25 मई को कोलकाता में था आईपीएल का फाइनल. उसके एक दिन पहले ही बीसीसीआई के तमाम आला अधिकारी यहां पहुंच चुके थे. अटकलें थीं कि बीसीसीआई के मुखिया एन श्रीनिवासन इस्तीफा दे देंगे. मगर उस शाम बंगाल क्रिकेट एसोसिएशन के चीफ और इस हांडी के सबसे पुराने चावल जगमोहन डालमिया के डिनर में कुछ ऐसा हुआ कि सारी चालें उलटी पड़ गईं.
जिन अरुण जेटली और राजीव शुक्ला को श्रीनिवासन को इस्तीफे देने के लिए राजी कराने की जिम्मेदारी दी गई थी. वही भंवर में फंस गए. श्रीनिवासन ने कहा कि अगर मेरी नैतिक जिम्मेदारी बनती है, तो आप दोनों की भी. इस्तीफा देंगे, तो सब देंगे.
इतना ही नहीं श्रीनिवासन ने तो नए सिरे से चुनाव कराने की बात भी कह दी. इसके बाद हवा का रुख उलट गया. इस बीच कुछ सदस्यों ने डालमिया से भी बगावत की सदारत करने को कहा. मगर उन्होंने हेल्थ खराब होने का हवाला देकर फिलहाल इस महाभारत में पर्दे के पीछे रहना ही तय किया है. इस मीटिंग के बाद ही नए सिरे से आश्वस्त श्रीनिवासन ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, कि मैं किसी को जबरन मेरा पद छीनने नहीं दूंगा.
क्या हुआ डालमिया के डिनर में
कोलकाता के एक पांच सितारा होटल में हुए इस डिनर में बोर्ड के आला अधिकारी और 27 मेंबर बुलाए गए थे. मगर बीजेपी के युवा मोर्चा अध्यक्ष अनुराग ठाकुर जैसे कई सक्रिय सदस्य इससे दूर रहे.
तब तक अगले प्रेसिडेंट के तौर पर बीजेपी नेता और बोर्ड में दिल्ली की नुमाइंदगी करने वाले अरुण जेटली का नाम भी चलने लगा था. कानून पर उनकी पकड़ और राज्यसक्षा में विपक्ष के नेता के तौर पर जुटाई प्रतिष्ठा की पूंजी के सहारे मुसीबत से पार लगने का प्लान बनने लगा था. मगर जेटली लीग से जुड़े लोगों पर लगे करप्शन के आरोपों और इस पर पार्टी के स्टैंड के चलते खुलकर सामने नहीं आ रहे थे.
बोर्ड के पिछले मुखिया शशांक मनोहर का नाम भी कुछ वक्त के लिए चला था. मगर तर्क आया कि पिछले दो साल से वह बोर्ड और क्रिकेट से दूर हैं. ऐसे में यह दूर की कौड़ी लगा.
बहरहाल, डिनर में कुल 17 स्टेट यूनिट के मेंबर पहुंचे. शुरुआती बातचीत में सबने साफ कर दिया कि न तो क्रिकेट और न ही संस्था के हित में हैं मौजूदा घटनाक्रम और उसके चलते लगे आरोप. संकेत सभी की तरफ से साफ थे कि श्रीनिवासन को नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दे देना चाहिए. मगर सवाल ये खड़ा हुआ कि बिलौटे के गले में घंटी कौन बांधे.
यहां पर विरोध के लिए नेतृत्व की तलाश शुरू हुई. ये पहुंची आईपीएल चेयरमैन, केंद्रीय मंत्री राजीव शुक्ला और बीजेपी नेता अरुण जेटली तक. जेटली आईपीएल की गवर्निंग काउंसिल के सदस्य हैं. दोनों ने बहस को परवान चढ़ाया और श्रीनिवासन को समझाया कि उनके इस्तीफा देने से चीजें दुरुस्त ही होंगी. खीजे श्रीनिवासन ने तब कहा, कि ठीक है, मैं पद छोड़ देता हूं. मगर नैतिक जिम्मेदारी तो आप दोनों की भी बनती है. तो आप दोनों को भी इस्तीफा देना होगा.
सूत्रों के मुताबिक आवेश में आए श्रीनिवासन यहां तक बोल गए कि अगर इतनी ही सफाई और साफ छवि की बात की जा रही है, तो क्यों न सामूहिक इस्तीफा हो और फिर नए सिरे से चुनाव. ये सुनते ही बोर्ड के ज्यादातर मेंबर्स सकते में आ गए.
नेता नहीं मिला, तो रुक गई बगावत
तमाम विरोध के बाद भी श्रीनिवासन फिलहाल बचे हुए हैं, तो इसकी वजह नेताओँ से भरे बोर्ड में बगावत के लिए नेतृत्व का अभाव भी है. अगर श्रीनिवासन इस्तीफा नहीं देते, तो बोर्ड के संविधान के मुताबिक एक और विकल्प था उन्हें हटाने का. इसके लिए 10 बोर्ड मेंबर्स को दस्तखत कर ये अर्जी देनी थी कि मौजूदा हालात के मद्देनजर बोर्ड की अरजेंट मीटिंग बुलाई जाए.
उसका एजेंडा भी साफ होना था कि इस मीटिंग का मकसद बोर्ड प्रेजिडेंट को हटाना है. मीटिंग में अगर दो तिहाई सदस्य इसे मंजूरी दे देते, तो श्रीनिवासन की रुखसती तय थी. मगर सवाल फिर वहीं अटका था. वे 10 वीर कौन होंगे. कोई बुरा नहीं बनना चाहता था. सबके अपने अपने रणनीतिक और आर्थिक गणित जो थे. जेटली और शुक्ला मान मनौवल तक तो आगे दिखे, मगर इस तरीके के अपनाने पर उनकी भी सहमति नहीं हुई. इस रणनीति में सबसे बड़ी खामी वैकल्पिक नेतृत्व का अभाव भी थी.
माना जा रहा था कि श्रीनिवासन के जाने के बाद पूर्व क्रिकेटर शिवलाल यादव कमान संभालेंगे. मगर मौजूदा हालत में उनकी ताजपोशी को सही दांव नहीं माना गया. इसके बाद ही तय हुआ कि फिलहाल इंतजार किया जाए और बोर्ड कम से कम बाहरी तौर पर एकजुट नजर आए.