चंडीगढ के रहने वाले फुटबॉलर गुरप्रीत सिंह संधू ने कम उम्र में ही बड़ा नाम कमा लिया है. संधू मौजूदा समय में नॉर्वे के स्टबेक फुटबॉल क्लब के लिए खेलते हैं. स्टबेक के लिए इस साल यूरोपा कप क्वालीफायर्स के पहले राउंड में मैदान पर उतरते ही गुरप्रीत ऐसा करने वाले पहले भारतीय बन जाएंगे.
'आजादी' के दिन आई थी खुशखबरी
इससे पहले, 15 अगस्त 2014 को संधू ने नॉर्वेनियन क्लब स्टबेक के साथ तीन साल का करार किया था.
6 फुट पांच इंच से भी ज्यादा लंबे इस गोलकीपर ने अपने जबरदस्त प्रदर्शन के जरिए अपने प्रशंसकों की गिनती में काफी तेजी से बढ़ोतरी की है. भारतीय फुटबॉल प्रेमियों द्वारा GPS कहकर बुलाए जाने वाले टीम इंडिया के इस नए सूरमा से बात की सूरज पांडेय ने.A proud day for my country and for me as I am pleased to announce I have signed for @stabaekfc #HappyIndependenceDay pic.twitter.com/5NubO35ZmN
— Gurpreet Singh (@GurpreetGK) August 15, 2014
गुरप्रीत सबसे पहले तो आपको यूरोपा लीग तक पहुंचने के लिए ढेरों बधाइयां. आप हमें बताएं कि आपको सबसे पहले कब लगा कि आपको एक फुटबॉलर ही बनना है और आप किससे प्रेरित हुए?
मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं फुटबॉलर बनूंगा यह महज एक संयोग है. मैंने स्कूल में खेलना शुरू किया था जिसके बाद मुझे मजा आने लगा और फिर मैं बस खेलता गया.
यूरोपा लीग में खेलने वाले पहले भारतीय बनने वाले हैं आप, सब जानते हैं कि ये बहुत बड़ी उपलब्धि है. आपने कभी सोचा था इतना आगे जाने के बारे में?
मुझे कभी नहीं लगा था कि मैं इसका (यूरोपा लीग) का हिस्सा बन पाउंगा. मैं तो बस यूरोप में खेलने का सपना देखता था.
इतने बड़े देश से होने के बाद भी यहां तक पहुंचने वाले आप पहले खिलाड़ी हैं. कैसा लग रहा है आपको ?
'सबसे पहला होना' इस बात पर मुझे गर्व तो होता ही है लेकिन इसके साथ ही मुझे लगता है कि मुझ पर बड़ी जिम्मेदारी भी है. गर्व के साथ ही इससे पता चलता है कि एक देश के तौर पर हमें अपने खिलाड़ियों के विकास के लिए कितना काम करना है. जिससे उनके स्तर में सुधार हो और वो बड़ी लीग्स में खेल पाएं.
आपने फुटबॉल को ही क्यों चुना ? कोई और खेल क्यों नहीं?
मैंने फुटबॉल को नहीं चुना, फुटबॉल ने मुझे चुना.
भारतीय फुटबॉल की मौजूदा स्थिति से आपको क्या लगता है? किस दिशा में जा रही है इंडियन फुटबॉल?
मेरे हिसाब से यह सही स्थिति नहीं है. हम कहीं से भी एक एक फुटबॉल पॉवर हाउस देश की तरह नहीं लगते. हमारे यहां दो लीग्स (आईएसएल और आई लीग) होती हैं लेकिन फिर भी बहुत सारे प्लेयर्स के पास कोई कॉन्ट्रैक्ट नहीं है. मुझे उम्मीद है कि एक दिन ये स्थिति सुधरेगी.
जैसा कि हम सब जानते हैं, भारत में टैलेंट की कमी नहीं है फिर भी हम फुटबॉल में इतना पीछे क्यों हैं? क्या लगता है इसके पीछे कौन जिम्मेदार हैं?
बहुत से कारण हैं. जैसे, फुटबॉल एजुकेशन का अभाव, बेसिक सुविधाओं का ना होना. इसके साथ ही अच्छे स्काउटिंग सिस्टम का ना होना हमें सबसे खराब लगता है. हालांकि इसे किसी एक व्यक्ति की खामी बताकर उस पर उंगली नहीं उठाई जा सकती. इसके पीछे कहीं ना कहीं हम सब जिम्मेदार हैं.
वेल्स की टीम पिछले साल की फीफा रैंकिंग में टॉप 100 से भी बाहर थी, इस साल वो टॉप टेन में हैं जबकि स्टार खिलाड़ियों के नाम पर उनके पास सिर्फ गैरेथ बेल और आरोन रामसे हैं. क्या आपको लगता है कि हम कभी निकट भविष्य में ऐसा करिश्मा कर पाएंगे.
रातों-रात कुछ नहीं होता शायद हमने ध्यान नहीं दिया लेकिन वेल्स पिछले 10-15 सालों से फुटबॉल के विकास में लगा था. मूलभूत ढांचे के साथ ही सुविधाएं और खिलाड़ियों को मिलने वाला प्रशिक्षण, तमाम चीजों में वेल्स ने काफी सुधार किया है. उन्होंने अपने प्लेयर्स के विकास के लिए उन्हें हर वो चीज उपलब्ध कराई जिसकी उन्हें जरूरत थी. ये किसी जादू की तरह नहीं हुआ बल्कि ये तो होना ही था क्योंकि उन्होंने पहले दिन से सही दिशा में काम किया था.
आपको क्या लगता है आखिर कमी कहां है? संसाधनों में, प्रशासनिक स्तर पर, माहौल में या फिर हमारे पास उस स्तर के खिलाड़ी ही नहीं हैं?
खिलाड़ियों का लेवल सुधारने के लिए उन्हें अच्छी सुविधाएं, कोचिंग इत्यादि मिलनी चाहिए. कम से कम एक बेसिक फाउंडेशन होना चाहिए तब कहीं जाकर उनका स्तर सुधरता है. हमारे पास काफी टैलेंटेड प्लेयर्स हैं लेकिन उनके विकास के लिए हमारे पास सही साधन नहीं है. इसके पीछे भारत की बड़ी आबादी भी एक फैक्टर हो सकता है. क्योंकि बड़ी आबादी के लिए बड़े स्तर पर काम करना पड़ता है. हर गांव, कस्बे, शहर में फुटबॉल के विकास के लिए काम करना होगा तभी भारत में इसका विकास हो पाएगा. मूलभूत जरूरतों के नाम पर हम किसी भी कीमत पर समझौता नहीं कर सकते.
नॉर्वे में खेलने का कैसा अनुभव रहा है आपका?
मजेदार, यहां मैंने काफी कुछ सीखा है. यहां आकर मैंने महसूस किया कि टैलेंट डेवलपमेंट के लिए कैसे काम किया जाता है. यहां क्लब खिलाड़ियों की लंबे समय तक की उपयोगिता को ध्यान में रखकर उनमें इन्वेस्ट करते हैं. इसका फायदा क्लब के साथ ही प्लेयर्स को भी होता है.
फेवरेट क्रिकेट प्लेयर, फुटबॉलर, अन्य खेलों के कोई हीरो और क्यों?
क्रिकेट से मुझे युवराज सिंह, धोनी, विराट कोहली पसंद हैं. जबकि फुटबॉल से मेसी और टेनिस से फेडरर मेरे पसंदीदा खिलाड़ी हैं. ये मुझे इसलिए पसंद हैं क्योंकि ये औरों से हटकर हैं.
इंडियन ड्रेसिंग रूम का कोई स्पेशल मोमेंट, किस्सा जो आप हमसे शेयर करना चाहें...
SAFF कप का फाइनल जीतने के बाद इंडियन टीम के ड्रेसिंग रूम में जो सेलीब्रेशन हुआ था, वो हमेशा के लिए यादगार है.
आइडल किसे मानते हैं?
वान डेर सार (नीदरलैंड नेशनल टीम के साथ ही ये युवेंट्स और मैनचेस्टर यूनाइटेड के भी गोलकीपर रह चुके हैं.)
पढ़ाई कहां तक की है? स्कूल का नाम, कॉलेज का नाम, फेवरेट सब्जेक्ट...
मेरी स्कूलिंग सेंट स्टीफेंस चंडीगढ़ से हुई जबकि हाईस्कूल और 12th की पढ़ाई मैंने एसडी पब्लिक स्कूल चंडीगढ़ से की. इसके बाद मैंने डीएवी कॉलेज चंडीगढ़ से बीए किया है.
आपके हिसाब से आईएसएल से भारतीय फुटबॉल में क्या बदलाव आए हैं?
आईएसएल ने भारत में भारतीय फुटबॉल को पहले से ज्यादा लोकप्रिय कर दिया.
आगे का प्लान क्या है?
आगे का प्लान यही है कि मैं जब भी फील्ड में उतरुं तो अपना बेस्ट दूं और स्टबेक फर्स्ट टीम के साथ ही टीम इंडिया के लिए भी ज्यादा से ज्यादा मैच खेलूं.
अपने प्रशंसकों के लिए कोई संदेश?
दोस्तों, आपके सपोर्ट के बिना हम कुछ नहीं हैं. उम्मीद है कि आप हमें हमेशा ऐसे ही सपोर्ट करते रहेंगे ताकि हम और आप मिलकर अपने तिरंगे को ऊंचा, और ऊंचा कर पाएं. जय हिंद
देखें गुरप्रीत की गोलकीपिंग का वीडियो
DARE TO DREAM!Some Highlights from the pre season Trip
Posted by Gurpreet Singh Sandhu on Tuesday, February 16, 2016