23 दिसंबर 2004 को जब वो जुल्फों वाला हट्टा कट्टा अनजान सा लड़का क्रीज पर आया और पहली ही गेंद पर रन आउट हो गया, तो किसी ने नहीं सोचा था कि आगे चलकर वह भारतीय क्रिकेट की उंगली थाम नई बुलंदियों तक ले जाएगा. इस दिन को सात साल भी नहीं हुए थे कि सचिन तेंदुलकर को कंधे पर उठा टीम इंडिया विश्व कप जीतने का जश्न मना रही थी. पूरा देश भावुक हुआ जा रहा था. और तेंदुलकर सबसे ज्यादा. इस जीत के बाद उन्होंने कहा था कि वह अब तक जितने खिलाड़ियों की कप्तानी में खेले हैं, धोनी उनमें सर्वश्रेष्ठ हैं.
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दुनिया के सबसे अच्छे बल्लेबाज ने माना कि यह शांत चित्त धोनी का ही असर था, जो पूरी टीम पर दिखाई दिया. दबाव पर काबू पाने के मामले में वह अविश्वसनीयता की हद तक अच्छे हैं.
पोर्ट ऑफ स्पेन में श्रीलंका के खिलाफ ट्राई सीरीज का फाइनल जिताने के बाद धोनी ने पहली बार कहा कि उनके पास क्रिकेट की अच्छी समझ है. उन्होंने बताया कि वह जानते थे कि आखिरी ओवर में वह 15 रन बना लेंगे. इसी समझ और आत्मविश्वास ने उनका नाम भारत ही नहीं, दुनिया के बेहतरीन कप्तानों में शामिल किया है. क्रिकेट की दुनिया के नामचीन दिग्गज अगर 'कैप्टन कूल' के कायल हैं, तो इसकी ठोस वजहें हैं.
सौरव गांगुली बोले, चमत्कारी हैं महेंद्र सिंह धोनीआंकड़े बोलते हैं
धोनी मैदान ही नहीं, कागज पर भी चुनिंदा कप्तानों में अपनी दावेदारी को मजबूत करते हैं. टेस्ट और वनडे रिकॉर्ड के मामले में वह सभी भारतीय कप्तानों से सबसे आगे हैं. 2007 में राहुल द्रविड़ से कप्तानी लेने के बाद श्रीलंका और न्यूजीलैंड में सीरीज जिताकर उन्होंने धमाकेदार शुरुआत की. उनकी कप्तानी में हमने 2007 में 20-20 विश्व कप, 2007-08 में सीबी सीरीज, 2010 में एशिया कप, 2011 में विश्व कप और इसी साल चैंपियंस ट्रॉफी जीती. धोनी का जलवा टेस्ट में भी खूब चला. उन्हीं की कप्तानी में 2009 में भारत पहली बार टेस्ट में नंबर वन बना. ऑस्ट्रेलिया पर क्लीन स्वीप करने वाले 40 सालों में हम पहले देश बने. मार्च 2013 में सौरव गांगुली को पीछे छोड़ वह भारत के सबसे सफल टेस्ट कप्तान बन हए. दादा ने एक इंटरव्यू में धोनी को भारत का 'ऑलटाइम ग्रेटेस्ट' कप्तान बताया.
फोटो: धोनी ने कदमों से कैसे नापी दुनिया...
धोनी के लिए कप्तानी का मतलब
धोनी ने अपने एक इंटरव्यू में कहा कि उनके लिए कप्तान की भूमिका से ज्यादा, बतौर खिलाड़ी उनकी भूमिका मायने रखती है. उनके मुताबिक, 'कप्तान के तौर पर आपके फैसलों का टीम पर बड़ा असर होता है, पर बहुत कुछ आपके निजी प्रदर्शन पर भी निर्भर करता है. इसलिए मैं हमेशा यह मानता रहा हूं कि कप्तान वह है जो सारा दबाव बटोरता है और अलग-अलग खिलाड़ियों तक ट्रांसफर करता है. दरअसल वह एक स्वार्थी आदमी है, जो अपना काम करवाने के लिए लड़के चुनता है. बतौर टीम हमारे लिए सारे मैच जीतने से ज्यादा जरूरी है, हारने के बाद भी मनोबल बनाए रखना.'
टीम के लिए उदाहरण पेश करते हैं
एक कप्तान का सबसे अहम गुण है कि वह आगे बढ़कर जिम्मेदारी उठाए और अच्छा प्रदर्शन करके टीम के लिए उदाहरण पेश करे. इस मोर्चे पर धोनी लाजवाब हैं. वह कई बार अपना यह खास हुनर दिखा चुके हैं. इसी वजह से उन्हें दुनिया का सर्वश्रेष्ठ 'फिनिशर' भी कहा जाने लगा है. 2011 विश्व कप फाइनल में धोनी ने 79 गेंदों पर 91 रन ठोंककर टीम की जीत में अहम भूमिका निभाई और मैन ऑफ द मैच बने. 226 मैचों में वह 57 बार नॉट आउट रहे हैं. वन डे क्रिकेट में औसत के मामले में वह पांचवें नंबर पर हैं. उनका औसत 51.45 है.
कूल रहेंगे, काम करेंगे
करोड़ों भारतीयों की महती अपेक्षाओं का बोझ ढोना हर किसी के बूते में नहीं. लेकिन धोनी लंबे समय से इन अपेक्षाओं पर खरे उतर रहे हैं. नाजुक मौकों पर भी वह धीरज बनाए रखते हैं, और यह शायद उनकी सबसे बड़ी खूबियों में से है. वह कभी विपक्षी खिलाड़ियों के उकसावे में भी नहीं आते और टीम को भी इसके लिए प्रेरित करते हैं. उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा था, 'मैं उस तरह का कप्तान नहीं हूं जो मैच रेफरी के पास जाकर अपने खिलाड़ी के लिए विनती करे कि यह उसने पहली बार किया है, छोड़ दीजिए. आप सब कुछ जानते हुए भी गलत किया है तो आपको सजा मिलनी चाहिए.'
प्रयोगों से कतराते नहीं
टी-20 विश्व कप के फाइनल में यूसुफ पठान को ओपनिंग करने भेज दिया. आखिरी ओवर के लिए गेंद नौसिखिया गेंदबाज जोगिंदर शर्मा को थमा दी. रोहित शर्मा से ओपनिंग कराने का फैसला लिया. स्पिनर से पहला ओवर भी कराया और आखिरी भी. धोनी किसी भी तरह का फैसला ले सकते हैं. उनके प्रयोगों में कई बार भयंकर जोखिम भी होता है, पर वे इसे पूरी जिम्मेदारी से उठाते हैं और अकसर आशंकाओं को गलत साबित करते हैं. कप्तान बनने के बाद, उन्होंने अपनी बल्लेबाजी की शैली में भी काफी बदलाव किया है.
आक्रामक भी, चालाक भी
मैदान पर कम बोलने वाले धोनी, अपनी नीतियों में बेहद आक्रामक रहते हैं. एक बार उन्होंने कहा था, 'मैं ऐसी टीम चाहता हूं जो ट्रक के सामने भी खड़ी हो सकी.' वह गेंदबाजों पर अपनी बात थोपते भी नहीं हैं. उन्होंने एक बार कहा था, 'गेंदबाजी में पहला बदलाव होने पर मैं इरफान या प्रवीण जो भी हो, उससे कहूंगा कि देखो अभी यह चल रहा है. बहुत मुश्किल है कि बॉल स्विंग होकर अंदर आए. तो तुम इस तरह की फील्ड के बारे में सोच सकते हो. अगर वह अपनी फील्डिंग के हिसाब से गेंद नहीं फेंक पा रहा, तो मैं कहता हूं, अब तुम्हें मेरी फील्डिंग के हिसाब से गेंद फेंकनी होगी, क्योंकि तुम्हारा प्लान काम नहीं कर रहा है.' धोनी कह चुके हैं कि उन्होंने क्रिकेट की किताबें ज्यादा नहीं पढ़ीं. जो सीखा है, मैदान पर सीखा है. वह कहते हैं कि अगर हमारे गेंदबाज पिट रहे हैं और गेंद लपकने के मौके नहीं मिल रहे तो मैं मिडविकेट पर फील्डर रखने के बजाए मैं स्लिप पर फील्डर रखूंगा. क्योंकि बल्लेबाज वैसे भी छक्के-चौके मारने की कोशिश कर रहे हैं. अगर मैं स्लिप हटा भी दूं तो भी बल्लेबाज छक्के ही मारने की कोशिश करेंगे.
-धोनी के पास कभी सिर्फ एक साइकिल हुआ करता थी. तब खड़गपुर में वह अपने रूममेट रॉबिन कुमार की बजाज पल्सर चलाया करते थे. आज उनके पास 14 बाइक हैं, जिनमें 28 लाख की एक्स-132 हेलकैट भी शामिल है.
-दूध उन्हें इतना प्रिय नहीं था, जितना कि लोग समझते हैं. उनके दोस्तों को लस्सी बहुत पसंद थी, पर धोनी लस्सी नहीं पीते थे. इसलिए दोस्तों का साथ देने के लिए वह दूध पीने लगे. हालांकि इसके बाद भी कोल्ड ड्रिंक से पीछा नहीं छुड़ा सके.
-खड़गपुर में उनके दोस्त पार्टी में शराब पी लिया करते थे, पर धोनी इस ओर कभी आकर्षित नहीं हुए. उन्हें चॉकलेट पसंद थी.
-गुरुवार रात श्रीलंका के खिलाफ आखिरी ओवर में उन्होंने जिस बल्ले का इस्तेमाल किया, वह दो किलो का था. जबकि सचिन तेंदुलकर जो भारी बल्ले से खेलने के लिए जाने जाते हैं, आम तौर पर डेढ़ किलो के बल्ले से खेलते हैं.
-छक्का मारकर मैच जिताने के मामले में वह सबसे आगे हैं. वह यह कारनामा आठ बार कर चुके हैं. वेस्टइंडीज के दिग्गज क्रिकेटर ब्रायन लारा दूसरे नंबर पर हैं. उन्होंने पांच बार ऐसा किया है.
-केवल नौ विकेटकीपर बल्लेबाजों ने दस या इससे ज्यादा टेस्ट मैचों में कप्तानी की है. धोनी इनमें सबसे ऊपर हैं.