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अभिनव बिंद्रा: दबाव को गले लगाना सीख लिया

'' लोगों की उम्मीदें और विशेषज्ञों की टिप्पणियां खेल का हिस्सा हैं. मैं दबाव से जूझता नहीं, मैंने उसे गले लगाना सीख लिया है.''

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अभिनव बिंद्रा
अभिनव बिंद्रा

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अभिनव बिंद्रा, 29 वर्ष
10 मीटर एअर राइफल
मोहाली, पंजाब
खेल की शैली 2008 के बीजिंग ओलंपिक में भारत के लिए पहला इंडिविजुअल गोल्ड मेडल जीतने के पंद्रह मिनट बाद अभिनव बिंद्रा के दिलो-दिमाग पर बस एक ही एहसास छाया थाः राहत. वे अपनी जिंदगी के सबसे बड़े डर से उबर चुके थेः ओलंपिक में सुर्खियों में आना. उनकी दुनिया में, महज 0.1 पॉइंट का अंतर उन्हें पहले से दसवें स्थान पर खिसका सकता था.

देश के इस धुरंधर निशानेबाज ने अपने संस्मरण ए शॉट एट हिस्ट्रीः माइ ऑब्सेसिव जर्नी टू ओलंपिक गोल्ड में इस बात का विस्तार से जिक्र किया है कि कैसे उन्होंने बारीकियों को साधने की अपनी दीवानगी को विजय हासिल करने में तब्दील किया. उन्होंने फरारी के टायर की रबड़ से अपने जूते का सोल बनवाया था, ताकत के लिए चीन से याक का दूध मंगवाते थे और यहां तक कि अपने दिमाग को बेहतर ढंग से समझने के लिए उन्होंने ब्रेन मैपिंग भी करवाई.

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खास है देश के इस इकलौते ओलंपिक गोल्ड मेडल विजेता का व्यक्तित्व आत्मविश्वास से लबरेज है. अपनी मानसिक क्षमता बढ़ाने की उनकी शिद्दत उन्हें अंतिम दौर के दबाव का सामना करने के लिए तैयार करेगी.

चुनौतियां अब तक किसी भारतीय ने दो ओलंपिक खेलों में मेडल जीतने का करिश्मा नहीं किया है. बिंद्रा का लक्ष्य 2008 के अपने प्रदर्शन को दोहराना या उससे और बेहतर करना है.

मिशन ओलंपिक बीजिंग ओलंपिक के बाद से ही बिंद्रा लगातार खुद को चुस्त-दुरुस्त रखने के लिए सजग रहे हैं. उन्होंने इस ओलंपिक वर्ष की शुरुआत दोहा में एशियन शूटिंग चैंपियनशिप में अपने चिर प्रतिद्वंद्वी और ओलंपिक चैंपियन झूू किनान को हराकर गोल्ड मेडल झ्टकने के साथ की. लेकिन गोल्ड जीतने के बाद भी म्युनिख के ओलंपिक क्वालीफायर में उनका स्कोर सिर्फ 596 रहा और इससे उनका स्थान आठवां हो गया. शूट-ऑफ में 52.6 का स्कोर कर उन्होंने ओलंपिक में जगह बना ली.

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