भारतीय हॉकी की मौजूदा दशा से व्यथित तीन बार के ओलंपिक स्वर्ण पदक विजेता बलबीर सिंह सीनियर ने इसके पुनरोद्धार के लिये एक योजना तैयार की है और अगली भारत यात्रा पर वह इसे खेलमंत्री अजय माकन को सौपेंगे.
लंदन (1948), हेलसिंकी (1952) और मेलबॉर्न (1956) ओलंपिक में भारत की स्वर्णिम जीत के सूत्रधार रहे बलबीर ने कहा, ‘जब भारत बीजिंग ओलंपिक 2008 के लिये क्वालीफाई नहीं कर सका तो मैं स्तब्ध रह गया. मैं जानता था कि हमारा स्तर गिर रहा है पर इतना गिर जायेगा, यह सोचा नहीं था. इससे मुझे भारतीय हॉकी के पुनरोद्धार के लिये योजना बनाने पर मजबूर होना पड़ा.’
उन्होंने कहा, ‘इसमें सबसे अहम बात यह है कि खिलाड़ियों, टीमों, कोचों और मैनेजरों के लिये सब कुछ उनके प्रदर्शन पर निर्भर होगा. पक्षपात की कोई गुंजाइश नहीं होगी. मैं भारतीय हॉकी में जारी सत्ता के संघर्ष के कारण पिछली बार भारत दौरे पर इसे खेलमंत्री को पेश नहीं कर सका लेकिन अब दिसंबर में जरूर पेश करूंगा.’
भारत के सबसे उम्रदराज हॉकी ओलंपियन ने उम्मीद जताई कि यह टीम लंदन ओलंपिक 2012 के लिये क्वालीफाई करेगी. उन्होंने कहा, ‘मुझे लगता है कि हमारी टीम लंदन ओलंपिक के लिये क्वालीफाई करेगी. खिलाड़ियों और कोच को चाहिये कि कोई नकारात्मक सोच दिमाग में ना लाये. सफलता बहुत हद तक मानसिकता पर निर्भर करती है.’
भारतीय हाकी के सुनहरे दौर को भुना नहीं पाने का मलाल भी बलबीर को है और वह इसे राष्ट्रीय खेल की मौजूदा दशा के लिये जिम्मेदार भी मानते हैं.
भारतीय टीम के कोच और मैनेजर रहे बलबीर ने कहा, ‘मुझे लगता है कि आठ बार ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतने के बाद हम आत्ममुग्ध हो गए. इसके अलावा प्रतिभा तलाश योजनाओं के अभाव, शैक्षणिक संस्थाओं में खाली पड़े हॉकी मैदानों, सुनहरे दौर में हॉकी की सही मार्केटिंग नहीं कर पाना, सरकार की ओर से पहल के अभाव, पदकों के अकाल और युवाओं का पैसे की बरसात करने वाले खेलों की ओर रूझान हॉकी की मौजूदा दशा के अहम कारण रहे.’
उन्होंने कहा, ‘इसके अलावा नियमों, उपकरणों, शैली में बदलाव, तकनीकी मदद और जरूरी पोषक आहार के अभाव की वजह से भी भारत विदेशी टीमों से पिछड़ गया. ऐसा नहीं है कि हम खोया गौरव फिर हासिल नहीं कर सकते लेकिन इसके लिये इच्छाशक्ति होना जरूरी है.’
बलबीर ने कहा, ‘हम हॉकी की सही मार्केटिंग नहीं कर सके और यही वजह है कि कई पूर्व ओलंपियनों के परिवार आज आर्थिक मदद के मोहताज हो गए हैं.’
इक्कीस बरस पहले पारिवारिक मजबूरियों के कारण कनाडा जा बसे बलबीर ने कहा कि हॉकी में सब कुछ बदल गया है.
भारतीय हॉकी टीम के लिये फिटनेस का गिरता स्तर चिंता बनी हुई है हालांकि बलबीर ने कहा कि उनके दौर में भी पश्चिमी टीमों की फिटनेस का स्तर बेहतर था लेकिन भारतीय खिलाड़ी तकनीक के दम पर बाजी मार लेते थे.
उन्होंने कहा, ‘पश्चिमी देशों के खिलाड़ी हमेशा से फिटनेस के मामले में हमसे आगे थे लेकिन बेहतर तकनीक के दम पर हमारा पलड़ा भारी रहता था. फिटनेस के लिये हम रोप स्कीपिंग, रोप क्लाइंबिंग, सैंड रनिंग और पहाड़ों पर चढने जैसी कसरतें करते थे.’
भारतीय हॉकी के सुनहरे दौर की सफलता के बारे में उन्होंने कहा, ‘भारत में कठोर और तेज सतह पर गेंद तेजी से घूमती थी और हम गेंद पर बेहतर नियंत्रण करना सीख गए. एम्सटर्डम में 1928 में मिले पहले स्वर्ण ने भारत में हॉकी को लोकप्रिय बना दिया. हमने हॉकी स्टिक की कर्व को बहुत पहले ही छोटा कर लिया जिससे खिलाड़ी दोनों तरफ से गेंद ड्रिबल करने लगे. यूरोपीय टीमों ने बहुत समय बाद जाकर इस बारे में सोचा.’