एक तरफ देश में धर्म की तरह पूजा जाने वाला विदेशी खेल क्रिकेट जो अब लोगों की रग-रग में बस चुका है. दूसरी तरफ भारत के प्राचीन खेलों की परंपरा का वाहक कबड्डी... जो क्रिकेट की चकाचौंध के बीच कहीं गुम होता जा रहा था. लेकिन बदलते वक्त ने इस खेल को अब उस जगह पर लाकर खड़ा कर दिया है. जहां वह क्रिकेट को फिलहाल चुनौती देता हुआ तो नहीं, लेकिन उसके सामने खड़े होने की हिम्मत करता हुआ दिखाई दे रहा है.
क्रिकेट को चुनौती देती कबड्डी
अगर दस साल पहले का वक्त होता तो शायद ये सवाल ही बेमानी होता कि क्या कबड्डी क्रिकेट की तरह बड़ा खेल बन पाएगा. लेकिन आज ये सवाल हैरान नहीं करता. हाल के दिनों में इस शुद्ध देशी खेल कबड्डी के तरफ प्रायोजकों की बढ़ती रुचि और उनकी तरफ से मिल रहे संकेतों ने खेल के दिग्गजों को यह संदेश दे दिया है कि अब शूट बूट वाले खेल के सामने देशी मिट्टी से सना यह खेल कड़ी चुनौती के रुप में उभर रहा है.
कबड्डी की लोकप्रियता में इजाफा हुआ है
कबड्डी की लोकप्रियता में हाल के दिनों में काफी इजाफा हुआ है. इसकी वजह कबड्डी में भारत का महाशक्ति होना तो एक कारण है ही, प्रो कबड्डी लीग के जरिए इसे चकाचौंध से भरा खेल बनाना भी एक बड़ा कारण है. इस देश में विश्व विजेताओं की बेहद कमी है. ऐसे में कबड्डी के जरिए विश्व विजेता का एहसास होना लोगों को खुद के विश्व का सिरमौर होने का एहसास कराता है. उस एहसास के साथ जब चकाचौंध का मेल होता है बात दिल को छू जाती है. लोगों की रुचि पर पैनी निगाह रखने वाले प्रायोजकों ने जब देखा कि क्रिकेट से इतर अब लोगों की रुचि कबड्डी की तरफ बढ़ने लगी है तो उन्होंने इस खेल में भी पैसा लगाना शुरु कर दिया है.
खेलों में बढ़ रहे प्रायोजक
एक समय था जब देश में खेलोगे कूदोगे होओगो खराब, पढोगे लिखोगे बनोगे नबाव वाली कहावत हावी थी. लेकिन वक्त बीतने के साथ और खेलों को लेकर माहौल बदलने के साथ ये हालत भी अब बदली है. कुछ समय पहले तक खेल और खिलाड़ियों को प्रायोजक बड़ी मुश्किल से मिलते थे. परन्तु अब पहले वाली बात नहीं रही. ये सच है कि आज भी प्रायोजकों की कमी है, लेकिन दूसरा सच ये भी है कि हर साल खेलों में अधिक पैसा भी आ रहा है. अगर बीते दो सालों की ही तुलना करें तो ये फर्क साफ नजर आता है. साल 2015 में खेलों के बाजार में 2014 की तुलना में 12.3 फीसदी की बढ़ोतरी देखी गई और बाजार 5185.4 करोड़ हो गया. 2014 में ग्राउंड स्पोनसरशिप की 794.8 करोड़ थी और 2015 में बढ़कर 1030.5 हुई . यानि एक साल में ये 29.7 का इजाफा हुआ.
इंडोरसमेंट में बढ़ोतरी हुई
न सिर्फ खेल प्रायोजन में पिछले साल ज्यादा पैसा आया बल्कि इंडोर्समेंट पर भी ज्यादा पैसा खर्च किया गया. साल 2014 में जहां इंडोर्समेंट पर 327.8 करोड़ रुपए खर्च हुए थे वहीं 2015 में इस राशि में 27 फीसदी का भारी-भरकम इजाफा हुआ और कुल राशि बढ़कर 416.4 करोड़ रुपए तक पहुंच गई.
टीम स्पोनसरशिप में भी आया ज्यादा पैसा
टीम स्पोनसरशिप पर नजर डाले तो यह 2014 में 493.6 करोड़ थी जो 2015 में 558.2 करोड़ तक जा पहुंची. इसमें भी 13.1 फीसदी का इजाफा देखने को मिला. कुछ ऐसा ही इजाफा ऑन एयर प्रसारण में भी देखने को मिला। 2014 में ऑन एयर 2518 करोड़ रुपए खर्च हुए थे तो 2015 में यह 6.8 फीसदी बढ़कर 2690 करोड़ रुपए तक जा पहुंचा.
फ्रेंचचाइजी स्पोनसरशिप
फ्रेंचजाइजी स्पोनसरशिप की बात करें तो 2014 में 482.3 करोड़ थी. और 2015 में 1.7 फीसदी की बढ़ोतरी के साथ 490.3 करोड़ हुआ.
प्रायोजकों के लिए कबड्डी बना हॉट केक
ये तो रही तमाम खेल और उसके प्रायोजकों की बात. लेकिन इन खेलों के बीच जिस खेल ने प्रायोजकों को सबसे ज्यादा आकर्षित किया है वो भारतीय खेल प्रेमियों का जुनून क्रिकेट या दुनिया का सबसे लोकप्रिय खेल फुटबॉल नहीं बल्कि देशी मिट्टी से सना खेल कबड्डी है. क्रिकेट में जहां 2014 के 464.7 करोड़ की तुलना में 2015 में 529.5 करोड़ की राशि आई वहीं फुटबॉल में 59.5 करोड़ की तुलना में 2015 में 114 करोड़ रुपए आए. मैराथन में 45 करोड़ की तुलना में 69 करोड़ रुपए आए तो टेनिस में 35.6 करोड़ की तुलना में 47 करोड़ की राशि आई. लेकिन असल कमाल तो हुआ कबड्डी में जिसमें 2014 के बारह करोड़ रुपए के मुकाबले 2015 में 48 करोड़ रुपए लगाए गए. अन्य खेलों में 178 करोड़ से बढ़कर राशि 223 करोड़ तक पहुंच गई. ये आंकड़े जाहिर करते हैं कि क्रिकेट के खेलों में प्रतिशत के लिहाज से सबसे ज्यादा राशि का इजाफा हुआ है. क्रिकेट से अगर तुलना करें तो 2014 से 2015 के बीच जेंटलमैन गेम में जहां सबसे कम 13.9 फीसदी का इजाफा हआ, वहीं कबड्डी में अविश्वसनीय तीन सौ फीसदी की बढ़ोतरी देखी गई. हालांकि क्रिकेट के 539.5 करोड़ के मुकाबले 48 करोड़ की राशि नगन्य दिखाई पड़ती है.
अलग-अलग सेक्टर की भी कबड्डी में बढ़ी रुचि
वैसे अलग-अलग क्षेत्र की कंपनियो की खेलों में रुचि देखें तो शीर्ष पांच क्षेत्र की कंपनियों का रुझान भी कबड्डी में ज्यादा नजर आता है. मोबाइल हैंड सेट कंपनियों ने इंडियन प्रीमियर लीग की टीमों में 13.5 फीसदी का निवेश किया तो टेलेकॉम कंपनियों ने 11 फीसदी पैसे लगाए. कंज्यूमर ड्यूरेबल कंपनियों ने 10.6 तो रियल स्टेट कंपनियों ने अपने खेल बजट का 9.7 फीसदी पैसा लगाया. अन्य कंपनियों ने 48.5 फीसदी पैसे का निवेश किया. फुटबॉल के इंडियन सुपर लीग में रीयल स्टेट कंपनियों ने सबसे अधिक 15.2 फीसदी बजट लगाया तो वित्तीय सेवा देने वालों ने 13.6 फीसदी. ई कॉमर्स ने 12.9 तो एफीएमसीजी ने 9.5 फीसदी खेल बजट लगाया. एयरलाइंस कंपनियों का योगदान 6.5 फीसदी रहा. अन्य ने 42.2 फीसदी बजट खर्च किया.
कबड्डी मिलाएगा क्रिकेट से आंखे
अब बारी कबड्डी की, तेजी से उभरते प्रो कबड्डी लीग में एफएमसीजी कंपनियों ने सबसे अधिक 31.6 फीसदी बजट लगाया. रियल स्टेट कंपनियां 13.8 फीसदी के साथ दूसरे स्थान पर रहीं. वित्तीय सेवा प्रदाता कंपनियों ने 10.6 फीसदी तो ऊर्जा क्षेत्र की कंपनियों ने 9.4 फीसदी पैसे लगाए. अन्य क्षेत्र की कंपनियों का मिला-जुला योगदान 34.8 फीसदी रहा. इन तमाम आंकड़ों और खेलों के मैदान पर हवा के बदलते रुख को अगर कोई संकेत मानें तो वो यहीं है कि क्रिकेट अपने शिखर पर पहुंच चुका है. अब आगे उसके लिए रास्ता सिकुड़ता जा रहा है और संभावनाएं कम होती जा रही हैं. लेकिन कबड्डी के लिए तो जैसे खुला आकाश है. उसके लिए संभावनाओं का द्वार खुला हुआ है. शायद वो दिन दूर नहीं जब देशी खेल कबड्डी इंग्लैंड से आए खेल क्रिकेट की आंखों में आंख मिलाता दिखाई दे और लोगों की जुबान पर क्रिकेट सितारों का नाम ही नहीं कबड्डी स्टार का भी नाम हो.