scorecardresearch
 

OPINION: भारत रत्न: ध्यानचंद को भुला दिया?

सरकार ने सचिन तेंदुलकर को समय रहते भारत रत्न देकर अच्छा किया, लेकिन ध्यानचंद की शानदार उपलब्धियों को भूलना नहीं चाहिए. लोकप्रियता की लहर का फायदा उठाने की बजाय उसे खेलों के हित में सोचना चाहिए था और एक महानायक की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए थी.

Advertisement
X
ध्यानचंद
ध्यानचंद

सचिन तेंदुलकर को क्रिकेट से विदाई के दिन ही भारत रत्न सम्मान देने की घोषणा करके सरकार ने एक अच्छा कदम तो उठाया, लेकिन इससे विवादों का पिटारा भी खोल दिया. यूं तो आज तक की वोटिंग में हमने देखा कि लगभग 68 प्रतिशत लोग सचिन को यह सर्वोच्च सम्मान देने के पक्ष में थे. लेकिन लगभग 32 प्रतिशत लोगों का इससे असहमति जताना भी मायने रखता है.

Advertisement

सचिन तेंदुलकर की खेल के मैदान में जो उपलब्धियां हैं उसके लिए उन्होंने काफी कुछ पाया भी. उन्हें भारत के सबसे प्रिय खिलाड़ी के रूप में भरपूर प्रशंसा तो मिली ही, अकूत दौलत भी मिली. वे एक ऐसे ब्रैंड बन गए, जिसकी खेल की दुनिया में कोई सानी नहीं. हर बड़ी कंपनी सचिन से अपने ब्रैंड का एंडोरसमेंट चाहती थी और उसके लिए मुंहमांगे पैसे देने को तैयार रहती थी.

नतीजतन सचिन तेंदुलकर दुनिया के सबसे धनाढ्य खिलाड़ियों में शुमार हो गए. फोर्ब्स पत्रिका ने सचिन को दुनिया के सबसे धनी खिलाड़ियों की सूची में 51 वें स्थान पर रखा है. मतलब साफ है कि सचिन ने देश को जितना दिया, उससे कम उन्हें नहीं मिला. लेकिन हॉकी के जादूगर ध्यानचंद को जरा याद कीजिए. हॉकी का यह विलक्षण खिलाड़ी ध्यान चंद निस्वार्थ भाव से खेलता रहा, शोहरत और धन से दूर. उनके जीवन में कुछ नहीं था, हॉकी के सिवा.

Advertisement

ध्यानचंद को हॉकी के जादूगर के रूप में जाना जाता था. अपने करियर में उन्होंने कुल 1,000 गोल किए जो आज कई सोच नहीं सकता. इनमें से 101 गोल तो ओलिंपिक खेलों में दागे गए थे. ध्यान चंद के खेल को देखकर सारी दुनिया हैरान रह गई. न जाने कितने बड़े लोगों ने उनकी प्रशंसा की. क्रिकेट के शौकीनों को जानकर हैरानी होगी कि खुद डॉन ब्रैडमैन ने ध्यान चंद का खेल देखकर कहा कि वो तो रन बनाने की तरह गोल दागते हैं. उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय हॉकी टूर्नामेंटों में कई महत्वपूर्ण जीत दिलाकर पराधीन भारत का सम्मान बढ़ाया.

इतनी सारी उपलब्धियों के बावजूद ध्यानचंद को वह सम्मान नहीं मिल सका, जिसके वह हकदार थे. उन्होंने न तो कभी धन की चाहत की और न सम्मान की. वह धन के अभाव में रहे, बीमारी से पीड़ित रहे और किसी ने उनकी तरफ देखा नहीं, जबकि विदेशों में उनकी धूम मची रही, ऑस्ट्रिया में उनकी आदमकद प्रतिमा लगाई गई और इंग्लैंड में उनके नाम पर एक स्टेशन का नाम भी रखा गया.

उन्होंने नि:स्वार्थ भाव से हॉकी की सेवा की और रिटायरमेंट के बाद भी बच्चों को मुफ्त में हॉकी सिखाते रहे. भारत मां के इस सपूत को भारत रत्न देने के सभी कारण मौजूद हैं. सरकार ने सचिन को समय रहते हुए भारत रत्न देकर अच्छा किया, लेकिन ध्यानचंद की शानदार उपलब्धियों को उसे भूलना नहीं चाहिए. लोकप्रियता की लहर का फायदा उठाने की बजाय उसे खेलों के हित में सोचना चाहिए था और एक महानायक की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए थी.

Advertisement
Advertisement