Why Athletes Bite Medal: पेरिस ओलंपिक 2024 का आगाज इसी हफ्ते 26 जुलाई को होगा. यह गेम्स 11 अगस्त तक चलेंगे. इस बार ओलंपिक के लिए भारत का 117 सदस्यीय दल पेरिस पहुंचा है. भारत को एथलीट्स से रिकॉर्ड मेडल जीतने की उम्मीद है. मगर यहां हम कुछ जरा हटकर बात करने वाले हैं. यह किसी एथलीट के मेडल जीतने के बाद उसे दांतों से काटने के बारे में है.
ओलंपिक हो, कॉमनवेल्थ या फिर एशियन गेम्स... फैन्स ने अक्सर पोडियम पर खड़े होकर अपने मेडल को काटते हुए एथलीट्स की तस्वीरें देखी हैं. अब सवाल यह भी है कि किसी भी बड़े टूर्नामेंट में जब कोई एथलीट मेडल जीतता है, तो वो पोडियम पर खड़े होकर उसे दांतों से क्यों काटता है?
जब मुद्रा के रूप में सोने के सिक्के चलते थे
क्या यह कोई नियम है या कोई परंपरा है? फैन्स हमेशा ही इस सवाल को लेकर कन्फ्यूज और जवाब जानने को उत्सुक होते हैं. मगर जब इसी सवाल को मन में लेकर जब इतिहासकारों की बातों पर ध्यान केंद्रित किया जाए तो माजरा कुछ अलग ही दिखता है.
इतिहास के मुताबिक, पुराने समय में जब मुद्रा के रूप में कीमती धातु का इस्तेमाल होता था. तब सोने के सिक्कों की प्रामाणिकता की जांच के लिए व्यापारी उनको काटते थे. क्योंकि सोना नरम धातु है और थोड़े ही दबाव में फट सा जाता है. यदि उसे कुतरा जाए तो वो अपनी छाप छोड़ देता है.
1912 के बाद सोने के शुद्ध मेडल देना बंद हुआ
मगर मेडल को दांतों से काटने का मतलब उसकी शुद्धता की परख करना नहीं होता है. खिलाड़ियों के बारे में ऐसा कहना भी ठीक नहीं होगा. बता दें कि 1912 से पहले शुद्ध सोने के मेडल दिए जाते थे. मगर इसके बाद से इंटरनेशनल ओलंपिक कमेटी (IOC) ने शुद्ध स्वर्ण पदक देना बंद कर दिया था. मगर ऐसा नहीं है कि उन्होंने मेडल को दांतों से काटने के कारण ऐसा किया है.
ऐसा भी कहा जाता है कि 1912 से पहले भी एथलीट मेडल को अपने दांतों से काटते थे. तब वे सोने की शुद्धता के लिए करते थे. मगर यह परंपरा 1912 के बाद अब भी कायम है. हालांकि अब मेडल को दांतों के काटने के पीछे दूसरी धारणा मानी जाती है. कहा जाता है कि एथलीट ऐसा करके अपनी प्रतियोगिता में उनकी कड़ी मेहनत, टक्कर और जोश को दर्शाता है.
इसके अलावा एथलीट अपने मेडल को दांतों से क्यों काटते हैं इसको लेकर ओलंपिक की वेबसाइट पर भी एक जानकारी दी गई है. ओलंपिक के मुताबिक एथलीट सिर्फ फोटो खिंचवाने के लिए मेडल को दांतों से काटते हैं. जब एथलीट अपना मेडल लिए पोडियम पर खड़े होते हैं, तब फोटोग्राफर उनसे मेडल दांतों से काटने जैसा पोज बनाने को कहते हैं.
फोटोग्राफर के लिए एथलीट ऐसा पोज देत हैं
इसको लेकर फोटोग्राफर का मानना कुछ अलग ही होता है. वो हमेशा ही एथलीट से इस पोज की मांग करते हैं. फोटोग्राफर के लिए यह पोज एक शान होती है और उनका मानना है कि यह शानदार पोज अगले दिन अखबार के फ्रंट पेज पर छपेगा. यही कारण है कि फोटोग्राफर खुद ही एथलीट्स से इस पोज की अपील करते हैं.
इंटरनेशनल सोसाइटी ऑफ ओलंपिक हिस्टोरियंस (ISOH) के पूर्व अध्यक्ष डेविड वालेचिन्स्की ने सीएनएन को बताया था, 'यह फोटोग्राफरों के लिए एक जरूरी पोज बन गया है. मुझे लगता है कि वे इसे एक प्रतिष्ठित शॉट के रूप में देखते हैं, जिसे शायद वे आसानी से बेच सकते हैं. मुझे नहीं लगता कि यह ऐसा कुछ है जो एथलीट खुद से करें.'
एक एथलीट ने तो अपना दांत ही तोड़ लिया था
मेडल को अपने दांतों से काटने वाला पोज एथलीट के लिए नहीं बल्कि फोटोग्राफर के लिए परंपरा जैसा बन गया है. इस पोज के चक्कर में एक एथलीट ने अपना दांत ही तोड़ लिया था. यह वाकया 2010 के शीतकालीन ओलंपिक का है. जब जर्मन लुगर डेविड मोलर ने सिल्वर मेडल जीता था.
तब एक फोटोग्राफर ने मोलर से वही मेडल को दांतों से काटने वाला पोज देने को कहा. इसी दौरान उनका एक दांत टूट गया था. यह बात खुद मोलर ने एक जर्मन न्यूज पेपर बिल्ड को बताया था. उन्होंने कहा था, 'फोटोग्राफर दांतों से मेडल पकड़े हुए मेरी तस्वीर लेना चाहते थे. बाद में डिनर के टाइम मैंने देखा कि मेरा एक दांत गायब था.'
भविष्य में शायद ऐसा भी देखने को भी मिल सकता है कि इस पोज के कारण कोई एथलीट डेंटिस्ट के पास दांत की तकलीफ लेकर जाए. यानी यह भी साफ है कि मेडल को दांतों से काटने का ना तो कोई नियम है और ना ही कोई यह परंपरा है. मगर अब यह पोज एक परंपरा का रूप लेता जा रहा है.