पाकिस्तान में इन्हें कभी नेशनल हीरो कहा जाता था. दो बार ओलंपिक खेलों में अपने मुल्क की ओर से हिस्सा लिया लेकिन आज इनकी हालत इतनी खराब है कि दो वक्त की रोटी जुटाने के लिए रिक्शा चलाना पड़ रहा है.
यह कहानी है 81 साल के मुहम्मद आशिक की. इन्हें आजकल लाहौर की गलियों में रिक्शा चलाते देखा जा सकता है. ये कहते हैं, 'मैंने कई पूर्व प्रधानमंत्रियों, राष्ट्रपतियों और अन्य बड़ी हस्तियों से हाथ मिलाया है. मुझे यकीन नहीं हो रहा कि वो मुझे क्यों और कैसे भूल गए. शायद लोग यही मान बैठे हैं कि मैं मर गया हूं.'
आशिक ने 50 के दशक में मुक्केबाज के तौर पर करियर शुरू किया लेकिन चोट की वजह से पत्नी के कहने पर उन्होंने ट्रैक बदल लिया और साइक्लिंग करने लगे. 1960 और 1964 के ओलंपिक खेलों में इन्होंने पाकिस्तान का प्रतिनिधित्व भी किया. हालांकि, टॉप 3 में जगह बनाने में नाकाम रहे. लेकिन इतने शानदार करियर का दुखद अंत हो गया.
450 वर्ग फीट के घर में रह रहे आशिक के पास करीब 10 लाख रुपये तक थे. लेकिन आज रिक्शा खींचकर हर रोज महज 400 रुपये कमा पाते हैं. वो पाकिस्तान सरकार की बेरुखी से बेहद उदास भी हैं. उन्हें लगता है कि बिना सरकारी मदद के इस उम्र में अब गुजर बसर मुश्किल है.
मुहम्मद आशिक कहते हैं, 'दो बार ओलंपिक खेलों में पाकिस्तान की ओर हिस्सा लेकर खुद को किस्मत वाला समझता था. मैं बहुत खुश था. लेकिन अब जीने की तमन्ना नहीं रही. इस दयनीय हालत में जीने से अच्छा है कि हम अल्लाह के प्यारे हो जाएं.'