भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान राहुल द्रविड़ ने देश में खेल संस्कृति तैयार करने के लिये ठोस कदम उठाने की पैरवी की.
द्रविड़ ने कहा, ‘हम सिर्फ नतीजे चाहते हैं और दोयम दर्जे के नतीजों से भी खुश हो जाते हैं. शीर्ष खिलाड़ियों के लिए नतीजे एक प्रक्रिया और खुद को परिपक्व बनाने की कोशिशों का हिस्सा भर होते हैं.’
उन्होंने कहा, ‘खेलों में नतीजे हासिल करने का सर्वश्रेष्ठ तरीका नतीजों पर से फोकस हटाना है. खेलों में नतीजे कभी भी किसी एक के हाथ में नहीं होते जबकि तैयारी और प्रदर्शन की प्रक्रिया हमारे हाथ में होती है.’
द्रविड़ ने कहा, ‘दुनिया की आबादी का 30 प्रतिशत भारत में है, लेकिन पिछले छह दशक में खेलों में हमारी उपलब्धियां बहुत कम है. वहीं छोटे देशों में जहां इक्के दुक्के स्टेडियम हैं, वहां से चैंपियन फर्राटा धावक, मैराथन धावक और तैराक निकले हैं.’
उन्होंने कहा कि खेलों में अत्यधिक जोखिम और कई बार बहुत कम पारितोषिक होता है. उनहोंने कहा कि यही वजह है कि अधिकांश लोग शिक्षा को सुरक्षित विकल्प मानते हैं. उन्होंने कहा, ‘आज के जमाने में बहुत कम साहसी माता-पिता होते हैं जो बच्चों को हाई स्कूल के बाद खेलों में आगे बढने के लिये प्रोत्साहित करते हैं.’
अमेरिकी कालेज खेल प्रणाली का उदाहरण देते हुए द्रविड़ ने कहा कि वहां विश्व स्तरीय अभ्यास और शिक्षण सुविधाएं साथ में मुहैया कराई जाती हैं जबकि दक्षिण अफ्रीकी क्रिकेट स्कूलों में टेस्ट खिलाड़ियों को शीर्ष डिग्रियां दी जाती हैं.
उन्होंने कहा, ‘अगर हम वाकई खेलों की चिंता करते हैं तो विकसित देश होने की दहलीज पर खड़े भारत को चाहिए कि सर्वश्रेष्ठ युवा प्रतिभाओं को एक साथ खेल और पढाई की सहूलियत मुहैया कराए.’