ऐसा लगता है कि जैसे भारत ने अपनी पहचान खो दी हो. जन गण मन का उद्घोष भी अब शांत पड़ गया है. पहले अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति (आईओसी) के प्रति गुस्सा था. लेकिन अब लग रहा है कि जैसे विश्वासघात हुआ है. सेल्फ गोल जैसा महसूस हो रहा है. और लगता है हिंदुस्तान ने खुद को खो दिया.
सालों तक भारतीय ओलंपिक संघ (आईओए) के आला अधिकारियों ने भारतीय खिलाड़ियों के कुछ नहीं किया. कुछ करना तो दूर आज के संकट के लिए भी ये अधिकारी ही जिम्मेदार हैं. लेकिन अभी भी उम्मीद है. आईओए को बेहतर बनाया जा सकता है. राष्ट्रीय खेल संघों को भी सुधारा जा सकता है.
मुझे लगता है कि भारतीय खेल से जुड़े निर्णय लेने में खिलाड़ियों की सहभागिता ज्यादा जरूरी है. एथलीट कमिशन भी बनाया जा सकता है. आईओए के नए संविधान में आचार-संहिता, उम्र और कार्यकाल संबंधी नियम होने चाहिए. कमिशन एक स्वतंत्र संस्था होगी.
चुनावी प्रक्रिया में होने वाली धांधली भी चिंता का विषय है. इस हेराफेरी की मिसाल तब मिली जब हाईकोर्ट ने एक खेल संघ के चुनाव को खारिज कर दिया. इस चुनाव में कई गड़बड़ियां थीं. इस तरह की चीजें भविष्य में फिर से नहीं होनी चाहिए. आईएओ के संविधान में एक चुनाव आयोग होना चाहिए. अब योजना की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि इस आयोग को कितने प्रभावी ढंग से लागू कराया जाता है.
लेखक अंतरराष्ट्रीय निशानेबाज हैं जिन्होंने भारत के लिए 2004 के एथेंस ओलंपिक में रजत पदक जीता