scorecardresearch
 

क्यों नाकाम रह सकता है भारत: मदनलाल

एक असली भारतीय फैन और पूर्व खिलाड़ी होने के नाते मैं यह देखने के लिए बेताब हूं कि 2011 का विश्व कप टीम इंडिया जीते.

Advertisement
X

Advertisement

एक असली भारतीय फैन और पूर्व खिलाड़ी होने के नाते मैं यह देखने के लिए बेताब हूं कि 2011 का विश्व कप टीम इंडिया जीते. 1983 में विश्व कप जीतने वाली टीम के सदस्यों के लिए यह शिखर पर एक लंबा और एकाकी ठहराव रहा है. अब समय आ गया है कि धोनी के लड़ाके हमारे साथ आ जाएं. लेकिन ऐसा हो, इसके लिए भारत को कई बाधाओं से पार पाना पड़ेगा.

कई लोगों ने पीयूष चावला को टीम में शामिल किए जाने की आलोचना की है. मेरा विश्वास है कि कप्तान और कोच सारे छिद्र बंद करना चाहते थे. भारतीय परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए वे नहीं चाहते थे कि कोई चूक रह जाए और फिर लोग कहें कि, ''अरे अगर हमारे पास कोई लेग स्पिनर होता, तो वह हमारे लिए यह मैच जीतने में मददगार हो सकता था.'' यह बात चावला के पक्ष में गई कि वे थोड़ी बल्लेबाजी भी कर सकते हैं. लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या चावला कोई नतीजा लाकर दिखा सकेंगे? हमें यह बात नहीं भूलनी चाहिए कि उन्होंने पिछले दो वर्ष से एक भी अंतरराष्ट्रीय मैच नहीं खेला है.

Advertisement

मैं इस बात पर विश्वास नहीं करता कि धोनी कोई भाग्यशाली कप्तान हैं. भाग्य बहादुरों का साथ देता है और यह बात धोनी पर भी लागू होती है. धोनी ने हमें 2007 में ट्वेंटी-20 विश्व कप जीत कर दिया था, लेकिन एकदिवसीय अंतरराष्ट्रीय मैचों का विश्व कप एक पूरी तरह अलग चीज है. ट्वेंटी-20 विश्व कप के दौरान हम पर कोई दबाव नहीं था. टीम से कोई अपेक्षा भी नहीं थी. लेकिन इस बार वे एक अरब लोगों की उम्मीद के केंद्र होंगे. घरेलू दर्शकों के सामने खेलना इस दबाव को और बढ़ाएगा. मैदान पर वे प्रायः शांत और संयत रहते हैं. धरती पर क्रिकेट से सबसे बड़े मेले के दौरान उन्हें अपना आपा नहीं खोना चाहिए.{mospagebreak}

भारत को अपनी बॉलिंग और फील्डिंग के बारे में भी सतर्क रहना होगा. जहीर खान अच्छी गेंदबाजी कर रहे हैं, लेकिन उन्हें दूसरे छोर से मदद हमेशा नहीं मिल पाती है. आशीष नेहरा विकेट चटकाने वाले गेंदबाज हैं, लेकिन उनकी फिटनेस चिंता का विषय है. 43 दिन लंबे टूर्नामेंट के बीच में उन्हें हिम्मत नहीं हारनी होगी. मुनफ पटेल अच्छी गेंदबाजी कर रहे हैं, लेकिन वे पहले से थोड़े धीमे हो गए हैं. भारतीय तेज गेंदबाज स्विंग और सीम के सहारे मूवमेंट पर ज्‍यादा निर्भर करते हैं. भारतीय पिचों पर गेंद उस तरह स्विंग नहीं कर सकती, जैसी स्विंग वे चाहेंगे. हमारे स्पिनर्स बेहद प्रभावी तभी होते हैं, जब तेज गेंदबाज उन्हें शुरुआती सफलताएं दिला चुके हों. जब ऐसा हो जाता है, हरभजन सिंह खतरनाक हो जाते हैं. इस तरह तेज गेंदबाजी और स्पिन गेंदबाजी, दोनों को एक-दूसरे का पूरक होना होगा. भारतीय परिस्थितियां स्पिनर्स की मदद करेंगी, लिहाजा तेज गेंदबाजों को उन्हें पूरी मदद देनी होगी.

Advertisement

एक और समस्या है पांचवें गेंदबाज के अभाव की. वीरेंद्र सहवाग, युवराज सिंह, यूसुफ पठान और सुरेश रैना के रूप में हमारे पास कुछ अंशकालिक गेंदबाज हैं. इनके द्वारा एक कसा हुआ स्पेल, भले ही उसमें विकेट न मिले, निर्णायक होगा. फील्डिंग भारत की कमजोर नस रही है. इधर हमारे कैच लेने में तो सुधार हुआ है, लेकिन मैदानी फील्डिंग चिंता का विषय बना हुआ है. चुस्त मैदानी फील्डिंग से बल्लेबाज पर दबाव पड़ता है और रन आउट होने की संभावना बढ़ जाती है.

1983 में विश्व कप की जीत में फील्डिंग ने अहम भूमिका निभाई थी. कपिलदेव ने विवियन रिचर्ड्‌स का जो हैरअंगेज कैच लपका था, उसे कौन भूल सकता है. कागज पर भारत की बल्लेबाजी की कतार संभवतः सबसे सशक्त है. लेकिन खास तौर पर अगर एक-दो विकेट जल्दी गिर जाएं तो कई बार यह भरभराकर ढहने के कगार पर ही होती है. लिहाजा हर बल्लेबाज को, चाहे वह पुछल्ला ही क्यों न हो, जिम्मेदारी की भावना के साथ बल्लेबाजी करनी होगी. जो भी किसी मैच में ठीक से बल्लेबाजी करे, उसे यह सुनिश्चित करना होगा कि वह अंत तक टिका रहे. {mospagebreak}

हाल के समय में अच्छा खेल दिखाने के बाद भारतीय टीम इठला रही है, लेकिन उसे विपक्षी टीम को कभी कमतर नहीं आंकना चाहिए. हमें उस ऑस्ट्रेलियाई टीम की अनदेखी नहीं करनी चाहिए, जिसने हाल ही में इंग्लैंड के खिलाफ एकदिवसीय अंतरराष्ट्रीय मैच सीरीज अच्छी तरह जीती थी. दक्षिण अफ्रीका और श्रीलंका दो अच्छी टीमें हैं. इंग्लैंड एक और सशक्त दावेदार होगा.

Advertisement

लिहाजा, टूर्नामेंट पूरी तरह खुला हुआ है. कप जीतने के लिए धोनी की टीम को न केवल सर्वश्रेष्ठ खेल दिखाना होगा, बल्कि दूसरी टीमों की कमजोरियों का दोहन भी करना होगा. अगर टीम इंडिया इन चुनौतियों से निबट लेती है, तो विश्व कप हमारा होगा.

Advertisement
Advertisement