हरियाणा के शेर दिल पहलवान योगेश्वर दत्त को अपनी पिछले दो दशक की कड़ी मेहनत का ईनाम मिल ही गया. कीचड़ भड़े अखाड़ों में उनका संघर्ष तब रंग लाया जब उन्होंने लंदन ओलंपिक की कुश्ती प्रतियोगिता के 60 किलोग्राम फ्रीस्टाइल वजन वर्ग वर्ग में देश को कांस्य पदक जिताया.
उन्होंने उत्तर कोरिया के जांग म्यांग री को रेपेचेज प्ले ऑफ मुकाबले में हराकर ये पदक जीता. असल में उन्हें ये उपलब्धि कोई एकाएक हासिल नहीं हुई. मुकाबले के बाद जब योगेश्वर दत्त मेडल लेने पहुंचे तो उन्होंने कहा, 'मैंने कुश्ती को अपनी जिंदगी के 21 साल दिए हैं और ये मेरी जिंदगी का सबसे बड़ा दिन है. मुझे इस बात पर काफी गर्व महसूस हो रहा है कि मैं लंदन ओलंपिक में अपने देश के लिए मेडल जीत सका.
वैसे रेपेचेज में जो तीन राउंड योगेश्वर ने जीते उसमें भाग्य ने भी उनका साथ दिया (कलर बॉल). जैसे ही योगेश्वर ने कांस्य पदक जीता तब वहां का माहौल देखने लायक था. एक तरफ जहां कोच खुशी से उछल पड़े वहां हॉल में हर तरफ तिरंगे भी लहराने लगे.
यहां ये बात भी गौर फरमाने वाली है कि करीब तीन साल पहले योगेश्वर दत्त के घुटने में गंभीर चोट लगी थी. चोट इतनी गंभीर थी को योगेश्वर कुश्ती छोड़ने के काफी करीब थे. लेकिन उन्होंने हौंसला नहीं तोड़ा और जबरदस्त वापसी की.
बलराज पहलवान से प्रेरणा प्राप्त योगेश्वर ने पिछले कुछ सालों में चोट और दुर्भाग्य के कारण कुछ खास नहीं कर पा रहे थे. 2010 और 2011 की विश्व चैंपियनशिप्स में भी अच्छा प्रदर्शन नहीं कर सके. ऐसे में लंदन ओलंपिक में हासिल ये कामयाबी बहुत बड़ी उपलब्धि है.
अब रविवार को बीजिंग ओलंपिक के हीरो सुशील कुमार कुश्ती के मैदान में उतरेंगे. उम्मीद है इस ओलंपिक में भी वो बीजिंग जैसा ही कमाल करेंगे.