प्रिय सचिन,
आप मुझे नहीं जानते होंगे. इस विशाल ग्रह के असंख्य जीवों में एक जान मेरी भी है. एक नामुराद सी धड़कन. मेरी आंखों में भी हैं कुछ सोए हुए सपने. कुछ कुंठाएं और कुछ कामयाबियों के भ्रम मेरे भी भीतर पलते हैं.
मुझे यह स्वीकार करने में कोई संकोच नहीं कि मुझे क्रिकेट के बारे में कुछ नहीं पता इसके बावजूद कि इस खेल को अपनी आंखों के सामने से गुज़रते हए देखना अच्छा लगता है. मैंने किसी के शतक पूरा होने पर कभी ताली नहीं पीटी और न आउट होने पर कभी उदासियों के उफान के नीचे धंसा. लेकिन इन आत्मउपहासों के समानांतर मैं अपने इस विरोधाभास को स्वीकार करता हूं कि क्रिकेट से निर्मोही की तरह जुड़े होने के बावजूद आपके वजूद के साथ मेरा जीवन रेशम और कीट की तरह जुड़ा हुआ था.
जिस दिन खबर आई कि अब आप इस खेल में अपने अंत की शुरुआत कर चुके हैं ऐसा लगा कि इस संसार की सैकड़ों गलत ख़बरों की तरह इसका भी खंडन आएगा. लेकिन कुछ सत्य शूल की तरह होते हैं. वो सीने में धंसकर अपनी सत्यता का एहसास कराते हैं. साढ़े 6 अरब लोगों की इस दुनिया में आपके दिल से निकला ये ऐसा ही सत्य था. कहा जा रहा है कि वानखेड़े के बाद आप क्रिकेट के नेपथ्य में चले जाएंगे.
क्या आपका जाना सिर्फ इस खेल से जाना है. या फिर उन कड़ियों का टूट जाना है जो मेरे जैसे निर्मोहियों के मन में इस खेल के प्रति आसक्ति पैदा करती थीं. उन रास्तों का बंद हो जाना है जो कभी रहस्यों के तहख़ाने में खुलते थे. उस विश्वास का ख़त्म हो जाना है जो यह इत्मिनान पैदा करता था कि इस खेल से ‘खेल’ करने वाले जब भी खड़े होंगे एक अकेली आकृति उनके खोखलेपन को अपनी आभा से ख़त्म कर देगी.
पता नहीं क्यों आपका रिकॉर्ड पर रिकॉर्ड बनाते जाना मुझे उन्मादी भले न बनाता रहा हो लेकिन आपका शतक से चूक जाना, कम रनों पर आउट हो जाना या फिर टीम से बाहर हो जाना एक टीस पैदा करता रहा. लगता था यह ठीक नहीं हुआ. क्या यह मेरे भीतर सोया एक क़िस्म का राष्ट्रवाद है जिससे मैं अपने आपको बचाता छिपाता रहा या फिर भावनाओं की एक अदृश्य डोर जिसे मन का चरखा श्रद्धा की रुई से बुनता है.
मुझे आपको ईश्वर कहने से हमेशा परहेज़ रहा और इसकी वजह मेरी नास्तिकता बिल्कुल नहीं थी. ऐसा इसलिए था कि आपको ईश्वर कहना आपको छोटा बना देता था. ईश्वर मानव की कल्पनाओं, कलाओं और धारणाओं का विचित्र निर्माण है जबकि आपने अपना जीवन संघर्ष के सांचे पर ज़िद की अग्नि से ढाला है.
महान लोगों के बीच तुलना एक तुच्छ आचरण है लेकिन मुझे अच्छा लगता है जब लोग आपको महानतम डॉन ब्रेडमैन के समानांतर रखते हैं. जब ब्रायन लारा कहते हैं कि आपका जीवन अविश्वसनीय है और उदाहरण अतुलनीय. जीवन को विचलित हुए बग़ैर जीने की कला का जैसा अविष्कार आपने किया है वह मुझे हमेशा आपकी ओर खींचता रहा.
आलोचनाओं के पानी में तैरती सुनहरी मछली की आभा सूर्य को भी चकित करती है. दंभ के बिना अपनी दिशाओं का अनुसंधान अगर एक कला है तो आप जैसा कलाकार इस पूरी धरती पर कोई नहीं. इतिहास बहुत निष्ठुर होता है. वह ज्वार के गुज़र जाने के बाद महानता की एक बार फिर से पैमाइश करता है. मुझे विश्वास है कि इतिहास में वह अवसर जब भी आएगा उसे अपनी इस रवायत पर अफ़सोस होगा.
बाकी दुनिया का मुझे पता नहीं लेकिन मेरे लिए निजी तौर पर आपकी विदाई क्रिकेट से मेरे अनुराग की भी विदाई है. उन वजहों का अतीत हो जाना है जिनकी वजह से यह खेल एक आकर्षण पैदा करता था. हजार विवाद के बीच अपवाद की तरह खुद को खड़ा करना सिर्फ हुनर और हौसले का जाया नहीं होता. अगला सचिन कौन की बहस के बीच मेरा ख्याल बस इतना है कि अतीत की भित्तियों पर भविष्य के ऐसे चित्र उन सांसों की सरगोशियों की कूंची गढ़ती है जिनमें अपने अस्तित्व के ख़त्म हो जाने का भय नहीं होता. यही चीज तुम्हें अमर बनाती है सचिन.
आपका
एक हिंदुस्तानी