ओलंपिक खेलों की मेडल टैली में चीन हमेशा टॉप देशों में शुमार रहा है. जनसंख्या के मामले में भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है, लेकिन ओलंपिक खेलों में चीन का दबदबा रहा है.
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भारत की जनसंख्या लगभग 130 करोड़ है, लेकिन ओलंपिक खेलों में भारत को चीन के मुकाबले कम मेडल मिले हैं.
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एक बार चीन ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि बुनियादी ढांचा, फिटनेस, लड़कियों का खेलों में महत्व ये कुछ मुद्दे हैं, जो दोनों देशों के बीच अंतर पैदा करते हैं.
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चीन ओलंपिक खेलों की मेडल टैली में लगातार अपने सबसे बड़े प्रतिद्वंदी अमेरिका को पछाड़ कर नंबर वन होने की कोशिश करता है. चीन ने अपने देश के अंदर बहुत बड़ा स्पोर्ट्स ट्रेनिंग स्कूलों का मॉडल खड़ा कर रखा है. जिसके जरिए वह अच्छे एथलीट्स तैयार करता है.
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चीन के पास एक तय स्पोर्ट्स ट्रेनिंग स्कूलों का मॉडल है जिसके जरिए उसका पैसा ट्रेनिंग पर ही खर्च होता है. और चूंकि चीन खेलों पर अपने खर्चे के हिसाब से अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धाओं में पदक ले आता है तो वह अपने मॉडल को तुलनात्मक रूप से सफल मानता है.
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चीनी मीडिया का दावा है कि भारत में लड़कों को खेलों के बजाय डॉक्टर और इंजीनियर बनाने पर अधिक ध्यान दिया जाता है. वहीं चीन में 3 से ज्यादा की उम्र के बच्चे बेहद कड़ी ट्रेनिंग से गुजरते हैं. इस तकलीफ को सहकर ही वे चैम्पियन बनने की कला सीखते हैं.
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भारत में अधिकांश परिवार अपने बच्चों को डॉक्टर और इंजीनियर बनाना चाहते हैं. खेल प्रतिभाओं को परिवार और यहां तक कि पड़ोसियों का भी विरोध झेलना पड़ता है.
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चीन की तुलना में भारत में खेलकूद की बुनियादी सुविधाओं पर बहुत कम खर्च किया जाता है. बड़े टूर्नामेंट्स में भारत चीन से इसी पीछे रह जाता है. क्रिकेट एक तरह से भारत का राष्ट्रीय खेल है. भारत में क्रिकेट को धर्म माना जाता है, लेकिन क्रिकेट ओलंपिक खेलों में शामिल नहीं है.