वर्ष 2012 भारतीय खेलों (क्रिकेट के इतर) के लिहाज से काफी भावनात्मक रहा. यह साल ओलम्पिक खेलों में भारत की सफलता का गवाह रहा. भारत ने खेलों के इस महाकुंभ में अब तक की सबसे बड़ी कामयाबी हासिल करते हुए कुल छह पदक हासिल किए.
यह आंकड़ा बीजिंग ओलम्पिक (2008) से बेहतर रहा. यह आंकड़ा इस बात की ओर भी इशारा करता है कि 2016 के रियो ओलम्पिक में भारत इससे भी बेहतर प्रदर्शन कर सकता है क्योंकि अब भारतीय खिलाड़ियों के अंदर वह आत्मविश्वास आ चुका है, जिसके जरिए ओलम्पिक में सफलता हासिल की जा सकती है.
इस आत्मविश्वास का संचार बीजिंग के बाद ही से ही हो गया था और यही कारण है कि सुशील कुमार ने बीजिंग की सफलता को दोहराते हुए पदक जीता. सुशील न सिर्फ दो ओलम्पिक खेलों में पदक जीतने वाले पहले भारतीय बने, बल्कि उन्होंने बीजिंग में जीते गए कांस्य पदक का रंग बदलते हुए रजत पदक अपने नाम किया.
हर साल नई उम्मीदें लेकर आता है और खुद को खेलों की दुनिया में अजर-अमर बनाने का मौका अगर चार साल में एक बार आता तो हर साल के साथ तैयारियां बलवती होती जाती हैं. इसी उम्मीद के साथ भारतीय खिलाड़ी रियो में और अधिक पदक जीतने के लिए 2013 में अपनी तैयारियों को अमली जामा पहनाएंगे.
कुश्ती में सुशील कुमार और लंदन में कांस्य पदक जीतने वाले योगेश्वर दत्त को एक बार फिर पदक की उम्मीद होगी वहीं मुक्केबाजी, बैडमिंटन और निशानेबाजी में भारतीय खिलाड़ियों को सफलता की आस है.
भारत ने लंदन में दो रजत और चार कांस्य पदक जीते. बैडमिंटन में सायना नेहवाल ने कांस्य जीता जबकि मुक्केबाजी में एमसी मैरीकाम ने कांस्य पाया. इन दो खेलों में भारत के लिए महिलाओं ने पहली बार कोई पदक जीता.
बीजिंग में अभिनव बिंद्रा ने निशानेबाजी में स्वर्ण जीता था लेकिन लंदन में वह चूक गए. विजय कुमार ने हालांकि अभिनव की नाकामी को कम नहीं होने दिया और रजत जीतकर देशवासियों को खुशी दी. इसके अलावा गगन नारंग ने कांस्य पदक जीता.
कृष्णा पूनिया ने महिला चक्का फेंक और विकास गौड़ा ने पुरुष चक्का फेंक के फाइनल में जगह बनाकर एक उम्मीद जगाई. जाहिर है, ये खिलाड़ी रियो को ध्यान में रखकर एक बार फिर तैयारियों में जुट गए होंगे और 2016 को खास बनाने के लिए 2013 में कुछ नए प्रण लेंगे.
लंदन ओलम्पिक से कई युवा और नए खिलाड़ियों को जीवन र्पयत काम आने वाला अनुभव मिला होगा और ये खिलाड़ी रियो के लिए क्वालीफाई करने के लिए उन अनुभवों का लाभ उठाना चाहेंगे. जाहिर है कि रियो तक के सफर में 2013 एक पड़ाव के रूप में देखा जाएगा लेकिन इस साल की महत्ता कम नहीं होगी क्योंकि हर बीतता लम्हा खिलाड़ियों को कुछ खास करने की सीख दे रहा होगा.
लंदन ओलम्पिक में जिनसे उम्मीद थी और दो उम्मीदों पर खरे नहीं उतर सके, उनके लिए नया साल एक ऐसे पड़ाव की तरह होगा, जिसमें वे अपनी कमियों और मजबूतियों पर बखूबी विचार कर सकते हैं क्योंकि इसके बगैर सफलता को छू पाना मुश्किल होगा.
महिला तीरंदाज दीपिका कुमारी, निशानेबाज जयदीप करमाकर, बैडमिंटन स्टार पारुपल्ली कश्यप, बीजिंग में कांस्य जीतने वाले मुक्केबाज विजेंद्र सिंह, डबल ट्रैप निशानेबाज रोंजन सोढ़ी और हॉकी टीम के पास इस बात का मंथन करने का मौका होगा कि गलती कहां हुई.
इसके अलावा मुक्केबाज शिव थापा, विकास कृष्ण, सुमित सांगवान, महिला पहलवान गीता फोगाट, युवा पहलवान अमित कुमार के पास पहले मौके को नहीं भुना पाने के अफसोस को मन से निकालकर नई शुरुआत करने का समय होगा.
कुल मिलाकर नया साल अनुभवी और नए खिलाड़ियों को कुछ पल रुककर सांस लेने की फुर्सत देगा क्योंकि नया साल बीतने के साथ ही रियो की रेस शुरू हो जाएगी और इस रेस में वही जीतेगा, जो बेहतर आत्ममंथन के साथ सबसे अच्छी तैयारी करेगा.