वीरेंद्र सहवाग इन दिनों टीम इंडिया में नहीं है. मीडिया से दूर रहना ज्यादा पसंद करते हैं इसलिए टीवी चैनलों और अखबारों में भी नजर नहीं आते. लेकिन गुड़गांव से झज्जर के रास्ते पर मुड़ते ही एक बड़ा सा बोर्ड टीम इंडिया के इस धुआंधार बल्लेबाज की याद दिला देता है. ये बोर्ड है सहवाग के स्कूल का. इस पर लगी तस्वीर में वह क्रिकेट खेलते नहीं, सूट-बूट पहने बच्चों को स्कूल जाने की प्रेरणा देते नजर आते हैं.
सहवाग का नाम ही काफी है, सहवाग इंटरनेशनल स्कूल के कद का अंदाजा लगाने के लिए. हरियाणा की हरियाली के बीच बनी इस शानदार इमारत को देखते ही झज्जर जाने वाला हर शख्स अचानक ठहर जाता है.
वीरू से मुलाकात की कोशिश कई दिनों से थी, अब जाकर मौका मिला. शर्त यही थी कि मिलेंगे तो सिर्फ अपने स्कूल में.
स्कूल में प्रवेश करते ही हमारा सामना एक शानदार आधुनिक बिल्डिंग और बड़े-बड़े मैदानों से हुआ.
अंदर गए तो एक इंटरनेशनल स्कूल की तमाम खूबियां सामने आने लगीं. इससे पहले कि हम स्कूल को कुछ और टटोलते, सामने की सीढ़ियों से हंसते-मुस्कुराते वीरेंद्र सहवाग हमारी ओर बढ़ते नज़र आए.
चेहरे पर पहले सी चमक और वही गर्मजोशी. वीरेंद्र सहवाग कहीं और होते तो शायद बात क्रिकेट से ही शुरू होती. लेकिन फिलहाल स्कूल की बातें होने लगीं.
बातचीत करते हुए और बिल्डिंग के गलियारों से होते हुए हम स्टूडेंट्स के बीच जा पहुंचे. साइंस की क्लास चल रही थी और स्कूल के प्रिंसिपल खुद बच्चों को प्रैक्टिकल करा रहे थे. वीरू एक सच्चे स्टूडेंट की तरह सब कुछ बड़े ध्यान से सुनने लगे.
उन्होंने हमसे कहा, 'हमारे स्कूल में सिर्फ खेल ही नहीं सिखाया जाता बल्कि शिक्षा पर भी पूरा ध्यान देते हैं. यहां साइंटिफिकली डिजाइंड क्लासेस हैं, जहां पढ़ाई के नए तरीके इजाद किए जाते हैं.'
लैब से बाहर निकले और जहां पहुंचे वहां नन्हे-मुन्ने बच्चे किसी फंक्शन की तैयारी में जुटे थे. इन बच्चों में से ज्यादातर नहीं जानते थे कि वीरू कौन हैं, इसलिए उनकी प्रैक्टिस में कहीं कोई बाधा नहीं थी.
काफी देर तक बच्चों को निहारने के बाद वीरू बोले, 'हम इन बच्चों को राष्ट्रीय महत्व की हर बात बताते हैं, जैसे 2 अक्टूबर, 15 अगस्त और 26 जनवरी के मायने क्या हैं. डांस और मस्ती के माहौल में छोटे बच्चे जल्दी सीखते हैं.'
सहवाग जिस तरह से हमें स्कूल और शिक्षा के बारे में बता रहे थे उससे यकीन करना मुश्किल हो रहा था कि यह वही बल्लेबाज है जिसने क्रिकेट के तमाम किताबी शॉट्स को दरकिनार कर उसकी अपनी ही परिभाषा गढ़ दी थी.
वीरू के मुताबिक उनका मकसद व्यक्तित्व से ज्यादा, बच्चों का कैरेक्टर बनाना है. वह कहते हैं कि पर्सनैलिटी तो बच्चे कॉलेज में बनाते हैं लेकिन कैरेक्टर स्कूल में ही बन सकता है. वीरू के स्कूल की शायद यही खूबियां हैं कि उनका स्कूल हरियाणा का नंबर-1 स्कूल बन चुका है.
पढ़ाई के बारे में बातचीत काफी हो चुकी थी अब बारी थी वीरू के पसंदीदा सब्जेक्ट खेल की. उनके स्कूल में क्रिकेट, फुटबॉल, बास्केटबॉल, स्क्वैश, टेनिस, टेबल-टेनिस, स्विमिंग, बैडमिंटन, कुश्ती सभी के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर की सुविधाएं मौजूद है.
वीरू मानते हैं कि एक बच्चे को सभी खेल खेलने चाहिए ताकि उसकी सभी मांसपेशियां मज़बूत बन सकें जो एक खिलाड़ी बनने के लिए बेहद ज़रूरी है.
उनके साथ हम क्रिकेट मैदान पर बढ़ चले. पहली नज़र में देखते ही ये इंटरनेशनल क्रिकेट का कोई वेन्यू दिखाई देता था. बच्चे अपने कोच के साथ कैचिंग प्रैक्टिस में जुटे थे.
वीरू भी बल्ला देखकर बेचैन हो उठे और बच्चों को बैटिंग टिप्स देने लगे. इस मैदान के बारे में बताते हुए सहवाग ने कहा, 'हमने ये मैदान फिरोज़शाह कोटला की तर्ज पर बनाया है. पिच बनाने के लिए क्यूरेटर भी वहीं से बुलाए गए थे. हरियाणा क्रिकेट एसोसिएशन इस मैदान पर अंडर-16 और अंडर-19 के मैच आयोजित कराता है. हां, अभी हम यहां रणजी मैच नहीं करा सकते क्योंकि आसपास हरियाली होने की वजह से गेंद खोने का खतरा है.'
बात क्रिकेट की चली तो हमने पूछा कि टीम इंडिया में वापसी की तैयारी चल रही है या कोच बनने की इच्छा रखते हैं, जवाब वीरू ने अपने ही अंदाज़ में दिया, 'अगर मैं कोच बना तो पता नहीं कैसे खिलाड़ी पैदा होंगे, बेहतर है मैं क्रिकेट खेलता रहूं.'