दर्द...दुख...मायूसी...बेबसी. दिल को तोड़ने और दिमाग को सन्न कर देने वाले इन सारे शब्दों को फिल ह्यूज मातम की माला में ऐसे पिरो जाएंगे, किसी को नहीं पता था. मुंबई से लेकर मेलबर्न तक और दिल्ली से लेकर एडिलेड तक हर कोई दुखी है. हर कोई रो रहा है. सच तो यह है कि इस एक हादसे ने ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों की पहचान ही बदल कर रख दी है. क्या रिकी पॉन्टिंग तो क्या माइकल क्लार्क. जो जो क्रिकेटर मैदान में चिल्लाने के लिए बदनाम थे, बेईमानी के लिए बदनाम थे, जिनके लिए कई बार मैदान के कायदे कानून और संवेदनाओं के कोई मायने ही नहीं थे, वो अंदर तक हिल गए हैं. हमेशा दिमाग से काम लेने वाले ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेटर अब दिल की गहराइयों तक उतरते दिख रहे हैं. सच में इस एक हादसे ने ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट की तस्वीर को ही बदल कर रख दिया है. क्रिकेट की दुनिया एक आक्रामक ऑस्ट्रेलिया की जगह टूटता, बेबस और संवेदनशील ऑस्ट्रेलिया देख रही है.
25 नवंबर को सिडनी क्रिकेट ग्राउंड में क्रिकेट पर फिल ह्यूज के खून के तौर पर जो लाल दाग लगा, वो तो कभी नहीं मिटेगा लेकिन इस हादसे ने ट्विटर से लेकर फेसबुक तक और मंच से लेकर मैदान तक पूरी क्रिकेट बिरादरी को एक साथ लाकर खड़ा कर दिया. फिर वो चाहे फैंस हों या फिर मौजूदा क्रिकेटर या फिर कोई दिग्गज. मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर ने हयूज को श्रद्धांजलि देने के लिए अपना 15 साल पुराना बल्ला तक निकाल लिया तो टीम इंडिया के कप्तान विराट कोहली ने एडिलेड में फिल ह्यूज को याद किया और अपने बल्ले पर कैप रख कर ह्यूज को सलामी दी.
कहते हैं वक्त हर जख्म भर देता है मगर इस जख्म को भरने में कितना वक्त लगेगा कोई नहीं जानता. हालांकि क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया ने खिलाड़िओं की मनोदशा को देखते हुए दूसरे प्रैक्टिस मैच को रद्द कर दिया और फिर पहला टेस्ट भी स्थगित कर दिया गया. बहस हुई, तर्क दिए गए. किसी ने कहा कि टेस्ट को रद्द ही कर दो तो किसी ने कहा कि ह्यूज की मौत से हम दुखी तो हैं लेकिन इसमें फैंस का क्या कसूर.
माना कि क्रिकेट की दुनिया रो रही है. माना कि ऑस्ट्रेलिया ने 25 साल का होनहार क्रिकेटर खो दिया है. माना कि ऑस्ट्रेलिया के खिलाड़ियों की मनोदशा मैदान पर उतरने की नहीं है लेकिन, इस दर्द, इस दुख और इस मातम को पीछे छोड़ने का बस एक ही जरिया है और वो है क्रिकेट. क्योंकि क्रिकेट ही ताकत देगा. क्रिकेट ही फिर खड़े होने का साहस देगा. जिसने छीना है, अब वही उससे उबरने की शक्ति देगा. वही क्रिकेट जिसने सचिन तेंदुलकर को ताकत दी थी कि वो पिता की मौत से उबरकर अगले ही दिन वर्ल्ड कप के लिए रवाना हो जाएं. वही क्रिकेट जिसने विराट कोहली को ताकत दी थी कि पिता की मौत से उबरकर अगले दिन वो मैदान पर उतरे और अपनी टीम दिल्ली के लिए बड़ी पारी खेलें.
यह सच है कि जिंदगी किसी के रोके नहीं रुकती. इसीलिए क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया ने टेस्ट सीरीज के शेड्यूल को बदल दिया ताकि खिलाड़ी मैदान पर उतरने की हिम्मत जुटा पाएं. ब्रिस्बेन की जगह अब एडिलेड में पहला टेस्ट होगा जो 9 दिसंबर से शुरू होगा. गावस्कर बॉर्डर ट्रॉफी के लिए खेली जाने वाली सीरीज में एक्शन के दिन आने वाले हैं लेकिन क्रिकेट के मैदान पर अब ह्यूज के लिए कभी एक्शन नहीं होगा.