था. उनके पिता दादासाहेब खुद भी पहलवान थे और महज 5 साल की उम्र में ही उन्होंने अपने बेटे को कुश्ती से परिचित करवा दिया. छोटे कद के जाधव ऊपर से देखने में बेहद कमजोर दिखाई देते थे. जिसके चलते राजाराम कॉलेज के स्पोर्ट्स टीचर ने उन्हें वार्षिक खेलों की टीम में शामिल करने से इंकार कर दिया. बाद में काफी मिन्नतों के बाद कॉलेज के प्रिंसिपल ने उन्हें प्रतियोगिता में भाग लेने की इजाजत दे दी थी. 

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करियर के शुरुआती दौर में केडी जाधव को बाबूराव बलावडे और बेलापुरी गुरुजी ने ट्रेनिंग दी. जाधव ने अपने कुश्ती के जुनून को आगे बढ़ाने के लिए अपनी शिक्षा से समझौता नहीं किया. लेकिन वह राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर कुश्ती प्रतियोगिता में भाग लेते रहे. जाधव ने 1948 के लंदन ओलंपिक में भी भाग लिया था, जहां वो छठे स्थान पर रहे. हालांकि उन्होंने उस ओलंपिक में अपने खेल से काफी सुर्खियां बटोरीं.

...जब गिरवी पर रखना पड़ा घर

लंदन से वापस लौटते ही जाधव ने हेलसिंकी ओलंपिक की तैयारी शुरू कर दी. हालांकि जब हेलसिंकी जाने का समय आया तो उनके पास पैसे ही नहीं थे. जाधव ने बॉम्बे स्टेट के तत्कालीन मुख्यमंत्री मोरारजी देसाई से मिलकर मदद की गुहार लगाई. देसाई ने उन्हें खेलकर लौटने के बाद मिलने को कहा. राजाराम कॉलेज में उनके प्रिंसिपल खरिडकर ने सात हजार रुपये की मदद दी. बाद में राज्य सरकार ने भी 4000 रुपये दे दिए, लेकिन ये रकम काफी नहीं थे. फिर जाधव ने अपना घर गिरवी रखकर और कई लोगों से उधार लेकर हेलसिंकी का सफर तय किया. 

केडी जाधव ने बैंटमवेट फ्रीस्टाइल वर्ग में अपने पहले 5 मुकाबले आसानी से जीत लिए. लेकिन छठे मुकाबले में उन्हें जापान के शोहाची इशी से हार का सामना करना पड़ा. इसके बाद जाधव के पास फाइनल में पहुंचने का एक और बेहतरीन मौका था. इस बार मुकाबला रूसी पहलवान राशिद मम्मादबियोव से था, लेकिन जाधव को यह बाउट शोहाची से मुकाबले के तत्काल बाद लड़नी पड़ी. जबकि नियमानुसार उन्हें 30 मिनट का आराम दिए जाने का प्रावधान था. जाधव के साथ कोई भी भारतीय अधिकारी मौजूद नहीं था और उन्हें बहुत अच्छी अंग्रेजी भी नहीं आती थी, इसलिए वे अपना पक्ष नहीं रख पाए. थकान की वजह से जाधव को मुकाबले में हार का मुंह देखना पड़ा, फिर भी वह देश के लिए इतिहास रच चुके थे.

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स्वागत में निकाली गईं 101 बैलगाड़ियां

केडी जाधव जब कांस्य पदक जीतकर भारत आए तो उनके सम्मान में 101 बैलगाड़ियों की यात्रा का इंतजाम किया गया था. साल 1955 में उन्हें मुंबई पुलिस में सब इंस्पेक्टर की नौकरी दी गई. पुलिस में बेहतरीन परफॉर्मेंस की बदौलत जाधव रिटायरमेंट से 6 महीने पहले असिस्टेंट पुलिस कमिश्नर (ACP) बन गए थे. 14 अगस्त 1984 को एक सड़क दुघर्टना में गंभीर रूप से घायल होने के बाद उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया.

देश के लिए पहला पदक जीतने वाले इस पहलवान को भारत सरकार जीते जी उचित सम्मान नहीं दे सकी. ओलंपिक पदक जीतने के 50 साल बाद 2001 में उन्हें मरणोपरांत अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया. साल 2010 में दिल्ली के इंदिरा गांधी स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स में मौजूद कुश्ती स्टेडियम का नामकरण केडी जाधव के नाम पर हुआ. केडी जाधव को छोटी हाइट के चलते ‘पॉकेट डायनेमो’ के नाम से भी जाना जाता था.

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