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आई-लीग के आठ साल, वजूद की लड़ाई लड़ती भारत की राष्ट्रीय फुटबॉल लीग

भारत में क्रिकेट की लोकप्रियता से टक्कर ले पाना संभव नहीं दिखता लेकिन अगर हम साउथ इंडिया, नॉर्थ-ईस्ट, गोवा और कोलकाता की बात करें तो फुटबॉल के आगे क्रिकेट कहीं नहीं टिकता. इंडिया की नेशनल फुटबॉल लीग, आई-लीग को आठ साल पूरे हो गए हैं इस मौके पर हमने सोचा कि क्यों ना आपको इंडिया की नेशनल फुटबॉल लीग के बारे में थोड़ी जानकारी दी जाए.

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आई-लीग के आठ साल
आई-लीग के आठ साल

भारत में क्रिकेट की लोकप्रियता से टक्कर ले पाना संभव नहीं दिखता लेकिन अगर हम साउथ इंडिया, नॉर्थ-ईस्ट, गोवा और कोलकाता की बात करें तो फुटबॉल के आगे क्रिकेट कहीं नहीं टिकता. इंडिया की नेशनल फुटबॉल लीग, आई-लीग को आठ साल पूरे हो गए हैं इस मौके पर हमने सोचा कि क्यों ना आपको इंडिया की नेशनल फुटबॉल लीग के बारे में थोड़ी जानकारी दी जाए. आई-लीग को साउथ, नॉर्थ-ईस्ट, गोवा और कोलकाता से निकालकर पूरे भारत तक पहुंचाया जाए. तो पढ़िए आई-लीग के छोटे से परिचय के साथ ही उसके वजूद की लड़ाई के बारे में भी

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जब भारतीय फुटबॉल में आया बड़ा मोड़
सालों से इंटरनेशनल लेवल पर पहचान के संकट से जूझ रही भारतीय फुटबॉल में बड़ा मोड़ उस वक्त आया जब 1996 में ऑल इंडिया फुटबॉल फेडरेशन (AIFF) ने नेशनल फुटबॉल लीग की स्थापना की. भारत की इस पहली नेशनल डोमेस्टिक लीग का पहला खिताब जेसीटी क्लब ने जीता. हालांकि इस लीग को बहुत ज्यादा सफलता नहीं मिली और महज 10 सालों बाद ही 2006-07 में ही इसके आई-लीग के नाम से पुनर्गठन की घोषणा करते हुए 2007-08 के सीजन से इसे दो डिवीजनों (आई-लीग, आई-लीग-2) में बांट दिया गया.

डेम्पो बने था पहला विनर
इस लीग के नियमों के मुताबिक आई-लीग के हर सीजन की समाप्ति पर अंकों के आधार पर सबसे नीचे रहने वाली दो टीमें रेलीगेट होकर आई-लीग-2 में चली जाती हैं. जहां आई-लीग में खराब प्रदर्शन करने वाली दो टीमें हर साल रेलीगेट होती हैं वहीं आई-लीग-2 में अच्छा प्रदर्शन करने वाली दो टीमें प्रमोट होकर आई-लीग में आ जाती हैं. 24 सितंबर 2008 को आई-लीग का पहला मैच गोवा के दो क्लबों, डेम्पो स्पोर्टिंग क्लब और सालगांवकर एफसी के बीच खेला गया. पहली आई-लीग जीतने वाले गोवा के डेम्पो स्पोर्टिंग क्लब ने ही सबसे ज्यादा बार आई-लीग का खिताब अपने नाम किया है.

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दुनिया के सबसे पुराने क्लबों में शामिल हैं मोहन बागान और ईस्ट बंगाल
दिग्गज टीम ईस्ट बंगाल के नाम इस लीग में सबसे ज्यादा 194 मैचों में जीत के साथ ही लगातार 22 मैचों तक अजेय रहने का भी रिकॉर्ड है. ईस्ट बंगाल और मोहन बागान जैसी दुनिया की कुछ सबसे पुरानी टीमों वाली आई-लीग अपनी शुरुआत से ही बहुत ज्यादा पॉपुलर नहीं हो पाई. दरअसल भारत में फुटबॉल के कामयाब ना होने के पीछे इसका एक विशेष क्षेत्र तक सीमित हो जाना जिम्मेदार है. अगर हम भारत में फुटबॉल की बात करें तो वो नॉर्थ-ईस्ट, कोलकाता, गोवा और अब महाराष्ट्र तथा बंगलुरु तक ही सीमित है. कोई भी खेल अगर किसी एरिया विशेष में सीमित हो जाता है तो फिर उसके लिए नेशनल लेवल पर इम्पैक्ट बना पाना लगभग असंभव हो जाता है. हमारे यहां की फुटबॉल गवर्निंग बॉडी ऑल इंडिया फुटबॉल फेडरेशन इसी मामले में मात खा जाती है.

नहीं मिल पा रही अपेक्षित लोकप्रियता
हालांकि AIFF ने फुटबॉल की लोकप्रियता बढ़ाने के लिए अपने स्तर पर कोई कमी नहीं छोड़ रखी लेकिन उसकी कोशिशों का कोई खास फायदा होता नहीं दिख रहा है. आई-लीग में कोई भी सीजन ऐसा नहीं रहा जब कि टीमों में उतार-चढ़ाव ना आया हो. गौरतलब है कि आई-लीग की स्थापना से अब तक के आठ सालों में बहुत सी टीमों ने विभिन्न कारणों से आई-लीग में खेलने से मना कर दिया है. ज्यादातर टीमें तो आर्थिक कारणों के चलते बंद हुई हैं. हालांकि आर्थिक हालातों में तो उतार-चढ़ाव आता ही रहता है लेकिन इसके चलते लगातार क्लबों का बंद होना जरूर चिंताजनक हैं.

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चल रही है ISL और I-लीग के विलय की बात
आपको बता दें कि तीन टीमों ने तो इसी साल आई-लीग में भाग लेने से मना करते हुए अपनी टीमों को बंद करने का फैसला किया है. टीमों की परेशानियों को देखते हुए AIFF ने आगामी कुछ सालों में आई-लीग और आईएसएल के विलय का मन बनाया है लेकिन देखने वाली बात यह होगी कि ये कब तक हो पाता है. इसके साथ ही देखने वाली बात यह भी होगी कि इस कदम से भारतीय फुटबॉल को कितना लाभ पहुंचता है.

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