पांच बार के विश्व चैंपियन विश्वनाथन आनंद का अपना खिताब बरकरार रखने का सपना चकनाचूर हो गया, जबकि नार्वे के मैगनस कार्लसन विश्व चैंपियनशिप में दसवीं बाजी ड्रॉ कराकर शतरंज के नए बादशाह बन गए.
कार्लसन, जो कि 30 नवंबर को अपना 23वां जन्मदिन मनाएंगे, ने दो बाजियां शेष रहते ही खिताब अपने नाम किया. उन्होंने दस बाजियों में से तीन में जीत दर्ज की, जबकि बाकी सात बाजियां ड्रॉ रहीं. इस तरह से कार्लसन 6.5 अंक हासिल करके दसवीं बाजी के बाद ही विश्व चैंपियन बन गए. यह शतरंज की दुनिया में नए युग की शुरुआत है.
कार्लसन को खिताब के लिए केवल ड्रॉ की दरकार थी, लेकिन उन्होंने नीरस खेल दिखाने के बजाय आनंद को पूरी चुनौती दी, जिससे दसवीं बाजी काफी कड़ी बन गई थी. आलम यह रहा कि नार्वे के खिलाड़ी ने आनंद को चार घंटे और 45 मिनट तक जूझने के लिए मजबूर किया. विश्व चैंपियनशिप के इतिहास में यह सबसे एकतरफा मुकाबला रहा, जिसके समाप्त होने के बाद आनंद ने निश्चित तौर पर राहत की सांस ली होगी.
आनंद ने पांच बार 2000, 2007, 2008, 2010 और 2012 में खिताब जीता था, लेकिन विडम्बना देखिए कि उन्हें अपने घरेलू शहर चेन्नई में अपना ताज गंवाना पड़ा. यही नहीं यह पहला अवसर है, जबकि आनंद विश्व चैंपियनशिप मुकाबले में एक भी बाजी जीतने में नाकाम रहे. आनंद ने 1991 से लेकर पिछले 22 वर्षों में प्रत्येक मुकाबले में एक बाजी जरूरी जीती थी. कार्लसन ने दसवीं बाजी के शुरू से ही मनमाफिक चाल चली. उन्होंने वैसी ही शुरुआत की जैसी वह चाहते थे और अपने प्रतिद्वंद्वी को घेरने के लिये सही तरह से आगे बढ़े. आनंद ने इस बार हालांकि हार नहीं मानी और अपने शानदार रक्षण से आखिर में बाजी को ड्रॉ करवाया.
जैसी कि उम्मीद थी आनंद ने सिसिलियन डिफेन्स अपनाया. उन्हें मास्को वैरीएशन का सामना करना पड़ा, जिसे कार्लसन पहले भी आजमा चुके थे. दोनों खिलाडि़यों ने शुरू में रुटीन चालें चली और कार्लसन ने तीसरी चाल में चेक दिया. आखिर में जब बोर्ड से दो छोटे मोहरे बाहर चले गए थे, तब सफेद मोहरों से खेल रहे कार्लसन थोड़े फायदे की स्थिति में थे, लेकिन उन्होंने ड्रॉ की कोशिश नहीं की. वह 21वीं चाल थी जिसके बाद अधिकतर शतरंज विशेषज्ञों का मानना था कि दोनों खिलाडि़यों को अपनी चालों को दोहराने में खुशी होगी.
कार्लसन खिताब के करीब थे और आनंद की ज्यादा उम्मीद नहीं बची थी. हालांकि नार्वे का खिलाड़ी चाल दोहराने से पहले हटा. आनंद ने इसके बाद दो छोटे मोहरों की अदला-बदली के बाद कुछ राहत की सांस ली, लेकिन तब दबाव उन्हीं पर था. कार्लसन ने 28वीं चाल में राजा के सामने के प्यादे को पांचवें खाने में आगे बढ़ाकर समाप्ति की तरफ कदम बढ़ाए. आनंद ने कुछ चाल बाद वापसी की और आखिर में बाजी घोड़े और कुछ प्यादों के समापन की तरफ बढ़ गयी. आनंद के लिये स्थिति अधिक जटिल करते हुए कार्लसन ने अपना राजा आगे बढ़ाकर अपनी मजबूत स्थिति बरकरार रखी.
आनंद को अपने घोड़े और राजा को बचाव में लगाना पड़ा ताकि आगे कोई नुकसान नहीं हो. दोनों खिलाड़ी लगभग तीन घंटे में पहले टाइम कंट्रोल पर पहुंचे, जबकि 40 बाजियां पूरी हुई, लेकिन तब तक साफ हो गया था कि या तो कार्लसन जीत दर्ज करेगा या फिर बाजी ड्रॉ होगी. दोनों ही स्थितियों में आनंद का अभियान समाप्त हो जाना था और पांच बार के विश्व चैंपियन के लिये यह बेहद अरुचिकर काम करने जैसा था.
खेल आगे बढ़ने के साथ आनंद कुछ बैचेन भी लग रहे थे, लेकिन एक समय कार्लसन को देखकर लग रहा था कि जैसे कि वह कोई खूंखार जानवर हों. वे सहज दिख रहे थे, लेकिन अपनी राह में आने वाले हर शिकार को खाना चाहते थे. खेल में 46वीं चाल में नाटकीय मोड़ आया, जब कार्लसन ने बड़ी देर तक विचार करने के बाद चाल चली. ऐसा लग रहा था कि नार्वे का खिलाड़ी अपने कुछ मोहरों का बलिदान करना चाहता है और दो चालों के बाद उन्होंने ऐसा किया भी. इसके कारण आनंद अपने सभी प्यादे गंवा बैठे और बोर्ड पर नई रानियां आ गयी.
आनंद के पास अतिरिक्त घोड़ा था, लेकिन कार्लसन के पास रानी और खतरनाक दिख रहे दो प्यादे थे. आनंद ने ऐसे में सही चाल पर ध्यान दिया और कार्लसन को ड्रॉ के लिए मजबूर किया. यह बाजी 65 चाल तक चली. कार्लसन को खिताब के अलावा पुरस्कार राशि का 60 प्रतिशत हिस्सा मिला, जो कि लगभग 14 करोड़ रुपये बनता है.