बीसीसीआई में सबसे ज्यादा तजुर्बे वाले शख्स जगमोहन डालमिया को इस बार दांव चलने की जरूरत नहीं पड़ी. उनकी चुप्पी, इतिहास की समझ और अनुभव काम कर गया. इसमें किस्मत का तड़का लगाया अरुण जेटली की रणनीति ने. और इस तरह धुरंधर वकील ने पवार गुट की बोर्ड में एंट्री भी रोक दी, श्रीनिवासन को भी किनारे कर दिया और आगे अपने लिए भी रास्ता साफ कर लिया.
सब कुछ चला स्क्रिप्ट के मुताबिक
बार-बार ऐसा बताया जा रहा था कि आईपीएल फाइनल के पहले 23 मई को कोलकाता के एक फाइव स्टार होटल में हुए डिनर में ज्यादातर बोर्ड मेंबर श्रीनिवासन के खिलाफ थे और उनके इस्तीफे की मांग कर रहे थे. उसके बाद अरुण जेटली और राजीव शुक्ला की सदारत में बगावत का ताना बाना बुने जाने की खबरें आईं. और फिर शरद पवार ने पावर प्ले का मौका ताड़ बैटिंग शुरू कर दी. उन्होंने अपने सिपहसालार और पिछले बोर्ड अध्यक्ष शशांक मनोहर का नाम आगे बढ़ाया. पवार को लगा कि मनोहर की साफ सुथरी छवि उनके काम आएगी और उसके साथ आएगा हाथ से फिसली सोने के अंडे वाली मुर्गी पर फिर कब्जा करने का मौका. मगर जेटली तब तक उनकी राजनीति और रणनीति भांप चुके थे. उन्होंने अपना व्यूह नए सिरे से रचा.
डालमिया ने दी सिंपैथी डोज
घटनाक्रम की शुरुआत में ही श्रीनिवासन ने खुद के दिमाग में यह यकीन बैठा लिया कि उन्हें इस्तीफा नहीं देना है. कैब अध्यक्ष जगमोहन डालमिया ने उन्हें इतिहास समझाया. नब्बे के दशक में जब फिक्सिंग का पहला भंडाफोड़ हुआ, तो राज सिंह डूंगरपुर बीसीसीआई अध्यक्ष थे. वह पद पर बने रहे. फिर जब सीबीआई की रिपोर्ट दाखिल हुई और खिलाड़ियों की संलिप्तता स्थापित हुई, तब मुथैया अध्यक्ष थे और वह भी काबिज रहे. तो श्रीनिवासन इस्तीफा क्यों दें. मगर फिर डालमिया ने यह भी कहा कि यहां एंगल कुछ अलग है क्योंकि जांच के दायरे में श्रीनिवासन के दामाद मयप्पन भी हैं.
सलाह के साथ-साथ डालमिया ने एक बात का और ध्यान रखा. उन्होंने जल्दबाजी नहीं की. शुरुआती दौर में बोर्ड के सदस्य डालमिया को आगे कर श्रीनिवासन को हटाना चाहते थे. मगर डालमिया ने कहा कि मेरी सेहत ठीक नहीं. साथ ही उन्होंने श्रीनिवासन को अपने सपोर्ट का भरोसा दिलाया और कहा कि डटे रहिए. यहां से श्रीनिवासन की निगाह में डालमिया जम गए.
फिर जब पवार ने पत्ते फेंटन और फेंकने शुरू किए, तो लड़ाई की सबसे पुरानी कहावत शक्ल पाने लगी. अगर दुश्मन साझा हों, तो दोस्ती हो ही जाती है. मुथैया और श्रीनिवासन जानी दुश्मन हैं, तो डालमिया राज को पवार ने खत्म किया था. ऐसे में जब मुथैया और पवार फिर से जुगलबंदी कर श्रीनिवासन को घेर रहे थे, तब डालमिया ने तय कर लिया कि पवार को बोर्ड में दोबारा नहीं घुसने देना है.
वकील साहब की सबने मानी
उधर बोर्ड वाइस प्रेजिडेंट अरुण जेटली तक हर गुट की सूचनाएं भी पहुंच रही थीं और साझेदारी के ऑफर भी. जेटली भी डालमिया की तरह जल्दबाजी में नहीं थे और यह समझ रहे थे कि फिलहाल बोर्ड अध्यक्ष के कांटे भरे ताज के बजाय तख्त की असली ताकत बन पर्दे के पीछे रहना मुनासिब होगा. उन्होंने बोर्ड के असंतुष्ट सदस्यों के बयानों के जरिए श्रीनिवासन पर दबाव बनवाए रखा. साथ ही यह भी सुनिश्चत किया कि वह पूरी तरह हथियार न डाल दें.
और फिर रविवार को हुई मीटिंग की फाइनल स्क्रिप्ट भी उन्होंने ही रची. यह शुक्रवार को ही तय हो गया था कि श्रीनिवासन इस्तीफा नहीं देंगे. एक अंतरिम अध्यक्ष बनेगा, जो जांच तक काम देखेगा. इस व्यवस्था में बहुत झोल हैं. इस्तीफा दे चुके पवार के नजदीकी माने जाते कोषाध्यक्ष शिरके हों या पंजाब क्रिकेट असोसिशएन के हेड आई एस बिंद्रा, सबने इनकी तरफ ध्यान दिलाया. मीटिंग में राजीव शुक्ला बोले कि इस व्यवस्था का अनुमोदन अगली कार्यकारिणी मीटिंग में हो जाएगा. फिर जेटली ने दो नाम रखे. बोर्ड के भीतर से डालमिया का और अगर बाहरी का विकल्प देखें, तो शशांक मनोहर का. श्रीनिवासन डालमिया के नाम पर मान गए. पुराना रसूख और बिंद्रा के साथ साझेदारी का कमाल रहा कि बाकी सदस्य भी डालमिया का विरोध नहीं कर सके.
इस तरह श्रीनिवासन को बोर्ड से दूर किया गया. गौर करने की बात ये है कि ये जांच कितनी भी तेज चले, सितंबर से पहले पूरी नहीं होगी और तब तक श्रीनिवासन का कार्यकाल पूरा हो चुका होगा.पवार को बोर्ड वापसी के लिए इंतजार करना होगा. उन्होंने मुंबई क्रिकेट असोसिएशन में एंट्री की कवायद शुरू भी कर दी है. उधर डालमिया अंतरिम के बाद पूरी तरह से काबिज होने के लिए लालायित हैं. मगर ये इस पर तय करेगा कि अरुण जेटली की क्रिकेट को लेकर अगली पटकथा में वह किस रोल में फिट होते हैं.