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रियो ओलंपिक: फर्राटे को बेताब दुती चंद

कुछ ही दिन बाद दुती रियो की उड़ान पर होंगी. वे 100 मीटर की स्पर्धा में भारत की अकेली प्रतिस्पर्धी होंगी.

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दुती चंद
दुती चंद

दुती चंद
20 वर्ष, एथलेटिक्स
100 मीटर
कैसे क्वालीफाइ कियाः 25 जून, 2016, अलमाटी
उपलब्धियां: 100, 200 मीटर में राष्ट्रीय चैंपियन

इन दिनों जब भी वे दौड़ के लिए उतरती हैं तो रेस शुरू होने के लिए फायर होने से ठीक पहले के पलों में बीते दो साल का समय बिजली की तरह उनके दिमाग में कौंध जाता है. शुरुआती ब्लॉक से फिनिशिंग लाइन तक सौ मीटर का फर्राटा हर कदम उतना ही जोखिमभरा नजर आता है जितना मुश्किलों भरा जीवन का उनका अब तक का सफर रहा है. उसमें उनके अस्तित्व के हर पहलू पर टकराव थे, उनकी कमजोर काया पर सख्त मांसपेशियों की बात हो या उनके हर समय भावशून्य प्रतीत होने वाले चेहरे की. लेकिन बीस साल की दुती ने लंबे समय से चुनौती का आंखों में आंखें मिलाकर सामना करना शुरू कर दिया है और अपने संकल्प की ताकत से इन चुनौतियों को  परास्त किया है.

इस साल शनिवार यानी 25 जून को कजाखस्तान के अलमाटी में फिर यही हुआ. उन्होंने हीट्स में 11.30 सेकंड का समय निकाला था. उनके सामने एक बार फिर साबित करने की चुनौती थी और उन्होंने पूरे उत्साह के साथ यह किया. फाइनल में उन्होंने 11.24 सेकंड का समय निकाला. इस प्रदर्शन से उन्होंने न केवल उस स्पर्धा मंश रजत पदक जीता बल्कि भारत को ओलंपिक में सौ मीटर की फर्राटा दौड़ में दुर्लभ प्रवेश भी दिलवा दिया. यह उन लोगों के मुंह पर भी करारा तमाचा था जिन्होंने इस बात को लेकर सवाल उठाए थे कि वे एक महिला एथलीट के तौर पर कैसे भाग ले सकती हैं जबकि उनके शरीर में पुरुष हॉर्मोन टेस्टोस्टेरॉन का स्तर ज्यादा है. चिकित्सकीय नजरिए से इस स्थिति को हाइपरएंड्रोजेनिज्म कहा जाता है.

ओडिशा के गोपालपुर में बुनकर युगल चक्रधर और अखुजी चंद के घर पैदा हुईं दुती चार बहनों में एक हैं. वे लगातार जीत हासिल करती रही हैं. 2012 में अंडर-18 कैटेगरी में वे राष्ट्रीय चैंपियन बन गई थीं. अगले साल उन्होंने पुणे में एशियाई चैंपियनशिप में 200 मीटर की दौड़ में कांस्य पदक जीता. फिर उसी साल वे विश्व यूथ चैंपियनशिप में फाइनल में पहुंचीं. वे 100 मीटर दौड़ की स्पर्धा में किसी वैश्विक एथलेटिक्स फाइनल में पहुंचने वाली पहली भारतीय थीं. फिर 2014 में वे चीनी ताइपे में एशियाई जूनियर चैंपियनशिप में 200 मीटर की दौड़ में स्वर्ण पदक जीतने के बाद ग्लासगो राष्ट्रमंडल खेलों के लिए तैयारी कर ही रही थीं कि उनके ऊपर पहाड़ टूट पड़ा.

वे भारतीय टीम का हिस्सा नहीं बन सकीं क्योंकि इंटरनेशनल एसोसिएशन ऑफ एथलेटिक्स फेडरेशन (आइएएएफ) के दिशानिर्देशों में हाइपरएंड्रोजेनिज्म के उल्लेख ने उन्हें महिला एथलीट के रूप में हिस्सा लेने के लिए अयोग्य बना दिया. बड़ी मेहनत से हासिल की गई अपनी जीवनभर की उपलब्धियों को सिफर होते देखने के बजाए दुती ने आइएएएफ के इस नियम को कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन फॉर स्पोर्ट्स (सीएएस) में चुनौती दी, जिसने मार्च, 2015 में ऐतिहासिक फैसला सुनाया. इस संस्था ने दुती के हक में अपना फैसला दिया, लेकिन उससे पहले मीडिया, उनके आसपास के लोग और साथी उनके जीवन को सार्वजनिक तौर पर काफी उछाल चुके थे और उनके नारीत्व के हर पहलू की छानबीन कर चुके थे. लेकिन दुती ने उनमें से हरेक का सामना किया और कभी खुद को अपने शरीर से या खुद से शर्म नहीं महसूस करने दी. उन्होंने इस साल अप्रैल में नई दिल्ली में फेडरेशन कप में धमाकेदार वापसी की. उन्होंने 100 मीटर की स्पर्धा में रचिता मिस्त्री का 16 साल पुराना राष्ट्रीय रिकॉर्ड तोड़ते हुए 11.33 सेकंड का समय निकाला और उसके बाद से वे दो बार इसी रिकॉर्ड में सुधार कर चुकी हैं.

कुछ ही दिन बाद दुती रियो की उड़ान पर होंगी. वे 100 मीटर की स्पर्धा में भारत की अकेली प्रतिस्पर्धी होंगी. मॉस्को में 1980 के ओलंपिक खेलों में पी.टी. उषा के बाद से किसी भारतीय ने ओलंपिक में 100 मीटर की दौड़ स्पर्धा में हिस्सा नहीं लिया है.

दुती कहती हैं, ''यह वह मुकाम है, जहां तक हर एथलीट, चाहे वह दुनिया के किसी भी देश से हो, पहुंचना चाहता है. हम ईश्वर से मनचाहा वरदान मांगने के लिए मंदिर जाते हैं. ओलंपिक भी ऐसा ही मंदिर है, जहां हम मेडल के लिए जाते हैं. अंतर इतना ही है कि ईश्वर से तो सिर्फ मांगना होता है, लेकिन ओलंपिक में मेडल के लिए लडऩा होता है." वे अपनी जिंदगी की अहम लड़ाई तो पहले ही जीत चुकी हैं. मेडल हासिल हो या न हो, वे हमेशा दूसरों को अपने जज्बे से रास्ता दिखाएंगी.

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