एक तो करेला, दूजा नीम चढ़ा. कुछ ऐसी ही हालत है ब्रिटिश मीडिया की. एंडरसन को जुडिशियल कमिश्नर ने बरी क्या किया, ब्रिटेन के अखबार भारतीय टीम की नीयत पर सवाल उठाने लगे. कोई चुटकी ले रहा है तो खरी-खोटी सुना रहा है. जडेजा-एंडरसन मामले को जूडिशियल कमिश्नर ने ऐसे रफा-दफा किया कि सारी दफाएं धोनी पर लग गई हैं.
अंग्रेजों के देश में दबी जुबान में कोई उन्हें झूठा कह रहा है, तो कोई साजिश का मास्टर माइंड. ऐसा नहीं है कि जूडिशियल कमिश्नर ने धोनी को फटकार लगाई हो, फटकार तो छोड़िए कोई उल्टी-सीधी टिप्पणी भी नहीं की है. वैसे चुप तो इंग्लिश टीम भी है, मगर वहां के पत्रकार पैरोकार बन गए हैं एंडरसन एंड कंपनी का. वो टीम इंडिया को खरी खोटी सुना रहे हैं.
द गार्डियन
'भारत को लगातार दो दिनों में शर्मनाक हार हुई है, पहले मैदान पर और फिर सुनवाई में, और इंग्लैंड ने लुत्फ लिया है हौसला बढाने वाली जीत का. एंडरसन को बैन कराने की कोशिशों को एक ऑस्ट्रेलियन जज ने उखाड़ फेंका.'
द टेलीग्राफ
'भारत ने बिना किसी वजह के इस मामले पर दो करोड़ रुपये बहा दिए, जबकि ईसीबी ने सिर्फ 50 लाख रुपये.' ऐसी ही रिपोर्ट्स से भरे पड़े हैं इंग्लैंड के अखबार.
इंग्लैंड की मीडिया यलो जर्नलिज्म के लिए जानी जाती है, यानी बात का बतंगड़ बनाने के लिए. जब उन्हें मौका मिल गया है तो लाजिमी है वो राशन-पानी लेकर टीम इंडिया पर टूट पड़े हैं. ठीक एक दिन पहले वो सकते में थे, क्योंकि टीम इंडिया के कप्तान हुंकार रहे थे. जिस दिन जडेजा पर जुर्माना लगा था उस दिन धोनी ने एंडरसन और इंग्लैंड को भी खरी-खरी सुनाई थी.
दरअसल ये पहला मौका नहीं था, धोनी शुरुआत से ही इस मामले पर फ्रंट फुट पर खेल रहे थे. वो एंडरसन को बख्शने के मूड में नहीं थे. जाहिर है कि इस फैसले के बाद उन्हें और टीम इंडिया को बैकफुट पर जाना पड़ा है. टीम मैनेजर सुनील देव ने आजतक के साथ टीम का दर्द साझा किया. उन्होंने कहा, 'इतनी मेहनत, इतना पैसा लगाकर भी ये कैसे हो गया, अब तो अंग्रेज बहुत कुछ बोलेंगे, बहुत गलत हुआ.'
हो भी यही रहा है. धोनी भी शायद जानते थे कि ये होगा, शायद इसी लिए सुनवाई के बाद वो मीडिया की नजर से बचकर पिछले दरवाजे से मैनचेस्टर के लिए रवाना हो गए. ये सबकुछ टीम इंडिया के लिए जितना दुखद है, उतना ही दुखद भारतीय क्रिकेट प्रेमियो के लिए भी है. मगर सवाल ये है कि क्या वो सबकुछ किया गया जिससे साख सलामत रहती.
क्या बीसीसीआई ने टीम और कप्तान का पूरा साथ दिया?
ये सच है कि बीसीसीआई ने पैसा खर्च किया, क्या खिलाड़ियों का उसने वैसा साथ निभाया जैसा 2008 में मंकी गेट के दौरान निभाया था. ये सवाल इसलिए उठता है क्योंकि दुनिया में बीसीसीआई की तूती बोलती है, ऐसे में इस तरह का फैसला चौंकाता है.
क्या एंटी करप्टशन यूनिट के पास है कोई जवाब?
फैसले में एक बात तो साफ थी कि नॉटिंघम में उस दिन, प्लेयर्स एरिया में सीसीटीवी कैमरे काम नहीं कर रहे थे, इसलिए कोई सबूत नहीं मिला. चलिए एंडरसन और जडेजा के झगड़े को एक छोटी घटना भी मान लिया जाए तो भी सीसीटीवी के न चलने को किसी भी तरह से नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. फर्ज कीजिए अगर ये वारदात झगड़े की नहीं मैच फिक्सिंग या स्पॉट फिक्सिंग की होती तो क्या होता? क्या एसीयू के पास कोई जवाब है, अगर नहीं तो क्या उस अधिकारी को सजा नहीं मिलनी चाहिए जो उस वक्त मैच में था? अंग्रेंजो को ये बातें नहीं दिख रही हैं, वो मजा लेने के मूड में है, चाहे उनका मजा किसी और के लिए सजा ही क्यों ना हो.