साल 2002, एंटिगा टेस्ट. वेस्टइंडीज बनाम भारत. पवेलियन से बाहर एक शख्स निकलता है, टूटा हुआ जबड़ा. चेहरे पर पट्टी लगी हुई. फिर भी वह लगातार 14 ओवर फेंकता है, और झटक लेता है ब्रायन लारा का विकेट. जी हां, आपने सही पहचाना. हम बात कर रहे हैं टीम इंडिया के लड़ाके क्रिकेटर अनिल कुंबले की. यह वाकया क्रिकेट दुनिया के सबसे प्रेरणादायक लम्हों में से एक है. आज अनिल कुंबले की जन्मदिन है. उन्हें जन्मदिन मुबारक! ‘मंकीगेट’ पर मेरी बुक का इंतजार करें: कुंबले
17 अक्टूबर 1970 को जन्मे इस लेग स्पिनर की गेंदों में शेन वार्न जैसी टर्न तो नहीं थी, पर बल्लेबाजों को चकमा देने की कला में इसका कोई सानी नहीं था. चाहे मैच की स्थिति कुछ भी हो कुंबले हर पल टीम के लिए 100 फीसदी से ज्यादा देते. उनकी इस कर्मठता का नतीजा है कि उन्होंने 132 टेस्ट मैचों में 619 विकेट झटके. टेस्ट क्रिकेट में सबसे ज्यादा विकेट लेने वाले गेंदबाजों की सूची में वह तीसरे पायदान पर हैं.
इस लेग स्पिनर ने टेस्ट मैच की एक पारी में 10 विकेट लेने का कारनामा भी किया था. यह रिकॉर्ड उन्होंने 1999 में दिल्ली के फिरोजशाह कोटला मैदान में बनाया. पूरी पाकिस्तानी टीम को मात्र 74 रन खर्चकर अपना शिकार बना लिया. संयोग देखिए कि कुंबले ने 2008 में अपने टेस्ट करियर का आखिरी मैच भी इसी मैदान पर खेला.
कुंबले के जुझारूपन का अंदाज इस बात से भी लगाया जा सकता है कि सातवें या आठवें नंबर पर बल्लेबाजी करते हुए वह बल्ले से भी अहम योगदान देते. टेस्ट में 1 शतक के साथ 5 अर्धशतक इसके सबूत हैं. उन्होंने टेस्ट मैचों में 35 से ज्यादा मौके पर एक ही पारी में 5 या उससे ज्यादा विकेट झटके. और एक मैच में 10 से ज्यादा विकेट लेने का कारनामा 8 बार किया.
वनडे में कुंबले की कंजूसी अद्भुत
वनडे की बात करें तो कुंबले ने 271 मैचों में 30.89 की औसत से 337 विकेट झटके. सिर्फ 12 रन खर्चकर 6 विकेट, उनका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन रहा. रन खर्चने के मामले में कुंबले की कंजूसी का अनुमान इस आंकड़े से लगाइए, वनडे में उनका इकॉनिमी रेट 4.30 रहा.
2008 में भारत-ऑस्ट्रेलिया टेस्ट सीरीज में अंपायरिंग विवाद के बीच कुंबले की नेतृत्व क्षमता का एक अनोखा पहलू सामने आया. विवादित सिडनी टेस्ट मैच के बाद में उन्होंने ऑस्ट्रेलियाई टीम पर सवाल उठाते हुए सार्वजनिक तौर पर यह कह दिया था कि मैदान पर सिर्फ 11 लोग खेल भावना से खेले. बाकी 13 किसी और खेल पर ध्यान लगा रहे थे. वह हर वक्त अपनी टीम के लिए लड़ते, यही उदाहरण पेश करते कि सफलता तो उन्हें ही मिलती है जो मैदान पर जी जान से खेलते हैं.