अभिनव बिंद्रा
33 वर्ष, निशानेबाजी
10 मीटर एयर राइफल
क्वालीफाइ कियाः मई 2015, आइएसएसएफ विश्व कप, म्यूनिख
उपलब्धियाः 7 राष्ट्रमंडल पदक, 4 स्वर्ण; 3 एशियाई खेल पदक
पिछला ओलंपिकः स्वर्ण, बीजिंग 2008
अभिनव बिंद्रा होना कोई मुश्किल काम नहीं है. वे चंडीगढ़ के बाहरी इलाके में स्थित एक विशाल फार्महाउस में रहते हैं. उन्हें हर तरह की सुख-सुविधा प्राप्त है. उनके पास ओलंपिक का एक स्वर्ण पदक भी है जो किसी भी भारतीय खिलाड़ी का अकेले जीता गया इकलौता पदक है. हालांकि इतना हासिल कर लेना आसान भी नहीं है. उसके लिए अपने भीतर की आग को लगातार हवा देनी पड़ती है. अपने पीछे के बगीचे में स्थित शूटिंग रेंज में घंटों बिताने पड़ते हैं. अपने दिल को थामना पड़ता है, अपने जोश को काबू में रखना होता है, मांसपेशियों को फड़कने से रोकना होता है, सांस बाहर की ओर छोडऩी होती है और अंत में घोड़ा दबाना होता है. यही काम हर दिन करना पड़ता है क्योंकि और कोई भी चीज उनकी ललक को शांत नहीं कर पाएगी.
बिंद्रा रियो 2016 के लिए तैयार हैं. उनकी आंखों में जो चमक है वह पहले उतनी मुखर नहीं थी. और बिना किसी भाव के मजाक भी वे पहले से ज्यादा कर पा रहे हैं. वे वहां जा चुके हैं, नाकाम रह चुके हैं, फिर खड़े हुए हैं और फिर हारे हैं. वे ओलंपिक में जा रहे हैं तो यह मानते हुए कि वे पदक जीतकर आएंगे लेकिन आपको उन्हें सुनकर ऐसा आभास होता है कि एक अभिजात्य खिलाड़ी होने का जो दर्द होता है, वे उसमें अब आनंद लेने लगे हैं.
भारत में आखिरी अभ्यास सत्र के बाद अपनी राइफल थमाते हुए वे कहते हैं, ''लो, अब आप ट्राइ मारो." तब आपको उस हथियार का वजन समझ में आता है और पता चलता है कि कैसे वह आपके पुट्ठों को हिला सकता है और ध्यान को भंग कर सकता है. पहली गोली, फिर दूसरी और तीसरी गोली चलाने के बाद पांचवीं तक आते-आते सामने का लक्ष्य धुंधलाने लगता है. आपकी आंखें बाहर निकलने को होती हैं और बिंद्रा की ओर आप पलटते हैं तो वे मुस्कराते हुए कहते हैं, ''हमारी दुनिया में स्वागत है!" उन्हें सिर्फ फाइनल क्वालीफाइ करने के लिए 60 बार निशाना लगाना होता है और एक भी निशाना सबसे भीतरी रिंग के बाहर नहीं जाना चाहिए जो इतनी दूर से बमुश्किल ही नजर आता है.
जर्मनी से होते हुए उज्बेकिस्तान और फिर रियो के लिए निकलने से पहले भारत में अपने प्रशिक्षण के आखिरी दिन बिंद्रा ने 634.6 का निशाना लगाया था—यह 633.5 के विश्व रिकॉर्ड से भी बेहतर था. यह हालांकि प्रशिक्षण में किया गया था इसलिए इसके कोई मायने नहीं हैं. बिंद्रा यदि रियो में इसे दोहरा सके तो वे भारत के ओलंपिक इतिहास में महानतम खिलाड़ी बन जाएंगे. अगर ऐसा नहीं हुआ तो? तब शायद वे कुछ कम महान होंगे. अभिनव बिंद्रा होना मुश्किल नहीं है, लेकिन इतना आसान भी नहीं है.