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न्यूजीलैंड से टेस्ट सीरीज भी हारा भारत, धोनी के धुरंधर हैं या बेशर्मों की बारात!

भारतीय क्रिकेट टीम का विदेशी दौरे पर खराब रिकॉर्ड बरकरार है.  वेलिंग्टन टेस्ट ड्रा हो गया. इसके साथ धोनी के धुरंधरों को एक और टेस्ट सीरीज में मुंह की खानी पड़ी है. आज हर क्रिकेट प्रेमी अपनी टीम पर सवाल उठा रहा है. आखिरकार हम कब तक विदेशी दौरे पर यूं ही हारते रहेंगे?

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न्यूजीलैंड से टेस्ट सीरीज भी हारी टीम इंडिया
न्यूजीलैंड से टेस्ट सीरीज भी हारी टीम इंडिया

भारतीय क्रिकेट टीम का विदेशी दौरे पर खराब रिकॉर्ड बरकरार है. वेलिंगटन टेस्ट ड्रॉ हो गया है. लेकिन न्यूजीलैंड ने भारत को सीरीज में 1-0 से हरा दिया है. इसके साथ ही धोनी के धुरंधरों को एक और टेस्ट सीरीज में मुंहकी खानी पड़ी है. ऑकलैंड से वेलिंगटन आ गए पर टीम के प्रदर्शन में कोई सुधार नहीं हुआ. ऑकलैंड में पहला टेस्ट हारने के बाद वेलिंगटन में तीसरे दिन तक तो टेस्ट पर टीम इंडिया की पकड़ लग रही थी लेकिन जैसा कि हमेशा से होता आया है हमने ‘जीत के मुंह से ड्रॉ’ निकाल लिया. सच तो ये है कि इस ड्रा में भी अपनी हार है.

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हार के जीतने वाले को बाजीगर कहते हैं, और बार-बार हारने वाले को?.... बेशर्मों की बारात! ये उपाधि आपको पसंद न आए. नाम आप ही तय कर लें. क्योंकि हम कुछ कहें तो बोलोगे कि बोलता है. फिर भी हम सवाल पूछेंगे. ये हक है हमारा. हमने आपको महान बनाया तो हकीकत से रूबरू कराने की भी जिम्मेदारी हमारी.

आज हर क्रिकेट प्रेमी अपनी टीम पर सवाल उठा रहा है. आखिरकार हम कब तक विदेशी दौरे पर यूं ही हारते रहेंगे? बीसीसीआई कब तक 'महान' कप्तान महेंद्र सिंह धोनी की गलतियों को माफ करता रहेगा. एक टेस्ट में 20 विकेट चटकने वाले गेंदबाजों की तलाश कब खत्म होगी? सवालों की फेहरिस्त लंबी है. इक्का-दुक्का के जवाब मिल जाएं तो शायद क्रिकेट प्रेमियों के दिल को ठंडक पहुंचे. पर इस ठंडक में जीत वाली बात न होगी. क्योंकि वो तो आपसे होता नहीं.

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क्रिकेट के जानकार कहते हैं कि बल्लेबाज टेस्ट मैच बनाते हैं और गेंदबाज जीत दिलाते हैं. जी हां, जिस टीम के गेंदबाज 20 विकेट लेने में सक्षम हैं उसके जीतने की संभावना बेहतर है. और यही टीम इंडिया की सबसे बड़ी कमजोरी है. दूसरी पारी में न्यूजीलैंड के 5 विकेट 94 रन पर गिर गए थे पर हमारे गेंदबाज अगले पांच विकेट न ले सके. विकेट तो छोड़िए न्यूजीलैंड ने रिकॉर्डों का ऐसा अंबार लगाया कि आज विजडन वालों को भी काम मिल गया. एक बार फिर से रिकॉर्ड बुक अपडेट करने का.

ईशांत शर्मा
ईशांत शर्मा को इस बात की बड़ी तकलीफ है कि सेलेक्टर उन्हें बड़े दौरों के लिए नहीं चुनते. भाई ईशांत! हम बताते हैं इसकी वजह. पहली पारी ने आपने लिए 6 विकेट. दूसरी पारी में आर्यभट्ट की खोज. जी हां, शून्य. अब तुलना कीजिए. कुछ समझ में आया. जब आपकी सबसे ज्यादा जरूरत थी तो आपने वेल बोल्ड से संतोष कर लिया. इतनी सटीक बॉलिंग की कि Howzatt वाला सेलिब्रेशन होने ना दिया. अब आप ही बताओ इसमें भरोसे वाली क्या बात है? दूसरी बात ये कि आप प्रायरिटी तय कर लें. गेंदबाजी करनी है या बयानबाजी. जुबान के तो शेर हैं आप! जब आप सीनियर खिलाड़ी जहीर खान को खराब फील्डिंग के सरेआम गालियां दे सकते हैं. तो आपसे उम्मीद भी क्या करें. फिर भी अगली प्रेस कॉन्फ्रेंस में हमें अपनी भावनाओं से जरूर अवगत कराइएगा.

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जहीर खान
भावनाओं को चक्कर में ही तो अब तक हमने जहीर खान को माफ किया. पर जब से टीम इंडिया में लौटे हैं अपनी वापसी को सही साबित नहीं कर सके. फिट नजर आते हैं पर विकेट नहीं चटका पाते. जब आपके नेतृत्व में तेज गेंदबाजों की मददगार पिच पर 20 विकेट नहीं ले सकते तो अनुभव के इस पहाड़ का हम का क्या करें? पहले लगता था आप हमारी जरूरत हैं लेकिन अब आप मजबूरी हैं. कुछ करिए.

‘सर’ रवींद्र जडेजा
सवाल जब करने का है तो यकीन मानिए 'सर' रवींद्र जडेजा से कुछ नहीं हो पाता. न गेंदबाजी और न बल्लेबाजी. 2 टेस्ट में कुल 82 रन और 85.66 की औसत से इतने ही मैचों में तीन विकेट. अद्भुत प्रदर्शन है ये. वो तो धोनी दरियादिल हैं जो आप टीम में बने हुए हैं. वरना रणजी के अगले सीजन की तैयारी कर रहे होते.

विराट कोहली
तैयारी से याद आया कि क्या आजकल फील्डिंग प्रेक्टिस होती है? कोच डंकन फ्लेचर हाथों में बल्ला लेकर खिलाड़ियों के साथ कैंचिंग प्रैक्टिस करते ही होंगे. भई...इसी काम के पैसे मिलते हैं. पर हम अहम मौकों पर कैच कैसे छोड़ सकते हैं? 9 रन पर ब्रेंडन मैकुलम का आसान सा कैच विराट कोहली ने छोड़ दिया. नतीजा देखिए उन्होंने तिहरा शतक जड़कर वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया. हम जीता हुआ मैच ड्रॉ कराने के लिए मजबूर हो गए. वैसे कोहली तो अच्छे फील्डर हैं. उनसे ये गलती कैसे हुई? कहीं उनका ध्यान कैच लपकने से ज्यादा हाथ थामने (मीडिया में लीक हुई अनुष्का शर्मा के साथ तस्वीर) में तो नहीं. दूसरी पारी में कोहली ने शतक जड़ा अपनी उस गलती के जख्म पर मरहम लगाने की कोशिश की. पर लगभग जीत चुके मैच के हाथ से फिसल जाने का जख्म बड़ा गहरा होता है. इसकी टीस धोनी ही बताएंगे.

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कैप्टन कूल धोनी
धोनी कितने कूल हैं. हार के बाद भी चेहरे पर कोई शिकन नहीं. एकदम नेचुरल सा अंदाज. पोस्ट मैच प्रेस कॉन्फ्रेंस में बार-बार वही बात. हमने अच्छी क्रिकेट खेली. पर कैप्टन साहेब आपसे एक ही सवाल है...अगर हम अच्छा खेले तो हारे कैसे? ये अच्छी वाली क्रिकेट किस किस्म की है जो हार की गारंटी देती है. वैसे आज कल आप सिर्फ खेलते हैं. कप्तानी तो करते नहीं. क्योंकि हर हार में आपके फैसलों का अहम योगदान होता है. चाहे प्लेइंग इलेवन तय करना हो या फिर फील्डिंग की रणनीति. जो मैच आपकी पकड़ में होते हैं उसे फिसल जाने देते हैं. आपके कार्यकाल में ही हमने टेस्ट में नंबर वन का ताज पाया तो उसे गंवाया भी. विदेशी दौरों पर महज एक जीत के लिए हम तरसते रहे. फिर आप महान कैसे? आपकी टीम धुरंधरों की टीम कैसे? बार-बार हार के बाद भी आप बहानेबाजी पर ज्यादा जोर देते हैं. आपको सुनकर दिल के किसी कोने में यही बात आती है कि यह टीम 'धोनी के धुरंधर' नहीं 'बेशर्मों की बारात' है!

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