रियो ओलंपिक में खराब प्रदर्शन की कहानी अब आगे में न दोहराई जाए इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक स्पेशल टास्क फोर्स गठित करने का ऐलान किया है. यह टास्क फोर्स टोक्यो में होने वाले अगले ओलंपिक की तैयारियों पर भी नजर रखेगी और खिलाड़ियों को ज्यादा से ज्यादा मेडल लाने के लिए रणनीति बनाएगी.
रियो ओलंपिक में भारत का प्रदर्शन पिछली बार की तुलना में बेहद खराब रहा है. पिछली बार 2 रजत और 4 कांस्य पदकों की तुलना में हमें इस बार केवल एक सिल्वर और एक ब्रॉन्ज मेडल से संतोष करना पड़ा है. ऐसे में भारतीय दल के प्रदर्शन की समीक्षा करने के बजाय हम जश्न में डूबे हैं. पदक जीतने वाले खिलाड़ियों पर जैसे कुबेर मेहरबान हो गए हैं. सरकारों ने ऑफर्स की बरसात कर दी है. जरा सोचिए, अगर सिल्वर और ब्रॉन्ज के अलावा एक गोल्ड आ गया होता तो क्या होता?
सिंधू पर हुई करोड़ों की बारिश
रियो में सिल्वर मेडल जीतने वाली बैडमिंटन खिलाड़ी पीवी सिंधू और कुश्ती में कांस्य पदक जीतने वाली साक्षी मलिक करोड़पति बन गई हैं. इसके अलावा सरकारी नौकरियों, घर, जमीन और महंगी कार के ऑफर भी मिले हैं.
साक्षी को प्रमोशन भी
यही हाल हरियाणा की साक्षी मलिक का भी है. मलिक को रेलवे ने प्रमोशन देकर गजेटेड अफसर बना दिया. इसके अलावा दिल्ली सरकार ने साक्षी के पिता सुखबीर मलिक को भी प्रमोशन देने की पेशकश की जो डीटीसी में बस कंडक्टर हैं. इन सबके अलावा सिंधू और साक्षी के साथ-साथ दो और खिलाड़ियों को खेल रत्न
अवॉर्ड भी दिया जाएगा जिन्होंने ओलंपिक में पदक तो नहीं हासिल किया लेकिन
अच्छा प्रदर्शन किया.
...पर तैयारियों के समय नहीं खोला खजाना
यहां गौर करने वाली बात यह है कि ओलंपिक में मेडल जीतने वाले खिलाड़ियों को मिलने वाली इनाम की राशि खेलों के इस महाकुंभ के आयोजन के लिए तैयारियों पर की जाने वाली रकम से ज्यादा होती है. यानी इनपर इनामों की जितनी धनवर्षा होती है उतने पैसे तो इनके ट्रेनिंग में भी नहीं खर्च किए जाते. अगर ट्रेनिंग पर और ध्यान दिया जाए और खेल संघों को राजनीति से मुक्त कर दिया जाए तो स्थिति बेहतर होती और एक-एक पदक के लिए तरसना नहीं पड़ता.
इधर लगा दी पैसों की ढेरी....
यूके स्पोर्ट ने ओलंपिक तैयारी के लिए 2013-17 के बीच 350 मिलियन डॉलर की रकम तय की, वहीं भारत सरकार ने युवा मामलों और खेल बजट में 500 मिलियन डॉलर या 3,200 करोड़ रुपये दिए. अगर इस रकम की तुलना ब्रिटेन के खेल ढांचा और प्रशिक्षण के सालाना खेल बजट से करें तो यह तीसरा हिस्सा ही बैठती है. ब्रिटेन का खेल बजट 1.5 अरब डॉलर या 9000 करोड़ रुपये था. ब्रिटेन ने जीते 67 पदकों में हर पदक पर 4.1 मिलियन पौंड (36 करोड़ से भी ज्यादा) की रकम खर्च की. वहीं 2016 के रियो ओलंपिक की तैयारी पर उसने 275 मिलियन पौंड की रकम खर्च की. वहीं, भारत के 117 खिलाड़ियों में से सिर्फ दो ने तमगे पाए.
खेल मंत्रालय फिर क्यों?
जहां खेल मंत्रालय के वजूद का सवाल है तो इसके रहने या न रहने से कोई फर्क नहीं पड़ता. सबसे बड़ा उदाहरण अमेरिका है जहां खेल मंत्रालय नाम की कोई चीज नहीं है जबकि वो ओलंपिक की पदक तालिका में टॉप पर रहता है. भारत में केवल 2 मेडल आए तो जश्न का माहौल है जबकि चीन पदक तालिका में दूसरे पायदान से खिसककर तीसरे पर आ गया तो उसे निराशा हो रही है. चीनी मीडिया ने ओलंपिक में भारत के प्रदर्शन को लेकर तंज भी कस दिया है. चीन की मीडिया का कहना है कि भारत खेलकूद की बुनियादी सुविधाओं पर बहुत कम खर्च करता है इसलिए यह बड़े और प्रतिस्पर्धात्मक खेलों में पीछे रहता है.
काम चाहिए तो कुछ कड़क होना ही पड़ेगा
नॉर्थ कोरिया में रियो ओलंपिक में खाली हाथ लौटने वाले खिलाड़ियों की तो जैसे शामत आ गई है. यहां के शासक किम जोंग ने मेडल नहीं लाने वाले खिलाड़ियों को कोयले की खदानों में काम कराने का फरमान सुनाया है. यही नहीं, ऐसे खिलाड़ियों को राशन कार्ड सहित कई सुविधाओं से भी हाथ धोना पड़ सकता है. बताया जा रहा है कि किम जोंग ने ओलंपिक में जाने वालों को 17 मेडल लाने का टारगेट दिया था लेकिन जब कुल 7 पदक ही आ सके.
थोड़ी सी सीख इनसे भी ले लीजिए....
हालांकि, दुनियाभर के तमाम देश ओलंपिक से मेडल लेकर लौटे अपने खिलाड़ियों को इनाम और बोनस देते हैं. सिंगापुर सरकार ने माइकल फेल्प्स को पीछे छोड़कर अपने देश को पहला गोल्ड दिलाने वाले जोसेफ स्कूलिंग को 10 लाख सिंगापुर डॉलर का पुरस्कार दिया. हालांकि इसका 20 फीसदी हिस्सा खेल के विकास पर खर्च होगा. उधर सबसे अधिक मेडल जीतने वाले अमेरिकी खिलाड़ियों के लिए बोनस की रकम पहले से तय है. वहां की ओलंपिक कमेटी बोनस के तौर पर गोल्ड लाने वाले को 25 हजार डॉलर, सिल्वर जीतने वाले को 15 हजार डॉलर जबकि ब्रॉन्ज पाने वाले को 10 हजार डॉलर देती है. लेकिन यहां खिलाड़ियों के प्रशिक्षण पर कहीं ज्यादा खर्च किया जाता है.
योग के लिए क्रांति हो सकती है तो फिर इसके लिए क्यों नहीं
भारत को इनसे सीख लेने की जरूरत है. ओलंपिक में पदक नहीं मिलने पर त्राहिमाम मचाने से अधिक इसकी तैयारियों पर खर्च किया जाना चाहिए. सरकार को चैंपियन की तलाश करनी चाहिए और इसे आगे बढ़ाने के लिए उसे तमाम संसाधन मुहैया कराए जाने चाहिए. अगर भारत में योग को लेकर अभियान चलाया जा सकता है तो ओलंपिक के लिए मिशन की शुरुआत क्यों नहीं की जा सकती. अगर भारतीय खेल प्रशासन अभी से जाग जाता है तो 2020 के टोक्यो ओलंपिक में तो नहीं लेकिन उसके बाद 2024 में होने वाले ओलंपिक खेलों में पदकों की बारिश होना तय है.