लंदन ओलम्पिक की 25 मीटर रैपिड फायर पिस्टल इवेंट में रजत पदक जीतने वाले भारतीय निशानेबाज विजय कुमार ने कहा कि उनकी सफलता के बाद मीडिया सहित तमाम लोगों ने फोन करके जिस अंदाज में उनके पदक पाने को लेकर आश्चर्य जताया, उससे वह खुद भी अचंभित हैं.
बकौल विजय, 'मुझे भारत से फोन कॉल्स आ रहे हैं. वह कह रहे हैं कि मैं अप्रत्याशित विजेता हूं. वह मेरे बारे में अधिक से अधिक जानना चाहते हैं. इसलिए, कुछ समय के लिए मुझे थोड़ा दुख महसूस होता है लेकिन मैंने अपनी प्रगति में इन बातों से सीखा है.'
'मैं अपने इवेंट में 2004 का राष्ट्रीय चैम्पियन हूं. मैंने मेलबर्न 2006 कॉमनवेल्थ खेलों में रिकॉर्ड दो स्वर्ण पदक जीते हैं. दोहा एशियाई खेलों में मैंने एक स्वर्ण और एक कांस्य पदक जीता है. वर्ल्ड चैम्पियनशिप में मैंने एक रजत पदक जीता था.'
'2010 कॉमनवेल्थ खेलों में मैंने तीन स्वर्ण और एक रजत पदक हासिल किया था. ग्वांग्झाउ एशियाई खेलों में दो कांस्य पदक जीते हैं. बावजूद इसके मेरे इस पदक से लोग चकित हो गए तो मैं कुछ नहीं कर सकता.'
यह पूछने पर कि क्या आप यहां खुद से पदक की उम्मीद कर रहे थे? विजय ने कहा, 'नहीं, मैं नहीं कर रहा था लेकिन हरेक खिलाड़ी जो यहां आए हैं उनकी तरह मैं भी जीतना चाहता था. मैंने कभी भी अपनी भावनाओं के बारे में किसी को नहीं बताया. जब मैं फाइनल में पहुंच गया तब मुझे अहसास हुआ है कि मैं जीत जाऊंगा. मैंने अपना धर्य बनाए रखा.'
भारतीय सेना के जूनियर कमिशंड ऑफिसर (जेसीओ) पद पर कार्यरत विजय ने कहा कि वह ओलम्पिक में पदक जीतने की खुशी उनके दिलोदिमाग पर अभी भी हावी है.
बकौल विजय, 'मेरे पास रोजना कई फोन कॉल्स आते हैं. पदक जीतने की खुशी अभी भी मेरे दिलोदिमाग पर हावी है, क्योंकि अभी भी मैं खेल गांव में रह रहा हूं जहां कई पदक विजेता साथ रहते हैं. इनमें से कई विश्व के सर्वश्रेष्ठ एथलीट हैं.'