सुशील कुमार, 29 वर्ष
कुश्ती, पुरुषों की 66 किलो फ्रीस्टाइल
बपरौला, हरियाणा
खेल की शैली उन्होंने अपने शरीर को हल्का-सा झुकाया और अपने प्रतिद्वंद्वी की आंखों में आंखें डाल दीं, जैसे यह जानने की कोशिश कर रहे हों कि आखिर उसके दिमाग में चल क्या रहा है. रिंग में घूमते-घूमते जैसे ही वे अपने प्रतिद्वंद्वी से भिड़ते हैं, दोनों ही एक-दूसरे के चूक का इंतजार करते हैं. सुशील बिजली की तरह दांव चलते हैं और अपने प्रतिद्वंद्वी को धूल चटा देते हैं.
एम.सी. मैरीकॉम, 29 वर्ष
बॉक्सिंग, 51 किलो; इंफाल, मणिपुर
उनकी कहानी इंटरनेशनल बॉक्सिंग फेडरेशन जब महिला बॉक्सिंग को इंटरनेशनल ओलंपिक कमेटी में बतौर कैटगरी शामिल करने पर विचार कर रहा था तब उन्होंने पांच बार विश्व चैंपियन रह चुकी एम.सी. मैरीकॉम की मिसाल को सामने रखा. अपने माता-पिता के साथ खेतों में काम करने वाली मणिपुर की इस लड़की को लेकर आलोचकों ने संदेह जताया था.
गुरमीत सिंह, 27 वर्ष
20 किमी रेस वॉकिंग
उत्तराखंड
उनकी कहानी वे एक खारिज कर दिए गए छात्र थे. उनके कोच एक रिटायर्ड एथलीट थे जो स्कूल के बच्चों को प्रशिक्षण दिया करते थे. दोनों ने मिलकर ओलंपिक में रेस वॉकिंग में भारत की मजबूत दावेदारी ठोंक दी है. कोचों ने उन्हें अच्छा प्रदर्शन नहीं करने वाला बताकर खारिज कर दिया और वे 2010 के कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए क्वालिफाइ नहीं कर पाए.
गीता फोगट, 23 वर्ष
कुश्ती, 55 किलो
भिवानी, हरियाणा
उनकी कहानी कर्णम मल्लेश्वरी ने 2000 ईस्वी. में जब सिडनी ओलंपिक में ब्रॉन्ज मेडल जीता तब महाबीर सिंह को यह भरोसा हो गया कि उनकी बेटियां भी खेलों में आगे बढ़ सकती हैं. महाबीर खुद भी पहलवान हैं. उन्होंने भिवानी के नजदीक बिलाली गांव में एक अखाड़ा खोल रखा है और यहीं पर वे अपनी बेटियों को प्रशिक्षण भी देते हैं.
दीपिका कुमारी, 18 वर्ष
इंडिविजुअल और टीम रिकर्व
रांची, झारखंड
उनकी कहानी रांची से 15 किमी दूर झारखंड के छोटे से गांव रातू चाती की उस छोटी-सी लड़की से शुरू होती है जो आम के बगीचे में जाकर आम तोड़ने के लिए पत्थर मारा करती. खेल में आगे बढ़ने का फैसला उन्होंने छोटी उम्र में ही ले लिया था. उनके पिता शिवनारायण महतो ऑटोरिक्शा चालक हैं. दीपिका को उनके पिता ने अपनी सीमित आय के बावजूद भरपूर प्रोत्साहन दिया.
अभिनव बिंद्रा, 29 वर्ष
10 मीटर एअर राइफल
मोहाली, पंजाब
खेल की शैली 2008 के बीजिंग ओलंपिक में भारत के लिए पहला इंडिविजुअल गोल्ड मेडल जीतने के पंद्रह मिनट बाद अभिनव बिंद्रा के दिलो-दिमाग पर बस एक ही एहसास छाया थाः राहत. वे अपनी जिंदगी के सबसे बड़े डर से उबर चुके थेः ओलंपिक में सुर्खियों में आना. उनकी दुनिया में, महज 0.1 पॉइंट का अंतर उन्हें पहले से दसवें स्थान पर खिसका सकता था.
संदीप सिंह, 26 वर्ष
हॉकी
शाहबाद, हरियाणा
उनकी कहानी 22 अगस्त, 2006 की बात है. तब संदीप सिंह 20 वर्ष के थे. जर्मनी में हो रहे वर्ल्ड कप में हिस्सा लेने के लिए टीम के अपने बाकी साथियों के पास जाने के लिए वह दिल्ली जाने वाली कालका एक्सप्रेस में सवार हुए. उसी बोगी में एक सब-इंस्पेक्टर भी सफर कर रहा था. उस पुलिसवाले की सर्विस रिवॉल्वर से दुर्घटनावश गोली चल गई और संदीप घायल हो गए. तीन साल तक अस्पतालों के चक्कर काटने और फिजियोथिरेपी में पसीने बहाने के बाद 2009 में सुल्तान अजलान शाह हॉकी टूर्नामेंट में उनकी वापसी हुई और वे आठ गोल दागकर टूर्नामेंट में सर्वाधिक गोल करने वाले खिलाड़ी बन गए.
रोंजन सिंह सोढी, 33 वर्ष
डबल ट्रैप शूटिंग
फिरोजपुर, पंजाब
खेल की शैली भारत-पाकिस्तान की सीमा पर बंदूक की गोली हमेशा विवाद को जन्म दे, ऐसा जरूरी नहीं. रोंजन सोढी की निजी शूटिंग रेंज पंजाब के सीमावर्ती गांव सोढी नगर में स्थित है. रोंजन ने 2008 में बेलग्रेड में आयोजित इंटरनेशनल शूटिंग स्पोर्ट फेडरेशन (आइएसएसएफ) वर्ल्ड कप में इटली के डी.आइ. स्पाइनो के 194/200 के वर्ल्ड रिकॉर्ड की बराबरी की थी.
सानिया मिर्जा, 25 वर्ष
टेनिस, मिक्स्ड और महिला डबल्स
हैदराबाद, आंध्र प्रदेश
उनकी कहानी जून में सानिया मि.र्जा ने महेश भूपति के साथ फ्रेंच ओपन मिक्स्ड डबल्स ट्रॉफी जीती. अब वे लिएंडर पेस के साथ मिलकर ओलंपिक मेडल जीतने की दौड़ में हैं. भले ही उनका देश ''एक असंतुष्ट टेनिस दिग्गज को शांत करने के लिए एक प्रलोभन के तौर पर उनका उपयोग करके'' उनके मेडल और खिताबों का सम्मान करता हो, लेकिन वे अपना सर्वश्रेष्ठ पेशेवर रवैया बरकरार रखने का वादा करती हैं.
सायना नेहवाल, 22 वर्ष
बैडमिंटन, महिला सिंगल
ढिंडर, हरियाणा
खेल की शैली वे ऊंचा कूदती हैं. अगले ही पल नीचे की तरफ झपटती हैं. वे बाईं ओर दौड़ती हैं और उसी तेजी से एकदम दाईं तरफ दौड़ पड़ती हैं. यह सब पलक झ्पकते होता है, क्योंकि 22 वर्षीया शीर्ष बैडमिंटन खिलाड़ी सायना नेहवाल, एक नहीं बल्कि चार खिलाड़ियों से मुकाबला कर रही हैं. उनके मुकाबले में उनके गुरु पुलेला गोपीचंद, इंडोनेशियाई कोच द्वी क्रिस्टियावन और साथी खिलाड़ी परुपल्ली कश्यप और गुरु साईं दत्त उतरे हुए हैं.
कृष्णा पूनिया, 29 वर्ष
डिस्कस
अग्रोहा, हरियाणा
खेल की शैली वे अपनी 80 किलो की काया की ऊर्जा को केंद्रित करने के लिए अपने फेंकने वाले हाथ को पोजीशन करती हैं. वह गति जुटाने के लिए अपना धड़ घुमाती हैं और अंत में पूरा चक्कर घूम जाती हैं. और जब वे डिस्कस को हवा में फेंकती हैं, तो अपनी मांसपेशियों की सारी ताकत दाहिनी बांह में झोंक देती हैं. उड़ती हुई डिस्क 64 मीटर दूर गिरती है, जो उनके वर्तमान व्यक्तिगत सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के करीब है, लेकिन उनके पति और कोच वीरेंद्र पूनिया को चिंता है कि इतना ओलंपिक के लिए काफी नहीं होगा.
शिव थापा, 18 वर्ष
बॉक्सिंग, 56 किलो, बैंटमवेट,
गुवाहाटी, असम.
उनकी कहानी वे इसे एक दिमाग का खेल कहते हैं, जिसमें चौंकन्ने रहना, होड़ करते रहना और आपा न खोना उम्र और अनुभव पर भारी पड़ता है. शिव थापा ने इसे तब साबित कर दिखाया, जब उन्होंने बेसग्रेड विनर टूर्नामेंट, 2011 में सीनियर लेवल के अपने पहले ही अंतरराष्ट्रीय कॉम्पीटीशन में विश्व में दूसरी वरीयता प्राप्त और अमच्योर बॉक्सिंग चैंपियन डेल्कलीव डेटलिन को बुल्गारिया में हरा कर गोल्ड मेडल जीता.
विजेंदर सिंह, 26 वर्ष
बॉक्सिंग, 75 किलो, मिडलवेट,
भिवानी, हरियाणा
उनकी कहानी भारतीय बॉक्सिंग के जबरदस्त नाम विजेंद्र सिंह ने जब 2008 में बीजिंग ओलंपिक में ब्रॉन्ज मेडल जीता था, तो उन्होंने पूरे देश में जोश की लहर पैदा कर दी थी. 2011 में अजरबैजान में एआइबीए विश्व बॉक्सिंग चैंपियनशिप में हार कर उन्होंने कई लोगों को निराश कर दिया था, जिससे लंदन ओलंपिक में उनकी जल्द एंट्री होने की संभावनाएं खतरे में पड़ गई थीं.
चेकरोवोलु स्वुरो, 30 वर्ष
तीरंदाजी, वूमंस रिकर्व
दीमापुर, नगालैंड
उनकी कहानी तीरंदाज चेकरोवोलु स्वुरो से पहले पूर्वोत्तर के नगालैंड राज्य ने मात्र एक ओलंपियन देश को दिया था. वे थे तलिमेरेन अओ, जिन्होंने 1948 के लंदन ओलंपिक खेलों में भारतीय फुटबॉल टीम का नेतृत्व किया था, जो भारत का पहला अधिकृत ओलंपिक खेल भी था. पूरे 64 साल बाद, एक और नगा खिलाड़ी भारत का प्रतिनिधित्व कर रही है, और 64 साल बाद ही ओलंपिक खेल वापस लंदन में हो रहे हैं.