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खेल

फेडरर साहब, ये देश है अलबेलों का मस्तानों का...

फेडरर साहब, ये देश है अलबेलों का मस्तानों का...
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साल 1988 में एडोबी के थॉमस और जॉन ने फोटोशॉप का निर्माण किया. यकीनन इसके पीछे उनका मकसद तस्वीरों को और अधिक खूबसूरत बनाने का रहा होगा, लेकिन समय के साथ फोटोशॉप एक दुनिया बन गई है. एक ऐसी दुनिया जहां कुछ भी हो सकता है और जिसके जरिए कोई कहीं भी पहुंच सकता है, फिर वह टेनिस स्टार रोजर फेडरर ही क्यों न हों.
इस कवायद की शुरुआत फेडरर के उस ट्वीट से हुई, जिसमें उन्होंने अपने फैंस से कहा कि वह 7 और 8 दिसंबर 2014 को दिल्ली में होंगे, लेकिन समय के अभाव में ज्यादा घूम नहीं पाएंगे. फेडरर ने फैंस #PhotoshopRF से सुझाव मांगे कि उन्हें कहां-कहां घूमना चाहिए और फिर.... फिर क्या खुद ही देख लीजिए. वैसे कमजोर दिल वाले इसे न देखें, क्योंकि हंसते-हंसते अगर आपको कुछ हो गया तो ये हमारी जिम्मेदारी नहीं होगी.
फेडरर साहब, ये देश है अलबेलों का मस्तानों का...
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फोटोशॉप आधारित तस्वीरों के गुच्छे में से यह सबसे शालीन तस्वीर है. शांत और स्थिर बिल्कुल ताजमहल की तरह. अब वाह ताज बोलिए...
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फेडरर ने बात भले ही दिल्ली आने की कही, लेकिन इस तस्वीर में फेडरर के फैन ने उन्हें जैसलमेर के दर्शन करवा दिए. दिलचस्प तो यह कि तस्वीर में फेडरर का उत्साह है जो भरी दोपहरी में भी ऊंट की बजाय अकेले रेगिस्तान मापने की हिम्मत रखते हैं. साहब! एक सुझाव दूं, पानी साथ ले जाइएगा.
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जैसलमेर में ऊंट नहीं चढ़े तो क्या हुआ, जयपुर में हाथी तो चढ़ ही सकते हैं. हाथी भी ब्रांडेड है 'आरएफ' लोगो के साथ सर्टिफाइड.
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फेडरर की सवारी में ऊंट और हाथी के बाद दिल्ली में ऑटो भी है. खास बात यह कि फेडरर ने मीटर वाले ऑटो को रिजर्व करने की बजाय शेयरिंग वाले ऑटो को वरीयता दी है. तभी तो वह पीछे की बजाय आगे ड्राइवर के बगल वाली सीट पर बैठे हैं. अगली बार आप भी शेयरिंग वाले ऑटो पर बैठना, अब तक 'स्टेटस सिंबल' भी बन गया.
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अब दिल्ली आए और मेट्रो की सवारी नहीं कि तो क्या किया. फेडरर बाबू, गाड़ी की दिशा में पहला डिब्बा महिलाओं के लिए सुरक्षित है. और हां, किसी भी कोच में महिलाओं वाली सीट पर मत बैठ जाना, कोई दीदी आकर उठा देगी.
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लगता है रोजर फेडरर को भी 'मां गंगा' ने बुलाया है. फेडरर दान तो करते ही हैं, आज डुबकी लगा लेने के बाद सारे पाप कट जाएंगे.
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ये वाला फैन थोड़ा कन्फ्यूज लगता है. दिसंबर में मैंने तो कभी होली नहीं खेली.... वैसे, भावनाओं का सम्मान तो किया ही जा सकता है.
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ट्विटर की दुनिया ही ऐसी है. अब बिना सोचे-समझे फैंस से पूछिएगा तो यही होगा.... अब गाइए, 'तन डोले मेरा मन डोले...'
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अच्छा हां, अगर इस बीच फेडरर की इच्छा कश्मीर या असम जाने की हो गई तो उन्हें पूरी यात्रा कुछ इसी अंदाज में करनी पड़ सकती है. 'जोर लगाके हइय्या...'
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हां, ताजमहल के साथ ये वाली तस्वीर मुझे बहुत पसंद आई. अब क्या है कि इसमें ताजमहल का पूरा लुक भी है और 'हैप्पी कपल' भी हैं, वो भी देसी लुक में.
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रोजर फेडरर ने फोटो लेने से पहले किसी से पूछा यह क्या है. जवाब मिला यह 'अगले 5 वर्षों तक यह मोदी का किला' है.
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गाड़ि‍यों और सवारियों के काफिले में एक तस्वीर यह भी. ऊंट, हाथी, ऑटो और मेट्रो के बाद अब ट्रक की ही कमी रह गई थी. लगता है रोजर फेडरर को इम्ति‍याज भाई की 'हाइवे' कुछ ज्यादा ही पसंद आ गई.
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दिल्ली से सीधे मैसूर टीपू सुल्तान के महल में. बढ़िया है, वैसे अगर दिन की बजाय शाम में जाते तो ज्यादा अच्छा होता. वो क्या है न कि वहां अंधेरा होने के बाद पूरे महल की लाइटिंग का नजारा कुछ और ही होता है.

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रोजर फेडरर जी बहुत हो गया घूमना-फिरना. खिलाड़ी हैं तो खि‍लाड़ि‍यों जैसी बात कीजिए. टेनिस के बाद थोड़ा क्रिकेट भी हो जाए.
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इसी की कमी रह गई थी. अब भारत आए हैं तो भारतीय के पारंपरिक नृत्यों का लुत्फ उठाना भी तो जरूरी है. लेकिन शायद फेडरर ने इस सुझाव को ज्यादा ही सीरियस ले लिया और फर्स्ट हैंड एक्सपीरियंस में जुट गए.
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लास्ट बट नॉट द लीस्ट. दिल्ली से जैसलमेर वाया मैसूर और कश्मीर. भारत की कोई भी यात्रा बॉलीवुड के बिना तो अधूरी है. एक फिल्म तो बनता है बॉस...
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