भारत में फुटबॉल की शुरुआत 18वीं शताब्दी के आखिर के सालों से मानी जा सकती है. इस दौर में बहुत से नए क्लबों और टूर्नामेंटों की शुरुआत हुई. लेकिन भारतीय फुटबॉल में असली उछाल उस वक्त आया जब सन् 1911 में मोहन बागान ने ईस्ट यॉर्कशायर रेजीमेंट को 2-1 से हराकर आईएफए शील्ड का खिताब अपने नाम किया. यह पहली बार था जब किसी भारतीय टीम ने कोई बड़ा राष्ट्रीय कप जीता था.
1888 में शुरू हुआ था डूरंड कप
सन् 1888 में शिमला में भारत के तात्कालीन विदेश सचिव मॉर्टिमर डूरंड द्वारा डूरंड कप की शुरूआत की गई, यह ब्रिटेन के एफए कप और स्कॉटलैंड के स्कॉटिश कप के बाद दुनिया की तीसरी सबसे पुरानी फुटबॉल प्रतियोगिता है. भारत में रह रहे अंग्रेज सैनिकों के लिए शुरू की गई इस प्रतियोगिता का पहला खिताब रॉयल स्काउट फ्यूसिलर्स ने हाइलैंड लाइट इंफैन्ट्री को हराकर जीता था. 1893 में तत्कालीन भारत की राजधानी कलकत्ता में आईएफए शील्ड शुरू की गई जो कि विश्व की चौथी सबसे पुरानी फुटबॉल प्रतियोगिता है. बाद में कलकत्ता भारत में फुटबॉल के सबसे बड़े केंद्र के रूप में विकसित हुआ.
विश्व के सबसे पुराने क्लबों में से एक है मोहन बागान
1889 में स्थापित मोहन बागान भारत का सबसे पुराना फुटबॉल क्लब है. हालांकि मोहन बागान एफसी की स्थापना मोहन बागान स्पोर्टिंग क्लब के नाम से हुई थी. 1893 में पहली भारतीय फेडरेशन, इंडियन फुटबॉल एसोसिएशन की स्थापना हुई हालांकि इसमें एक भी भारतीय नहीं था. सन् 1930 से भारतीय टीम ने ऑस्ट्रेलिया, जापान, मलेशिया,इंडोनेशिया और थाईलैंड का दौरा करना शुरू कर दिया. 1937 में ऑल इंडिया फुटबॉल फेडरेशन की स्थापना हुई.
बड़े मंच पर मिली निराशा
आजादी के बाद भारत का पहला बड़ा अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट 1948 का लंदन ओलंम्पिक था जिसमें नंगे पैर खेलने वाली भारतीय टीम को कड़े संघर्ष के बाद अपने पहले मैच में फ्रांस से 2-1 से हार का सामना करना पड़ा था. भारत के लिए मैच का इकलौता गोल सरंगपनी रमन ने किया था, जो कि ओलंपिक में भारत का पहला अंतरराष्ट्रीय गोल भी है. उस मैच में भारत की हार के पीछे मुख्य कारण उसका दो पेनाल्टी किक मिस करना था. इसके बाद टीम इंडिया ने 1952, 1956, 1960 में भी ओलंपिक में भाग लिया लेकिन इस दौरान टीम सिर्फ एक मैच ही जीत पाई. और 1960 के बाद तो हम कभी भी ओलंपिक के लिए क्वालीफाई ही नहीं कर पाए हैं.
AIFF ने मिला मौका गंवाया
टीम इंडिया के पास विश्व पटल पर अपनी छाप छोड़ने का सबसे बड़ा मौका उस वक्त आया जब सन् 1950 में ब्राजील में हो रहे फीफा वर्ल्ड कप में खेलने वाले ज्यादातर देशों द्वारा नाम वापस लेने के कारण भारतीय फुटबॉल टीम को वर्ल्ड कप में खेलने के लिए न्यौता मिला. लेकिन उस वक्त की AIFF की गवर्निंग बॉडी उस मौके की महत्ता नहीं समझ पाई. AIFF द्वारा आने जाने का पैसा नहीं होने की बात कहे जाने पर फीफा यात्रा का अधिकतर खर्च वहन करने के लिये तैयार हो गई थी लेकिन फिर AIFF द्वारा अलग-अलग बहाने और फीफा विश्व कप से ज्यादा तरजीह ओलम्पिक को दिये जाने के कारण भारतीय टीम इतिहास में नाम दर्ज कराने से चूक गई.
बहानों से स्थिति नहीं सुधरती
लोगों का यह भी कहना है कि 1948 के ओलम्पिक में भारतीय टीम द्वारा नंगे पैर भाग लेने के बाद से फीफा ने नंगे पैर फुटबॉल खेलने पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया था, जिसके कारण भारतीय टीम ने विश्व कप में खेलने से मना कर दिया था. हालांकि तत्कालीन भारतीय फुटबॉल टीम के कप्तान शैलेन मन्ना के मुताबिक इन खबरों में कोई सच्चाई नहीं थी बल्कि यह अफवाहें AIFF की गलती को छुपाने के लिये उड़ाई गई थीं.
विश्व कप खेलना है सपना
खैर बात कुछ भी रही हो लेकिन सच्चाई ये है कि इस मौके को गंवाने के बाद भारत 1985 से लगातार क्वालीफायर्स खेल रहा है लेकिन 2014 फीफा वर्ल्डकप तक कभी भी फीफा विश्व कप के क्वालीफायर राउंड के पहले चरण को भी पार नहीं कर पाया है. हालांकि फीफा विश्वकप 2018 के क्वालीफायर में हमने पहले राउंड में नेपाल को हराते हुये दूसरे चरण के लिये क्वालीफाई जरूर कर लिया है लेकिन वहां भी हम लगातार दो मैच हार चुके हैं. 1970,80 और 90 के दशक में भारतीय फुटबॉल की हालत बहुत खराब रही हालांकि उसने 1984 के एशियन कप के लिये क्वालीफाई किया जहां उसे ग्रुप बी में रखा गया था.
अक्सर विवादित रहा है टीम चयन
इस प्रतियोगिता में भारत एक भी मैच नहीं जीत सका हालांकि उसने एक मैच ड्रॉ जरूर कराया था लेकिन शर्मनाक बात तो यह रही कि इस पूरी प्रतियोगिता में भारत एक भी गोल नहीं कर पाया. भारत के इस प्रदर्शन के बाद से टीम चयन पर बहुत से सवाल उठे थे. 80 के दशक में भारतीय टीम ने कुछ अच्छा प्रदर्शन करते हुये 1984 में ढाका और 1987 में कलकत्ता में हुये सैफ खेलों में स्वर्ण पदक जीता.
दक्षिण एशिया में रहा है दबदबा
इसके बाद भारतीय टीम को बड़ी सफलता मिली 6 सालों बाद, जब हमने 1993 में लाहौर में आयोजित पहला सार्क कप जीता. दो साल बाद कोलंबो में हुये सार्क खेलों में भारत ने दूसरा स्थान प्राप्त किया. 1997 में सार्क कप का नाम बदलकर सैफ कप होने के बाद भारत ने इसे लगातार दो बार सन् 1997 और 1999 में जीता. इसके अलावा 2005,09,2011 में भी भारतीय टीम ने सैफ कप जीता. लेकिन बड़े टूर्नामेंटों में हम हमेशा फिसड्डी रहते हैं फिर चाहे वो एशिया कप हो, ओलंपिक हो और वर्ल्ड कप में तो हम कभी पहुंच ही नहीं पाए.