अमेरिकी तैराक माइकेल फेल्प्स ने रियो ओलंपिक में 4 गोल्ड मेडल जीतकर लोगों का ध्यान अपनी तरफ तो खींचा ही है. इसके साथ ही स्विमिंग पूल से बाहर निकलते समय उनके शरीर पर बने लाल रंग के बड़े-बड़े निशानों ने भी फैंस को हैरान किया है. आखिर फेल्प्स के शरीर ये निशान कैसे आए. ये निशान देखकर हर कोई हैरान है.
22 गोल्ड मेडल जीत चुके हैं फेल्प्स
दुनिया के महानतम एथलीटों में से एक माइकल फेल्प्स ने अब तक पांच ओलंपिक खेले हैं. जिनमे उन्होंने 22 गोल्ड मेडल अपने नाम किए. रियो ओलंपिक में फेल्प्स 4 गोल्ड मेडल जीत चुके हैं, और ये उनका आखिरी ओलंपिक है.
कपिंग थेरेपी से बने फेल्प्स के शरीर पर निशान
इस दिग्गज स्विमर के शरीर पर ये निशान किसी चोट के नहीं बल्कि सदियों पुरानी उपचार पद्धति कपिंग थैरेपी की वजह से बने है. शरीर से टोक्सिन को बाहर निकालने की सदियों पुराने इस तरीके को आज की तारीख में कई इंटरनेशनल खिलाड़ी अपना रहे है. लगभग पूरी अमेरिकन एथलीट टीम इसी कपिंग थेरेपी को अपना रही है. कपिंग थेरेपी से मसल्स को आराम दिया जाता है, यहां तक की जिन मसल्स को खेलते वक्त नुक्सान या चोट पहुंचती है, उन्हें भी इस थेरेपी के जरिए जल्दी ठीक करने में मदद मिलती है. गर्दन और कंधे के दर्द से लीगामेंट्स स्ट्रेन और टेनिस एल्बो जैसी बीमारियों को ठीक करने में भी मदद मिलती है. डॉक्टर शरीक ज़फर, पिछले 6 साल से कपिंग थेरेपी की प्रैक्टिस कह रहें हैं. इससे सुन्नी इलाज भी कहते हैं, क्योंकि इसे इस्लाम ने मान्यता दी हैं. इसके कोई भी साइड इफ़ेक्ट नहीं हैं.
क्या है कपिंग थेरेपी?
आइये अब हम आपको बताते हैं कि कपिंग थेरेपी आखिर है क्या. दरअसल यह एक यूनानी इलाज की पद्धति है जो प्राचीन मान्यताओं के मुताबिक पैगाम्बर मोहम्मद के वक्त से इस्तेमाल की जाती रही है. इसमें शरीर के कुछ चुनिंदा जगहों पर जहां टोक्सिन प्वाइंट होता है वहां पर छोटे और बड़े अलग-अलग जरूरत के मुताबिक कांच के कप लगाए जाते हैं, इसके बाद एक वैक्यूम पंप की मदद से उस कप में वैक्यूम प्रेशर पैदा किया जाता है और फिर शरीर को थोड़ी देर के लिए आराम से छोड़ दिया जाता है. थोड़ी देर के बाद उस कप में लाल रंग का तरल पदार्थ अपने आप जमा होने लगता है, जो पूरी तरह खून नहीं होता है, यह हलके पानी जैसा लिक्विड ही टोक्सिन बताया जाता है. इस थेरेपी में जो कप का इस्तेमाल किया जाता है वो अलग अलग बीमारी और अलग अलग उम्र के व्यक्तियों के हिसाब से इस्तेमाल किया जाता है.
दो तरीकों से होती है कपिंग थैरेपी
कपिंग थेरेपी को करने के दो तरीके होते हैं ड्राय थेरेपी और वेट थेरेपी. ड्राई थेरेपी में शरीर के अंदर गर्मी और एनर्जी को बढ़ाने में मदद मिलती है
एनर्जी चैनलस का ब्लॉकेज खोलने में मदद मिलती है. वेट थेरेपी में हीट को शरीर में से कम किया जाता है. टोक्सिन को निकालने के लिए वेट थेरेपी ली जाती है. बॉडी के रिफ्लेक्ट जोन्स पर क्यूप्पिंग करके भी इलाज किया जाता है. ड्राई थेरेपी के लिए जो कप उपयोग में लिए जाते है उनमें अंदर की तरफ चुम्बक लगी होती है. इसके फायदों की बात की जाए तो मसल्स को ठीक करने के अलावा इसके और भी बहुत से फायदे हैं जैसे की पैन रिलीफ, दिमाग की बीमारिया जैसे पैरालिसिस, डिप्रेशन, स्किन की बीमारियां, हार्ट की बीमारिया जैसे ब्लड प्रेशर, कोलेस्ट्रोल को ठीक करने में मदद मिलती है. इसके अलावा अस्थमा, डायबिटीज, थाइरोइड, किडनी प्रोब्लेंस में भी इस थेरेपी से बहुत मदद मिलती है डॉक्टर शरीक जफर का मानना हैं कि 'यह बहुत पुराना यूनानी इलाज हैं, अरबों से इससे चीन ने सिखा. ये इलाज अस्क्यूप्रेशेर की तरह हैं. लेकिन इसमें सूई की जगह कप का इस्तेमाल होता हैं. जो हवा की प्रेशर से मसल को रिलेक्स करता हैं'
बड़ी तादात में हो रहा है इसका इस्तेमाल
इस थेरेपी को अमेरिकी एथेलीट ही नहीं बल्कि कई बड़े सेलिब्रिटीज जैसे जस्टिन बइबेर, जेनिफर ऑस्टिन, ग्वेनेथ पेल्त्रोव जैसे लोगो इस थेरेपी से अपना इलाज करा रहे हैं. लेकिन मौजूदा दौर में फिजियोथेरेपी जैसी इलाज की पद्धतियां इस कपिंग थेरेपी को अपनाने के लिए बिलकुल भी तैयार नहीं है उसकी वजह है की आज तक कपिंग थेरेपी पर किसी भी तरह की कोई साइंटिफिक रिसर्च या उससे जुड़ा कोई पेपर रिलीज़ नहीं हुआ है. मेडिकल स्टडीज में इससे जुड़ा कोई भी पाठयक्रम नहीं जोड़ा गया. हालांकि इससे फायदा होने की बात हर शख्स कहता है. रियो ओलिंपिक में माइकल फेल्प्स की तस्वीर यकिनन तौर पर कपिंग थेरेपी को लेकर जिज्ञासा ही नहीं बढ़ाती है बल्कि इसके असितत्व को भी स्वीकार करने की पुरजोर गवाही देती है. भले ही कपिंग थेरेपी का वैज्ञानिक सबूत हो या ना हो लेकिन इसका बढ़ता चलन और इससे होने वाले फायदे को देखते हुए इलाज़ की इस बरसो पुरानी थेरेपी का मौजूद विज्ञान से मिलाप का दिन अब दूर नहीं है.