
'फ्लाइंग सिख' के नाम से मशहूर महान धावक मिल्खा सिंह नहीं रहे. भारत के महान फर्राटा धावक मिल्खा सिंह का एक महीने तक कोरोना संक्रमण से जूझने के बाद शुक्रवार को निधन हो गया. मिल्खा ने भारत के लिए कई पदक जीते, लेकिन 1960 के रोम ओलंपिक में उनके पदक से चूकने की कहानी हमेशा लोगों के जेहन में रहेंगी. मिल्खा भी रोम ओलंपिक में जीत की पक्की उम्मीद के साथ गए थे, क्योंकि 1958 के एशियाई और राष्ट्रमंडल खेलों में कुल तीन स्वर्ण पदक जीतकर वह आत्मविश्वास से लबरेज थे. कार्डिफ राष्ट्रमंडल खेलों में मिल्खा ने तो तत्कालीन विश्व रिकॉर्ड होल्डर मेल स्पेंस को मात दे दी थी.
मिल्खा रोम ओलंपिक से पहले अमेरिका के ओटिस डेविस को छोड़कर लगभग सभी प्रतिद्वंद्वियों को हरा चुके थे. रोम में मिल्खा सिंह 400 मीटर की शुरुआती रेस की पांचवीं हीट में दूसरे स्थान पर आए. क्वार्टर फाइनल और सेमीफाइनल में भी उनका स्थान दूसरा रहा. आमतौर पर सेमीफाइनल के अगले दिन ही फाइनल दौड़ होती थी, लेकिन रोम ओलंपिक खेलों में 400 मीटर की फाइनल दौड़ दो दिन बाद हुई. फाइनल रेस में कार्ल कॉफमैन पहली लेन, अमेरिका के ओटिस डेविस दूसरी और मिल्खा सिंह पांचवीं लेन में थे.
मिल्खा जब फाइनल मुकाबले में 'स्टेडियो ओलंपिको' में जब दौड़ रहे थे, तो वह ढाई सौ मीटर तक रेस में सबसे आगे थे. तब उन्हें लगा कि वे जरूरत से ज्यादा तेज दौड़ रहे हैं. आखिरी छोर तक पहुंचने से पहले उन्होंने पीछे मुड़कर देखना चाहा कि दूसरे धावक कहां पर हैं. इसी वजह से उनकी रफ्तार और लय टूट गई. उन्होंने उस समय का ओलंपिक रिकॉर्ड तोड़ते हुए 45.6 सेकंड का समय (इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम द्वारा स्वत: सुधारा गया 45.73 सेकेंड) तो निकाला, लेकिन एक सेकेंड के दसवें हिस्से से पिछड़कर वे चौथे स्थान पर रहे.
एक इंटरव्यू में मिल्खा सिंह ने बताया था, 'मेरी आदत थी कि मैं हर दौड़ में एक बार पीछे मुड़कर देखता था. रोम ओलंपिक में बेहद नजदीकी रेस रही. पांचवें लेन में शुरुआती 250 मीटर तक मैं काफी तेज दौड़ा था. जिसके बाद मैंने एक दफा पीछे मुड़कर देखा, जो मेरी बड़ी भूल थी. उसके बाद मैं ग्रांउड कवर नहीं कर पाया और मुझे खामियाजा भुगतना पड़ा.'
ओटिस डेविस ने रोम ओलंपिक में 44.9 सेकेंड के साथ नया विश्व रिकॉर्ड बनाया और स्वर्ण पदक जीत लिया था. कॉर्ल कॉफमैन का भी समय 44.9 था, लेकिन उन्हें फोटो फिनिश में दूसरा स्थान मिला. स्पेंस का समय 45.5 सेकेंड था और उन्हें कांस्य पदक मिला. मिल्खा सिंह भले ही उस दौड़ में चौथे स्थान पर रहे हों, लेकिन उन्होंने उस दिन एक राष्ट्रीय रिकॉर्ड बनाया जो लगभग 40 वर्षों तक बना रहा.