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विश्वकप में छोटी टीमों की बड़ी चुनौती

विश्वकप में अभी तक बड़ी टीमों का प्रदर्शन भले ही बेहद अच्छा ना हो लेकिन छोटी टीमों ने अपने प्रदर्शन से हर किसी को चौंकाया है. आयरलैंड ने तो इंग्लैंड जैसी टीम को हरा भी दिया, लेकिन बड़ी टीमों के खिलाफ कम ही खेलने वाली ये टीमें, इनको लेकर आईसीसी के रवैये से नाखुश हैं.

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हालैंड की टीम
हालैंड की टीम

विश्वकप में अभी तक बड़ी टीमों का प्रदर्शन भले ही बेहद अच्छा ना हो लेकिन छोटी टीमों ने अपने प्रदर्शन से हर किसी को चौंकाया है. आयरलैंड ने तो इंग्लैंड जैसी टीम को हरा भी दिया , लेकिन बड़ी टीमों के खिलाफ कम ही खेलने वाली ये टीमें, इनको लेकर आईसीसी के रवैये से नाखुश हैं.

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आयरलैंड, ज़िम्बाब्वे या नीदरलैंड्स- 2011 वर्ल्ड कप में अभी तक छोटी टीमों ने बड़ी चुनौती पेश की है. मज़बूत टीमों को पानी पिलाया है तो बड़े खिलाड़ियों को नाकों चने चबवा दिए हैं.

आयरलैंड ने तो इंग्लैंड जैसी टीम को मात देकर ये साबित कर दिया है कि इन टीमों को बस मौका चाहिए, चौका लगाने का दम ये भी रखते हैं. लेकिन जिस एक बात की कसक इन टीमों को है वो है इन्हें बड़ी टीमों के खिलाफ ज़्यादा मौके ना दिया जाना.

विश्वकप कप के अलावा ये टीमें सिर्फ एक-दूसरे के खिलाफ ही खेलती हैं, ऐसे में इनके दमखम का अंदाज़ा लगा पाना मुश्किल होता है.

इस विश्वकप में इन टीमों के खिलाड़ियों ने कुछ ऐसे यादगार पल भी दिए जिन्हें देखने वाले कभी नहीं भूल पाएंगे. इंग्लैंड के खिलाफ केविन ओ ब्रायन के दमदार छक्के हों और जॉन मूनी की मैच जिताऊ पारी, हर किसी को याद होगी. लेकिन ये दोनों खिलाड़ी भी बड़ी टीमों के खिलाफ ज़्यादा मौके ना मिल पाने से निराश हैं.

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आईसीसी अगला वर्ल्ड कप सिर्फ 10 टीमों तक सीमित रखने पर विचार कर रही है, लेकिन जैसा प्रदर्शन इन छोटी टीमों ने इस विश्वकप में किया है उसने आईसीसी को भी सोचने पर मजबूर ज़रूर किया होगा.

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